मन को दुर्मन नहीं सुमन बनाएं - आचार्य महाश्रमण

चिलचिलाती धूप में शांतिदूत का 12 किमी शहर परिभ्रमण

अनेक स्थानों पर आचार्यप्रवर ने किया पगलिया एवं मंगलपाठ



भीलवाड़ा (तेरापंथ नगर) :- तीर्थंकर के प्रतिनिधि जनउपकारक परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी का भीलवाड़ा नगर भ्रमण  प्रातः सूर्योदय के पश्चात चातुर्मास स्थल से मंगल प्रस्थान किया। चंद्रशेखर आजाद नगर से होते हुए पूज्यप्रवर कोठारी पब्लिक स्कूल में पधारे जहां गुरुदेव ने विद्यार्थियों को जीवन में अच्छे संस्कार अपनाने की प्रेरणा प्रदान की।

आचार्यश्री की प्रेरणा से शिक्षकों सहित, विद्यार्थियों ने अहिंसा यात्रा की संकल्प त्रयी को स्वीकार किया। तत्पश्चात मार्ग में श्रद्धालु शिक्षिकाओं को दर्शन देते हुए आचार्य प्रवर बापू नगर में पधारे एवं कई स्थानों पर मंगलपाठ प्रदान किया। अनेक श्रद्धालु जो अपनी शारीरिक अक्षमता के कारण चातुर्मास स्थल पर नहीं आ सकते आज अपने गुरु को साक्षात अपने समक्ष पाकर धन्यता की अनुभूति कर रहे थे। एक स्थान पर भीलवाड़ा के मुनि प्रतीक कुमार ने भी आचार्यश्री के चरणो में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

इसके बाद आचार्य महाप्रज्ञ सेवा संस्थान भवन में अहिंसा यात्रा प्रणेता का पधारना हुआ। संस्थान के अध्यक्ष प्रकाश कर्णावट ने स्वागत में अपने विचार व्यक्त किये। मार्गवर्ती एस.एन. एकेडमी के विद्यार्थी शांतिदूत के आशीर्वाद से लाभान्वित हुए। इस दौरान 1008 आदिनाथ दिगंबर जिनालय एवं स्वर्णकार भवन के समक्ष गुरुदेव ने मंगलपाठ प्रदान किया।

चिलचिलाती धूप में लगभग 12 किलोमीटर के शहर भ्रमण के अंतर्गत आजाद नगर स्थित महाप्रज्ञ भवन में भी आचार्य श्री का पधारना हुआ। जहां श्रावक समाज ने गुरूदेव का स्वागत किया। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष भेरूलाल चौरड़िया ने अपने विचारों अभिव्यक्ति दी। आचार्यप्रवर ने भवन में आध्यात्मिक प्रवृत्ति हेतु मंगल आशीर्वाद दिया।

चातुर्मास काल के प्रथम सान्ध्यकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारा मन एक प्रकार की शक्ति है। मन वाला प्राणी बड़ा पुण्य का कार्य कर सकता है तो बड़ा पाप का कार्य भी कर सकता है। आदमी को अपने मन को दुर्मन नहीं सुमन बनाने का प्रयास करना चाहिए। मन ही उत्थान और पतन का कारण होता है। मन को उत्थान का कारण बनाने के लिए आदमी को धार्मिकता, अध्यात्मिकता व शुभ परिणामों से युक्त आचरण करना चाहिए। माया, मोह से मुक्त मन ही उत्थान की ओर ले जा सकता है। हमारा मन सुमन बने यह अपेक्षा है।

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