कर्मो के नाश करने का पर्व हैं पर्युषण

जीवन को हमेशा धर्ममय बनाएं रखे

 आप्ती मिहिर


न से वचन से और काया से त्याग करने का पर्व है पर्युषण। पर्युषण का एक अर्थ है की, कर्मों का नाश करना। मनुष्यों को अपना जीवन हमेशा धर्ममय ही बनाए रखना चाहिए क्योंकि धर्म ही है, जो हमें दुर्गति में जाने से रोक कर सदगति की और ले जा सकता है।

ईश्वर हमें इस दौरान यही प्रेरणा देते हैं कि, खोलो मन की गाँठ, जैसे कि, किसी के कारण कभी हमें दुःख पहूंचा हो, या जाने-अनजाने में कभी  किसी को दुःख पहुंचाया गया हो, ऐसी अगर गाँठ लग गई है तो छोड़ दो, खींचो मत, क्योंकि जितनी बात खींचोगे वो बात उतनी बढ़ती जाएगी। जैसे एक गन्ना ले लो! वो कितना मीठा होता है, परंतु गन्ने के बीच में जो गाँठ लगी होती है, उसमें कोई मिठास नहीं होती है। पूरे गन्ने में मिठास होती है, परंतु उस गाँठ में मिठास नहीं होती! 

याद रखना गन्ने के गाँठ में जैसे मिठास नहीं होती, वेसे ही जिस आदमी के मन में गाँठ बँधी है, उनकी जिंदगी नीरस हो जाती है। गन्ने के गाँठ की तरह, अपनी गलती का अहसास करो क्योंकि हर गलती का फल आदमी को भुगतना होता है, चाहे गलती खुले आम की जाये, या लुक-छुप के से, पर हर गलती की सजा मिलती है। पर्युषण पर्व में हमें अपनी गलतियों पर सोचना है और उन्हें सुधारने का प्रयत्न करना है। वर्ष भर हम जहाँ-जहाँ गिरे वहां संभलना और नये संकल्प के साथ सुकृत्य का दीप जलाना है। मन में किसी भी तरह का लालच या स्वार्थ आपके मन में नहीं होना चाहिए। यह पर्व बुरे कर्मों का नाश करके हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है!      

पर्युषण जैन धर्म का सब से बड़ा पर्व माना जाता है। यह एक ऐसा त्यौहार है, जहां पूरा संप्रदाय उपवास और त्याग के माध्यम से आत्म शुद्धि करता है। इन दिनों यह कोशिश की जाती है की, हम अपने विचार और शब्दों को लेकर अहिंसक रहे! पर्युषण पर्व यानी आराधना की आमंत्रण पत्रिका। तप-जप-साधना से भरी पुण्यवाटिका!

ज्ञानीओं ने पर्युषण के पांच कर्तव्य का पालन करना बताया है।

छोटे -छोटे नियमों द्वारा कर्तव्य पालन :

1 ] अमारी पर्वतन :  जीव मात्र के प्रति स्नेहभाव... 

2 ]   साधर्मिक भक्ति :- साधारण व्यक्ति को सहयोग

3] क्षमापना : शत्रु के प्रति स्नेह भाव,तथा की हुई गलतियों की माफी मांगना

4 ] अठ्ठम तप  :- तीन उपवास की आराधना

5]   चैत्य परिपाटी : परमात्मा के प्रति स्नेहभाव

सही ज्ञान, सही विश्वास और सही आचरण, ये मूल सिद्धांत मुक्ति पाने के सब से आवश्यक माने जाते है। यह आत्मशुद्धि का पर्व है और सचमुच में पर्युषण पर्व एक ऐसा सवेरा है जो, अंधकार से ज्ञानरूपी प्रकाश की और ले जाता है।

(लेखक स्वतंत्र लेखिका हैं)


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रमण संघीय साधु साध्वियों की चातुर्मास सूची वर्ष 2024

पर्युषण महापर्व के प्रथम पांच कर्तव्य।

तपोवन विद्यालय की हिमांशी दुग्गर प्रथम