जीवन संघर्ष और नृत्य साधना का महत्व दर्शाती किताब 'रिफ्लेक्शन'
नृत्य साधना और शक्ति स्वरूप है :- डॉ रेखा देसाई
मुंबई :- नृत्य यह एक कला हैं,जो मन को प्रफुल्लित करती है,तथा मन और शरीर को अलग तरह से जोड़ती हैं जिससे व्यक्ति मुश्किलों का सामना आसानी से कर लेता हैं।
मीरारोड स्थित कलाकृति अकादमी पिछले 37 वर्षों से नृत्य की शिक्षा लोगों में जागृति लाने के उद्देश्य से वर्कशॉप के साथ अब सेमि क्लासिकल डांस ,झुम्बा जैसे डांस प्रकार भी सिखाये जाते हैं।अकेडमी की शुरुआत रेखा देसाई ने की थी।उनसे नृत्य शिक्षा में पारंगत हुई बेटी सिद्धि देसाई ने अकादमी की काफी जवाबदारी अब संभाल ली हैं।नृत्य में दोनों को मानद पीएचडी की उपाधि मिली है।अकादमी की कुल दस शाखाएं हैं।
अकादमी के बारे में सिद्धि कहती है कि मेरी मां और गुरु रेखा देसाई ने इसकी स्थापना की थी,और 37 वर्षों तक इसके साथ जाहिर कार्यक्रम व घर दोनों संभाले।नृत्य हमारा पेंशन हैं।में बचपन से नृत्य सीखती थी।साथ ही अर्थशास्त्र के साथ मास्टर्स और बीएड कर लेक्चरर थी।पढ़ाने के साथ सीखती और सीखाती भी थी।
सिद्धि कहती हैं कि वे अकादमी की निदेशक बनी।मीरारोड के बाद हमने इसका विस्तार शुरू किया और आज दस शाखाओं में एक शाखा अकादमी की दुबई में भी हैं।लॉकडाऊन में सब कुछ थम गया था तब हमने महिलाओं के लिए घर बैठे फ्री ऑनलाइन वर्कशॉप किये।इस दौरान थेरेपिस्ट का कोर्स किया व शारीरिक व मानसिक रोगों का इलाज बिना दवा के कैसे हो सीखा,और अब सीखा भी रही हूँ।मैन थेरेपी को डांस के साथ जोड़ दिया है।इसकी प्रेक्टिस में पेशेंट्स के साथ वन टू वन करती हूं।
लॉकडाउन में ऑनलाइन क्लासेस शुरू की जो आज भी शुरू हैं।अबतक अकादमी से दस हजार से ज्यादा लोगों ने नृत्य की शिक्षा ली हैं।इस मुकाम के लिए मेरी मां रेखा देसाई का बहुत संघर्ष और तप हैं।उनकी संघर्ष और साधना को दर्शाती हैं किताब 'रिफ्लेक्शन'।यह उनकी आत्मकथा है, जो ईबुक और हार्डकॉपी के रूप में अंग्रेजी भाषा मे प्रकाशित की गई हैं।इसका लोकार्पण हाल ही में किया गया था।
उन्होंने बताया कि वेल्लूर विश्वविद्यालय से उन्हें पीएचडी की मानद उपाधि मिली हैं।रेखा देसाई को पांच साल पहले डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया था।अकादमी भरत नाट्यम,कथक व सेमि क्लासिकल की तालीम देती हैं।साथ ही झुम्बा व योगा भी सिखाती हैं।45 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को राहत के दर पर सीखाया जाता है।वे बताती हैं कि नृत्य कला बहुत प्राचीन हैं,और इससे शास्त्रों की समझ व मन भक्तिमार्ग की ओर भी जाता हैं।
रेखा देसाई ने बताया कि भरत नाट्यम चेन्नई का है,तथा कथक उत्तरप्रदेश से आता है।यह दोनों क्लासिकल नृत्य हैं।फिल्मी गीतों पर हम सेमि क्लासिकल सीखाते हैं।,'जैसे मधुबन में राधिका नाची रे','मोहे पनघट पर नंदलाल छोड़ गयो रे''मोहे रंग दे लाल' ऐसे 40 से ज्यादा गाने हैं।इससे सीखने वालों का स्पिरिट बढ़ता है, शोख पूरा होने के साथ खुशी मिलती हैं।उन्होंने बताया कि मेरे पिता हर्षदराय झा कवि व चेन्नई की स्कूल में प्रिंसिपल थे।उनकी पांच बेटियों में सिर्फ मैन ही नृत्य सीखा जो उनकी इच्छा थी। 13 साल की उम्र में भरत नाट्यम पूर्ण किया व मात्र 17 साल की उम्र में अकादमी की स्थापना की।फिर अपने बड़े पप्पा के साथ टेलरिंग,डिजाइनिंग,शॉर्टहैंड आदि सीखा।
रेखा देसाई ने दो हजार से भी ज्यादा स्टेज शो किये हैं।मुंबई के अलावा देश के कई राज्यों में और विदेशों में इस कला का डंका बजाया हैं।उनकी आत्मकथा 'रिफ्लेक्शन' उनकी नृत्य साधना और जीवन के संघर्ष को दर्शाती हैं।वे कहती है नृत्य से ही उन्हें हिम्मत और लड़ने की प्रेरणा मिली हैं।नृत्य के माध्यम से ही उन्होंने डिप्रेशन को मात दी। 150 पृष्ठों के इस पुस्तक की लेखिका वे स्वयं और सह लेखिका उनकी बेटी सिद्धि देसाई हैं।
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