स्वार्थ से जुड़ा हुआ है संसार का ममत्व - आचार्य महाश्रमण

तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य का जन्मजयंती पर श्रद्धा-स्मरण

चतुर्दशी के अवसर पर हुआ मर्यादापत्र का वाचन


भीलवाड़ा  (तेरापंथ नगर) :- 
अहिंसा के परम उपदेशक संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा जैन आगम वांगमय पर प्रवचनमाला का क्रम चल रहा है। जिसमें आचार्यश्री सुयगड़ो आगम का विवेचन करते हुए श्रोताओं को नित नवीन ज्ञानराशि प्रदान कर रहे है। प्रवचन श्रवण से श्रद्धालुओं के भीतर अध्यात्म की चेतना का जागरण हो रहा है।

मंगलवार को अश्विन शुक्ला चतुर्दशी के अवसर पर गुरूदेव द्वारा हाजिरी 'मर्यादा पत्र' का वाचन किया गया। मर्यादाओं की स्मारणा कराते हुए आचार्यप्रवर ने तेरापंथ के प्रथम आचार्य श्री भिक्षु एवं प्रज्ञापुरुष आचार्य श्री जयाचार्य के गुणों को व्याख्यायित किया। मुनि ऋषि कुमार एवं मुनि रत्नेश कुमार ने लेखपत्र का समुच्चारण किया।

 आचार्य श्री ने धर्म देशना देते हुए कहा कि - व्यक्ति जिस कुल में पैदा होता है, जिसके साथ रहता है उसके साथ उसका ममत्व जुड़ जाता है। ममत्व के कारण वह दुख मुक्त नहीं हो सकता। संसार में स्वार्थ आधारित ममत्व भी देखा जाता है, ये किसी रूप में हिंसा का कारण भी बन सकता है। रिश्ते, संबंध स्वार्थ सिद्धि तक साथ रहते है जैसे ही स्वार्थ पूरा होता प्रेम, स्नेह विच्छिन्न हो जाता है। ये मेरापन एक भ्रम है जब व्यक्ति मरता है वह अकेले ही जाता है  उसके साथ कोई नहीं जाता है। एक उम्र आने के बाद व्यक्ति को परिग्रह मुक्त एवं अनासक्त भाव रखते हुए आत्म कल्याण एवं कर्म मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आज अश्विन शुक्ला चतुर्दशी को तेरापंथ धर्म के चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य का जन्म दिवस है। वे एक महान साहित्यकार, संत पुरुष थे जिनका मारवाड़ के रॉयट ग्राम में जन्म हुआ। जयाचार्य आचार्य भिक्षु के आगमिक, तात्विक, ज्ञानात्मक उतराधिकारी थे। भिक्षु स्वामी के भाष्यकार जयाचार्य ने अपनी  प्रतिभा एवं प्रज्ञा से संघ को अनेक अवदान दिए। विशिष्ट ज्ञान, विरल व्यक्तित्व के धनी जयाचार्य ने अनेक आगम ग्रंथो का प्रणयन पद्यात्मक कर दिया। उनकी ज्ञान, मेघा और  प्रतिभा  अनुत्तर थी। जयाचार्य ने लगभग तीस वर्षों तक संघ की बागडोर संभाली। 

आचार्य श्री ने इस अवसर पर साधु-साध्वियों को क्षेत्र की सारसंभाल, प्रवचन शैली आदि का भी पथदर्शन प्रदान किया एवं विशेष ज्ञानार्जन की प्रेरणा दी। कार्यक्रम में विद्या भारती शिक्षण संस्थान के राष्ट्रीय मंत्री अविनाश भटनागर ने अपने विचार व्यक्त किए। श्रद्धानिष्ठ श्रावक भेरूलाल नाहर का जीवन वृत्त पुस्तक "दिवेर के दिव्य दिवाकर" जुगराज नाहर ने गुरु चरणों में समर्पित की।

 टॉटगढ़ के साहित्य संस्थान, तुलसी तीर्थ प्रज्ञा शिखर के अध्यक्ष  देवराज आच्छा, एम.जी बोहरा ने संस्थान के स्थापना दिवस पर गुरुचरणों में भावाभिव्यक्ति दी।




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