चेहरे की तरह दिल को साफ रखना जरूरी है :- ज्ञानचंद्रजी म.सा

परमात्मा के नजरों की भी चिंता करें


आगरा (राजेश जैन ) :-
जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी महाराज साहब ने श्री श्वेतांबर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट के महावीर भवन में उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि- इंसान चेहरा तो साफ रखता है जिस पर दुनिया की नजर होती है, पर दिल को साफ़ नहीं रखता है, जिस पर ऊपर वाले की नजर होती है ।

हमें लोगों से इज्जत पाने की चिंता है, लेकिन परमात्मा की नजरों में हम कैसे हैं उसकी चिंता नहीं है,इसलिए मानसिक तनाव और शारीरिक रोग बढ़ रहे हैं ।अंतरात्मा पर लगे काम, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ के काले धब्बों को साफ करने की आवश्यकता है ।उन्होंने कहा कि सामायिक की साधना हो या परमात्मा की पूजा हो, भक्ति हो कुछ भी आत्मसाधना हो उसका प्रमुख लक्ष्य होता है- अपने आपका संप्रेक्षण ।अपनी गलतियों का परिमार्जन।

 ज्ञानचंद्रजी ने बताया कि नवकारमंत्र के माध्यम से हम परमात्मा को पूरे भाव से नमन करते हैं । ताकि हमारे अंदर सद्गुणों की पात्रता तिक्खुत्तों के माध्यम से हम हाथ जोड़कर आदक्षिण - आए प्रदक्षिणा करते हुए प्रभु को वंदामि नमंसामि  वंदन, नमस्कार, सत्कार सम्मान करते हैं।गुरुदेव ने कहा कि  प्रभु कल्याण रूप, मंगल रूप हैं धर्मदेव स्वरूप हैं। चेत्यरूप याने मन को प्रशस्त - प्रसन्न बनाने वाले हैं । ऐसे गुरुदेव भगवंतों की पूरी भाव से पर्युपासना सेवा करते हैं । अंत में मस्तिष्क झुकाकर वंदन करते हैं ।

इच्छाकारेणं के पाठ से सामायिक से पहले जिन भी जीवों की विराधना हुई। उन पापों के प्रति तस्स मिच्छामि दुक्कड़ं देते हैं ।अर्थात उन सबका पाप मेरे लिए निष्फल हो।तस्स उत्तरी करणेणं से उस आत्मा को श्रेष्ठ बनाने के लिए प्रायश्चित करने के लिए, विशेष शुद्धि करने के लिए, सभी प्रकार के शल्य कांटो का त्याग करने के लिए । पाप कर्म का निर्घात - नाश करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है ।

इस दृष्टि से कायोत्सर्ग का शास्त्रों में बहुत महत्व है । तीर्थंकर अधिकतम कायोत्सर्ग ही करते हैं । कायोत्सर्ग से जन्म जन्म के पाप धूलते चले जाते हैं ।वैसे व्यवहार की दुनिया में लोगस्स का ही विधान कायोत्सर्ग में ज्यादा है । हिलना डुलना बंद । काया पूरी तरह स्थिर, वचन से निःशब्द, होट भी नहीं हिलना, मन में अध्यवसायों में लोगस्स का परावर्तन । यह कायोत्सर्ग का प्रारंभिक रूप है।  इसमें आगे बढ़ते रहने की जरूरत है । काया का उपसर्ग याने शरीर के ऊपर आने वाले परिषह, उपसर्गों से भी विचलित नहीं होना।

