सब कुछ उसी ने पाया, जिसने सब कुछ खोया है - दिनेश मुनि

टाँके लगने के बाद भी उपवास नहीं छोड़े, 8 उपवास का पच्चक्खाण ग्रहण किया


पुना :-
संसार में किसी को कुछ तो किसी को बहुत कुछ मिलता है, लेकिन आज तक सब कुछ किसी को नहीं मिला। लेकिन सब कुछ पाने का एक अचूक सूत्र है, कि सबसे पहले तुम्हें सब कुछ खोना पड़ेगा। शास्त्र, ग्रंथ, पुराण और तीर्थंकरों ने भी यही कहा है कि सब कुछ उसी ने पाया, जिसने सब कुछ खोया है। 
यह बात श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि ने कही।

पूना शहर के स्वार गेट स्थित ‘श्री आदिनाथ स्थानकवासी जैन श्रावक संघ’ में धर्मसभा को संबोधित करते उन्होंने कहा कि सोने के पास सौंदर्य है, कीमत है, लेकिन सुगंध नहीं है। हिमालय के पास गंगा है, औषधियां हैं, उच्चतम शिखर है, लेकिन सीढ़ियां नहीं हैं। आकाश के पास चांद है, सूरज है, तारे हैं, लेकिन सुगंधित फूलों से भरा उपवन नहीं है। इसीलिए मैं कहता हूं कि कुछ खोने से कुछ मिलेगा, बहुत कुछ खोने से बहुत कुछ मिलेगा लेकिन यदि सब कुछ पाना है तो उसके लिए सब कुछ खोने का साहस और समर्पण ही एकमात्र साधन है। मुनिश्री ने कहा कि जैन संतों को देखो हमने एक आंगन छोड़ा तो सारी दुनिया हमारा आंगन बन गई। एक माता-पिता को छोड़ा तो सारी दुनिया से हमें माता-पिता का दुलार मिलने लगा।


दिनेश मुनि ने कहा कि हरि को पाना है तो हीरा छोड़ना पड़ेगा। यदि मुट्ठी में कांच का टुकड़ा है और रास्ते में हीरा पड़ा दिख जाए तो मुट्ठी का कांच फेंकना पड़ेगा। भोग विलास का कांच फेंको और परमात्मा का हीरा पाने के लिए भोगों का बंधन तोड़ो। डॉ. द्धीपेन्द्र मुनि ने कहा कि मनुष्य बुद्धिमान तो है, लेकिन उसमें भी बहुत अभाव है। जिनवाणी पालक ही सुश्रावक बनता है। नाम के लिए किया गया दान पुण्य फल नहीं देता। शुद्ध सात्विक भावना ही फलदायी होती है। शरीर की ओर ध्यान देने की अपेक्षा, आत्म कल्याण के लिए किया गया कार्य ही मोक्ष की ओर ले जाता है।

इस अवसर पर 15 वर्षीय मनस्वी कुचेरिया जो कि 7 उपवास में पाँव फिसलने से गिर गई, खून बहा - चोट लगी - 9 टाँके भी आए पर दर्द निवारण इंजेक्शन भी नहीं लगवाया,और “धर्म में दृढ़ आस्था“ मनस्वी कि में पारणा करूँगी 8 उपवास पूर्ण होने के बाद। ओर आज़ (02 अगस्त 2022) 8 उपवास के पच्चक्खाण ग्रहण किए. पच्चक्खाण अंगीकार करते वक़्त सभा “धन्य तपस्वी” जैन धर्म के जयकरो से गूँजित हो उठा। संघ की और से तपस्वी मनस्वी को हार माला ओढ़ाकर बहुमान किया गया।

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