अफगानिस्तान की "बचा पॉश" प्रथा पर प्रीति सोमपुरा की किताब

सैकड़ों सालों से चल रही यह प्रथा


मुंबई :-
बचा पोश यह शब्द सुनकर आप को लग रहा होगा की यह क्या है ?बचापोश एक ऐसे जटिल प्रथा है जो सेकड़ो सालो से अफ़्ग़ानिस्तान में चली आ रही है ,लेखिका प्रीती सोमपुरा ने तीन बार अफ़ग़ानिस्तान में प्रवास करके बचा पॉश की भुक्तभोगी लड़की  और उनके माँ बाप से बात की, लेखिका की यह पहिली किताब है जिसका नाम है "बचा पॉश" 

बचा पॉश एक ऐसी जटिल प्रथा है जिसमे वह माँ जिसकी कोख से  बेटे का जन्म नहीं हुआ  है वह अपनी 4 -5  बेटी में से एक बेटी  को बेटा  बनाकर समाज के सामने पेश करती है ,जब लड़की 4 -5साल की होती है उस दौरान लड़की  को लड़के  का पोशाक पहनाया जाता है और उसके बाल काट दिए जाते है , छोटी लड़की अपने आपको लड़का समझकर बाकी बच्चो की तरह खेलती है कूदती है ,लेकिन जब वह बेटी यौवनकाल में पहुँचती है तब उसे पता चलता है की वह लड़के के ड्रेस में लड़की है , बहार से भले ही वह लड़का दिखती हो लेकिन वह शरीर से लड़की है ,मासिक धर्म आते ही उसकी आज़ादी छीन जाती है और उसे बुरका में बंद किया जाता है, एक पल में ही उसकी आज़ादी छीन जाती है 

बचापोश प्रथा आज भी अफ़ग़ानिस्तान के ग्रामीण इलाको में है. लेखिका प्रीती सोमपुरा ने अपनी अफ़ग़ानिस्तान यात्रा के दौरान कई एनजीओ से बात की, यह एक किताब नहीं बल्कि इस प्रथा के खिलाफ आवाज़ उठाती एक लड़की की कहानी है. 

लेखिका प्रीती सोमपुरा का कहना है की जब वह पहली बार अफ़ग़ानिस्तान साल 2011 में गयी थी,उस वक़्त काबुल अस्पताल में 14 साल की मासूम बच्ची को वह मिली थी जो बचा पॉश की पीड़ित थी।  उस बच्ची और उसकी माँ से बात करते हुए इस प्रथा के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए किताब लिखने का विचार आया.बचा पोश की पीड़ित लड़की को जब पता चलता है की वह लड़का नहीं बल्कि लड़की है तब कई लड़किया आत्महत्या कर लेती है या मानसिक रोगी बन जाती है।  इस किताब को अंग्रेजी, मराठी और गुजराती में भी प्रकाशित किया जाएगा 

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