उन्होंने कहा कि जब मन किसी एक विषय पर स्थित होता है तो उस पॉइंट पर विशेष शुद्धि होती है।आप किसी भी व्यक्ति को ध्यान से 2 मिनट भी देखते रहे तो वो आपकी आंखों का तेज सहन नहीं कर पाएगा । इसी प्रकार मन, दृष्टि सभी जब अंतरात्मा में स्थिर होती हो तो वह धूलकर साफ हो जाती है।इसलिए कायोत्सर्ग महत्वपूर्ण है ।नींद से थकान मिट जाती है ।इसका कारण है- शरीर का हिलना डुलना बंद हो जाता है ।आंख, नाक, कान सब बंद हो जाते हैं , इससे थकान मिट जाती है । कायोत्सर्ग में तो पांच इंद्रियां शांत निस्पंद होने से थकान भी मिट जाती है यही कारण है कि तीर्थंकर नींद न लेकर भी कायोत्सर्ग के माध्यम से सदा तरोताजा रहते हैं ।

हर व्यक्ति को सामायिक में सबसे पहले आत्मालोचन के रूप में अपने बीते 24 घंटों का चिंतन करना चाहिए। कितना समय व्यर्थ गंवाया, किससे क्या बातें कि वो सार्थक थी या नहीं। जो व्यर्थ का समय गंवाया, उसके लिए भविष्य में संकल्प करिए आगे समय सार्थक करें । व्यर्थ की बातों के लिए मिच्छामी दुक्कड़ं (माफी दीजिये) दीजिए।

 हर दिन व्यक्ति को कम से कम 4 लोगस्स का कायोत्सर्ग सोने से पहले करना ही चाहिए । कायोत्सर्ग से आत्मा में भव्यता की चमक आती है। बीते पापों का यह प्रायश्चित है, शल्यों का शुद्धिकरण है, कर्मों का भारी मात्रा में निर्घात करने के लिए पावाणं  कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं। पाप कर्मों के निर्घात के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। कई आधुनिक लोगों की धारणा है कि जो ध्यान भी करते हैं, सामायिक भी करते हैं फिर भी हर रोज पाप करते रहते हैं। ऐसी सामायिक ध्यान से क्या फायदा?

यह बात बाहर से देखने में ठीक लगती है लेकिन सोचने वाली बात है कि एक व्यक्ति लोटे में पानी भरकर रोज जंगल बाहर जाता है और रोज लोटे को मांज कर धोता है। यदि वो यह सोचले कि जब रोज ही लोटे को काम में लेना है तो धोया क्यों जाए और अगर वो धोना बंद कर दे तो लोटे में जंग लग जाएगा और जल्दी ही भंगार हो जाएगा। किसी काम का नहीं रहेगा । रोज रोज मांजने से, कम से कम वह काम का तो रहेगा। कंडीशन खराब नहीं होगी। इसी प्रकार जो रोज सामायिक करते हैं, भक्ति करते हैं। फिर भी रोज पाप करते हैं और फिर सामायिक, भक्ति करते हैं ।

तो कम से कम रोज-रोज आत्मा को धो तो रहे हैं । उस आत्मा पर पाप के भार का जंग नहीं लगेगा । वो जल्दी से भंगार की तरह बेकार नहीं होगी और जो आत्मा रोज-रोज सामाजिक करती है- उसके सुधरने के चांसेस ज्यादा हैं। लेकिन जो अपनी भक्ति को रोज रोज साफ नहीं करते हैं-  सामायिक भक्ति नहीं करते हैं उसकी आत्मा तो भंगार हो जाएगी। पाप के भार से डूब जाएगी ।अतः कुछ न करने की अपेक्षा प्रतिदिन कुछ न कुछ करना अच्छा है ।

जो व्यक्ति न तो सामायिक करते हैं, न नवकार का जाप, न गुरु दर्शन करते हैं , न सदाचरण । ऐसे लोग की आत्मा तो फिर भंगार ही होनी है।

दर्शनार्थीगण

 जयपुर से श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमान शांतिलाल जी साहब डोसी सपरिवार उपस्थित हुए इसके अतिरिक्त  अन्य दर्शनार्थी उदयपुर आदि विभिन्न गांवों से आकर लाभ ले रहे हैं।

आज की प्रभावना

श्रीमती विमलावंती जैन कमला नगर आगरा की ओर से लाभ लिया गया।

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