पहले प्राप्त करें फिर प्रदान करें , किसी विद्वान की चार पंक्तियां हैं - मुनि रजतचंद्र विजय
क्षमा वीरों का आभूषण हैं
क्षमा ह्रदय की करुणा, जीवन की साधना है.
क्षमा शांति की नींव,धर्म की आराधना है.
अधरों के उच्चारण से क्षमा नहीं होती,
क्षमा अभिनय नहीं, क्षमा उपासना है.
महाड़ :- कोई वस्तु हमारे पास यदि होगी तो हम उसे दे पाएंगे नहीं होगी तो कैसे दे पाएंगे. इसलिए यह आवश्यक है कि पहले उस वस्तु को प्राप्त किया जाए. यदि क्षमा हमारे पास होगी तो हम उसे दूसरों को दे पाएंगे इसलिए पहले क्षमा प्राप्त करें, की हुई भूलों के लिए क्षमा याचना करें, फिर क्षमा प्रदान करें।
उपरोक्त विचार श्री वासुपूज्य स्वामी भगवान के सानिध्य में व विश्व वंदनीय परम पूज्य आचार्य श्री विजय राजेंद्र सूरीश्वरजी म.सा.के दिव्य आशीर्वाद से 100 वर्ष में पहलीबार गुरु भगवंतों की निश्रा में हो रहे पर्व पर्युषण आराधना के अवसर पर श्री सकल जैन संघ के तत्वावधान मे सर्व प्रथमबार श्री पर्युषण महापर्व की आराधना 24 अगस्त से 31 अगस्त तक श्री मोहनखेड़ा तीर्थ विकासक,परोपकार सम्राट, आचार्य श्री विजय ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य प्रखर प्रवचनकार मुनिश्री रजतचंद्र विजयजी ने व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि संसार भूलों से भरा है, उलझनो से भरा है, विचित्रताओ से भरा है तो दुर्भावनाओं से भी भरा है. यह आवश्यक नहीं है कि जो मुझे अच्छा लगता हो, वह दूसरों को भी अच्छा लगे. जबकि सत्य यह है एक व्यक्ति की पसंद दूसरे व्यक्ति की नापसंद बन जाती है। एक व्यक्ति का सुख दूसरे के लिए दुख का कारण बन जाता है। आपसी संबंधों में बोलचाल में एक दूसरे के दिल को ठेस पहुंचती है। क्षमा याचना करके हमारे द्वारा की गई भूलों को दूर किया जा सकता है। कभी-कभी हम अहंकार वश त्रुटियों को अनदेखा कर देते हैं, और इस वजह से दिलों की दूरियां बढ़ती ही जाती हैं, मन में द्वेष भावना उत्पन्न होती है, अनजाने में कोई ऐसा कार्य हमारे द्वारा हो जाता है जिससे सामने वाले के दिल को ठेस पहुंचा देते हैं या हमारे द्वारा कोई कार्य ऐसा हो जाता है जिससे सामने वाला व्यक्ति हमसे नाराज हो जाता है,यह ज्यादा नही बढ़े इसके पहले हमें इसलिए हमें क्षमा याचना कर लेना चाहिए।
रजतचंद्र विजयजी ने कहा कि मनुष्य को निरंहकार होना चाहिए। क्षमा उसी के पास होती है जो वीर होता हैं,क्षमा से दिलों की दूरियां समाप्त होकर प्रेम और मित्रता के भाव उत्पन्न होते हैं।उन्होंने कहा कि अहंकारी के लिए क्षमा मांगना कठिन है और क्षमा कर देना भी कठिन है,और क्षमा प्राप्त करने के लिए अहंकार का त्याग करना पड़ेगा, मन को निष्कपट बनाना पड़ेगा, कुछ पल के लिए स्वयं को छोटा बनाना पड़ेगा.
उन्होंने कहा क्षमा मांगने से कोई छोटा नही होता, बल्कि क्षमा तो हमारे द्वारा की गई भूलों का प्रायश्चित है, पश्चाताप है, दिल से वैर भाव मिटाने का माध्यम है. ह्रदय की संवेदना है. क्षमा दान करना अर्थात पूर्व की भांति संबंध स्थापित करना है।इसलिए कहा जाता है कि 'क्षमा वीरस्य भूषणं',क्षमा वीरों का आभूषण हैं।
भगवान महावीर ने कहा है - खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतू में. मित्ति में सव्व भूएसु, वेरं मज्झं न केणई.
सभी जीवो से मै क्षमापना करता हूं,सभी जीव मुझे क्षमा करें, सभी जीवो के साथ मुझे मैत्री भाव है, किसी भी जीव के साथ वैर भाव नहीं है इन भावों को हमेशा अपने ह्रदय में रखना चाहिये।ज्ञात हो महादनगर में 100 साल के इतिहास में पहलीबार चातुर्मास हो रहा है।पर्युषण की आराधना में भी पहलीबार गुरु भगवंतों की निश्रा मिली हैं।लोगो मे अपूर्व उत्साह है और यह चातुर्मास नित नये इतिहास लिख रहा है।
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