अनाग्रही बन हो सकता है यथार्थ का साक्षात्कार: आचार्य महाश्रमण
टीपीएफ के कार्यक्रम में शामिल आर्किटेक्ट व इंजीनियर्स को भी मिला शांतिदूत का आशीर्वाद
भीलवाड़ा (तेरापंथ नगर) :- राजस्थान के भीलवाड़ा में स्थित तेरापंथ नगर में वर्ष 2021 का चतुर्मासरत अहिंसा यात्रा प्रणेता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगलवाणी से जन-जन लाभान्वित हो रहे हैं। जैन शास्त्र ‘सूयगडो’ पर प्रतिदिन आचार्यश्री की धर्मदेशना हो रही है। जिसमें श्रोताओं को नित नवीन तत्त्वज्ञान राशि प्राप्त हो रही है।
महाश्रमण सभागार से आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि इस जगत में पंच महाभूत होते हैं। यह एक सिद्धान्त है। ये पांच महाभूत इस प्रकार हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इसके संयोग से ही एक चैतन्य आत्मा देह का निर्माण होता है, और इनके विनाश से ही उस देह का नाश भी हो जाता है। इन भौतिक तत्वों का योग ही शरीर है। इसका कठोर भाग पृथ्वी, शरीर में स्थित द्रव जल, शरीर में व्याप्त उष्णता अग्नि, चलन क्षमता वायु और पोला आकाश का प्रतिनिधित्व करता है। इस शरीर में पांच इन्द्रियां और मन भी होते हैं। इन्हीं पांच इन्द्रियों और मन के माध्यम से आदमी ज्ञान प्राप्त करता है। इन्द्रियां व मन ज्ञान का साधन हैं। जीवन में यथार्थ का साक्षात्कार करना हो तो आदमी को दुराग्रही नहीं बनना चाहिए। आदमी को सच्चाई जानने के लिए आंखें खुली रखनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जो मैंने जाना, समझा वहीं सत्य है। यह दुराग्रह हो जाता है। आदमी को दुराग्रह से बचने का प्रयास करना चाहिए। अनाग्रह की चेतना सच्चाई की ओर ले जाने वाली हो सकती है। इसलिए आदमी को अपने भीतर अनाग्रह की चेतना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात लम्बे समय बाद दर्शनार्थ उपस्थित हुईं समणी कमलप्रज्ञाजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति देते हुए गीत के माध्यम से वंदना की तो आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। बालमुनि रत्नेशकुमार व उनकी संसारपक्षीया माता ममता प्रकाश बुरड़ ने आचार्यश्री से अट्ठाई की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
टीपीएफ द्वारा द्वितीय राष्ट्रीय आर्किटेक्ट व इंजीनियर्स कान्फ्रेंस ‘बिल्ड योर बेस्ट’ का आयोजन किया गया। स्थानीय टीपीएफ अध्यक्ष राकेश सुतरिया ने इसके विषय में अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने समुपस्थित आर्किटेक्ट व इंजीनियर्स को पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि मकान निर्माण की तरह ही जीवन के निर्माण के लिए मास्टर प्लान होना चाहिए। अच्छे भविष्य के निर्माण के लिए ज्ञान के साथ-साथ ईमानदारी भी रखने का प्रयास करना चाहिए। ईमानदारी पैसे से ऊपर हो तो जीवन अच्छा बन सकता है।
18 अक्टूबर को आचार्यश्री महाश्रमण चतुर्मास प्रवास परिसर में लाडनूं निवासी 91 वर्षीया चांदकंवर सुराणा को तिविहार संथारे प्रत्याख्यान करावाया गया था, जो लगभग आठ दिनों बाद सोमवार की देर रात सीझ गया। मंगलवार को प्रातः उनकी बैंकुठी यात्रा से पूर्व आचार्यश्री ने मंगलपाठ सुनाया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें