ज्ञान प्राप्ति का माध्यम है आगम स्वाध्याय - आचार्य महाश्रमण

अधिवक्ता अपनी बौद्धिक, तार्किक शक्ति का दुरुपयोग ना करें :- आचार्य महाश्रमण


भीलवाड़ा (राजस्थान) :-
हिंसा अवतार परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा चातुर्मास काल में जैनागम ठाणं आधारित प्रवचन माला का क्रम निरन्तर चल रहा है। जन-जन के ज्ञान की अभिवृद्धि करने वाले इस आगम के अंतिम सूत्र के वाचन के साथ ही आज आचार्यप्रवर द्वारा ठाणं प्रवचनमाला का समापन किया गया। 

तेरापंथ नायक आचार्य श्री महाश्रमण जी ने ठाणं प्रवचन के दसवें अंतिम अध्याय के अंतिम सूत्र पर धर्म देशना देते हुए बताया कि इस लोक में छः द्रव्य है। उनमें से एक पुद्गगलस्तिकाय एक ऐसा द्रव्य है जो आंखों से देखा जा सकता है, अन्य पांच द्रव्य आंखों के विषय नहीं बनते है। पुद्गल पुद्गल में भी गुणात्मक अंतर होता है। हमारी ये दुनिया पुद्गलमय है। अन्य द्रव्यों की भी उपयोगिता है पर पुद्गल की विशेष उपयोगिता है। ये हमारे जीवन से जुड़ा हुआ साक्षात स्पष्ट तत्व है। 


आचार्यवर ने आगे ठाणं आगम के बारे में बताया कि ये लगभग चालीस वर्ष पूर्व आचार्य श्री तुलसी व आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी द्वारा इसका व्यवस्थित रूप से संस्कृत छाया, टिप्पण सहित संपादित ग्रन्थ सामने आया। इसके दस अध्यायों में अनेक विषयों का प्रस्तुतिकरण समाहित है। बत्तीस आगमों में ये एक स्वतः प्रमाण वाला विशिष्ट अंग है। इस ग्रंथ का अध्येता, विद्यार्थी गहन अध्ययन करे तो अच्छा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।  तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यों एवं साधु-साध्वियों का अथक श्रम आगम संपादन कार्य में रहा है, वर्तमान में भी अनेक आगमों का कार्य गतिशील है। आगम एक अपेक्षा से व्याख्यान का आभूषण है। दिनचर्या में आगम स्वाध्याय का क्रम रहे तो अनेक ज्ञान रत्नों को पाया जा सकता है। 

इस अवसर पर जोधपुर के  सुशील भंडारी द्वारा "जीवन के रंग जीवन के संग" पुस्तक का विमोचन पूज्य प्रवर की उपस्थिति में हुआ।

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अधिवक्ताओं ने प्राप्त किया शांतिदूत से मार्गदर्शन

प्रवचन पश्चात शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन सानिध्य में भीलवाड़ा अभिभाषक संघ के अधिवक्ताओं ने मार्गदर्शन प्राप्त किया। पूज्यप्रवर ने प्रेरणा देते हुए कहा - दुनिया में न्याय अन्याय की बात आती है। अन्याय करना तो गलत है ही, अन्याय को बर्दाश्त करना भी गलत है। अन्याय के खिलाफ लड़ाई करना एक प्रकार से शौर्य की बात होती है। अधिवक्ता वर्ग अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने वाला वर्ग है। अधिवक्ता का अपने मुवक्किल के प्रति एक कर्तव्य भी होता है। अधिवक्ता यह ध्यान दे कि अपनी बौद्धिकता, तार्किक शक्ति का दुरूपयोग ना करे। न्यायालय में बेईमानी, मिथ्या आरोपण करने से बचने की कोशिश रहनी चाहिए। यह संकल्प रहे तो न्याय में भी धार्मिकता रह सकेगी।

आचार्यश्री की प्रेरणा से अधिवक्ताओं ने अहिंसा यात्रा के नैतिकता, सद्भावना, नशामुक्ति के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया। मुनि कुमारश्रमण ने वक्तव्य दिया। प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष  प्रकाश सुतरिया, टीपीएफ अध्यक्ष राकेश सुतरिया, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन सुरेश माली ने अपने विचार रखे। मंच संचालन व्यवस्था समिति महासचिव निर्मल गोखरू ने किया।



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