परिग्रह है दुख का कारण - आचार्य महाश्रमण

शांतिदूत ने बताये दुखमुक्ति के सूत्र

जीवन मे मनुष्य जन्म, मुमुक्षा का भाव और महापुरुषों की सत्संगति दुर्लभ है :- साध्वी कनकप्रभाजी


भीलवाड़ा (तेरापंथ नगर) :-
संत शिरोमणि,अध्यात्म साधक परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी का आदित्य विहार भीलवाड़ा से वर्चुअल मंगल प्रवचन प्रतिदिन श्रोताओं के जीवन को सफल, सार्थक और कलात्मक बनाने के साथ ही उनके जीवन को नई  दिशा प्रदान कर रहा है।

आचार्य श्री ने अमृत देशना में कहा कि परिग्रह, ममत्व, पदार्थों  के प्रति आसक्ति बंधन है। जो चेतनावान और चेतन शून्य पदार्थों में परिग्रह रखता है, दूसरों के परिग्रह का अनुमोदन करता है वह मनुष्य कभी दुख मुक्त नहीं हो सकता। परिग्रह अनेक संदर्भों में दुख का कारण बनता है - जो प्राप्त नहीं है उसे पाने की लालसा में दुखी होना, जो प्राप्त है उसकी सुरक्षा में दुखी होना, जो प्राप्त वस्तु वापस चली जाती है उसके तनाव में दुखी होना, जो प्राप्त है उसमे अतृप्ति की भावना से दुखी होना। इस प्रकार के कारण हो जाते है। 

उन्होंने कहा कि परिग्रह विविध प्रकार से व्यक्ति को दुखी बना सकता है। जो व्यक्ति इच्छा परिमाण व्रत को अपना लेता है, इच्छाओं का परिसीमन कर लेता है वह दुख मुक्ति की दिशा में आगे गति कर सकता है। मनुष्य जीवन जीने के लिए पदार्थ चाहिए पर आसक्ति का भाव कम और पदार्थों का कम उपयोग करना चाहिए। एक उम्र के बाद व्यक्ति को अनासक्ति की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। 

आचार्यवर ने बताया कि पैसा, पद और प्रतिष्ठा ऐसी चीजे है जिनका परिग्रह सबको दुखी बनाता है। गृहस्थ परिग्रह के अल्पीकरण का प्रयास करे। पद से समाज एवं देश का संचालन होता है इसलिए आनुकुल्य हो तो पद का त्याग भले नहीं करे पर इसका अच्छा उपयोग करे।परिग्रह में भी विवेक रखे जहा जरूरत हो वही परिग्रह का त्याग करे। परिग्रह त्याग से चेतना का उर्ध्वरोहन किया जा सकता है।

साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने अपने प्रेरणा पाथेय में तीन चीजों को दुर्लभ बताया- मनुष्य जन्म, मुमुक्षा का भाव और महापुरुषों की सत्संगति। उन्होंने इस दुर्लभ मनुष्य जीवन को सद्कार्यों, धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृतियों में लगाने की प्रेरणा दी। 

कार्यक्रम में दर्शन सिरोहिया एवं ऋषि दुगड़ ने भावाभिव्यक्ति दी।




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