राष्ट्र शांति की स्थापना अपरिग्रह और अहिंसा से संभव - आचार्य महाश्रमण
धन अनर्थ का मूल न बने - आचार्य महाश्रमण
अणुव्रत लेखक पुरस्कार समारोह आयोजित
भीलवाड़ा (तेरापंथ नगर) :- अहिंसा यात्रा द्वारा देश-विदेश नें सदभावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति की अलख जगाने वाले अणुव्रत अनुशास्ता पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में अणुव्रत लेखक संगोष्ठी के द्वितीय दिन 'अणुव्रत लेखक' पुरस्कार समारोह आयोजित हुआ। जिसमें अणुव्रत विश्व भारती द्वारा वर्ष 2020 का पुरस्कार प्रसिद्ध व्यंगकार, पत्रकार, लेखक एवं राजस्थान मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी डॉ. फारुख आफरीदी को एवं वर्ष 2021 का पुरस्कार वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक डॉ. वेदप्रताप वैदिक को प्रदान किया गया।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा - परिग्रह, मूर्च्छा, आसक्ति सबसे बड़ा बंधन है। हिंसा और परिग्रह दोनों का आपस में गहरा सहचारिता का संबंध होता है। परिग्रह, बंधन का परिणाम है हिंसा। पदार्थों के प्रति आसक्ति से लोभ भाव पुष्ट होता है जिससे व्यक्ति के भीतर फिर हिंसा पनपती है। हिंसा में प्रवृत्त व्यक्ति वैर को बढ़ाता है वह कभी दुख से मुक्त नहीं हो सकता है। अगर बंधन मुक्त होना है तो परिग्रह और हिंसा का अल्पीकरण करना होगा, पदार्थों के सेवन का संयम करना होगा। एक संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि पैसा, अर्थ जरूरी है पर लोभ की चेतना जाग्रत हो जाती है तो ये अर्थ अनर्थ का मूल बन जाता है। अणुव्रत आंदोलन यही कहता है हिंसा के प्रति विरक्ति की भावना जागे। अहिंसा से समाज में सुख, शांति, प्रेम और सौहार्द्र भावना बनी रह सकती है।
आचार्यवर ने कहा कि वर्तमान युग में स्वस्थ समाज की रचना एवं एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र के बीच प्रेम-मैत्री, सुख शांति बनी रहे इसके लिए अहिंसा का दर्शन आवश्यक है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने अहिंसा यात्रा के दौरान बड़ी-बड़ी समस्याएं अहिंसा के माध्यम से सुलझाई है। हिंसा से राष्ट्र पिछड़ जाता है और अहिंसा से राष्ट्र का विकास होता है। मैत्री अहिंसा के द्वारा हिंसा को कम करके अहिंसा के पथ पर बढ़ते हुए हम दुख मुक्ति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर सकते है।
साध्वीवर्या संबुद्धयशा ने उद्बोधन में कहा कि तेजस्वी व्यक्ति में अनेक गुणों का समावेश अपने आप हो जाता है। वह करुणाशील, विवेक संपन्न, साहसी, सकारात्मक और समाधायक होता है। तप और इंद्रिय संयम से व्यक्ति का आभामंडल तेजस्वी, निश्चल भावधारा वाला बनता है।
लेखक अपनी शब्द शक्ति से पाठकों तक पहुंचता हैं
अणुव्रत लेखक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि अणुव्रत आंदोलन का एक आयाम अणुव्रत लेखक संगोष्ठी है। इस संगोष्ठी के माध्यम से अनेक लेखकों को अणुव्रतों से परिचित और आत्मसात करने का अवसर मिल जाता है। लेखक के पास शब्द शक्ति होती है परंतु शब्द रूपी जड़ तत्व में अर्थ रूपी आत्मा होती है। लेखक अपनी शब्द शक्ति के भीतर निहित अर्थ शक्ति द्वारा पाठक तक पहुंचने का प्रयास करता है।
उन्होंने कहा कि लेखक निर्भीकता से अपनी बात लिखकर जनमानस को प्रभावित कर सकता है। ये पुरस्कार भीतर की चेतना को जाग्रत करके लक्ष्य पूर्ति में सहायक बन जाए तो आगे बढ़ने में सिद्ध हो सकता है। लेखक अपने चिंतन के द्वारा जनमानस को संयम की दिशा में आंदोलित करने का प्रयास करे यह अपेक्षा है।
संगोष्ठी में अणुव्रत विश्व भारती अध्यक्ष संचय जैन ने अपने विचार व्यक्त किए, उपाध्यक्ष राजेश सुराणा ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया। संचालन ललित गर्ग ने किया।
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