स्वतंत्रता आंदोलन में विज्ञान के गुमनाम नायकों को याद किया

 विज्ञान शिक्षकों के महा सम्मेलन पर कर्टेन रेजर

नई दिल्ली :- भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विज्ञान के गुमनाम नायकों को याद करने के लिए विज्ञान शिक्षकों के महा सम्मेलन पर कर्टेन रेजर कार्यक्रमों में कई शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुख एक साथ आए। इस वर्ष 17-18 नवंबर को होने वाले इस महा सम्मेलन का उद्देश्य विज्ञान शिक्षकों और छात्रों को स्वतंत्रता से पहले युग के दौरान देश की वैज्ञानिक समुदाय द्वारा किए गए संघर्षों और सत्याग्रहों के प्रति संवेदनशील बनाना है। विज्ञान प्रसार (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार का एक स्वायत्त संस्थान) तथा  वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (सीएसआईआर)-राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर) , और विज्ञान भारती (विभा) द्वारा विज्ञान शिक्षकों (स्कूल के साथ-साथ उच्च शिक्षा) के लिए संयुक्त रूप से (हाइब्रिड मोड) में  पिछले 25 और 26 अगस्त, 2021 को यह कर्टेन रेजर कार्यक्रम आयोजित किए गए थे।

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 इन कार्यक्रमों का आयोजन आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर किया जा रहा है। वर्ष भर चलने वाले इस विज्ञान समारोह में प्रदर्शनियों, सम्मेलनों, प्रतियोगिताओं, विज्ञान यात्राओं और प्रस्तुतियों के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर परस्पर सम्वाद किया जाएगा स्कूली छात्रों के माध्यम से जमीनी स्तर पर विज्ञान की जानकारी के अभिसरण (कन्वर्जेन्स) और प्रसार के लिए 17-18 नवंबर, 2021 को विज्ञान शिक्षकों के राष्ट्रीय स्तर के महा सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे।

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विज्ञान प्रसार से डॉ. बी. के. त्यागी ने स्वतंत्रता से पहले भारतीय विज्ञान के इतिहास और राष्ट्र निर्माण में वैज्ञानिकों और विज्ञान शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका का एक आशुचित्र (स्नैपशॉट) प्रस्तुत किया। उन्होंने दादा भाई नौरोजी का उल्लेख  किया जिन्होंने अकाल का सामना करने के बावजूद ब्रिटिश संसद में पश्चिम बंगाल से 4000 टन चावल निर्यात करने का मुद्दा उठाया था।, विज्ञान प्रसार  से वैज्ञानिक डॉ अरविंद सी. रानाडे, ने स्वतंत्रता संग्राम में कई भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान पर चर्चा की, जैसे राधानाथ सिकदर, जिन्होंने एवरेस्ट पर्वत  की की, महेंद्रलाल सरकार जिन्होंने इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस की स्थापना की और एक गणितज्ञ आशुतोष मुखर्जी , जिन्होंने कोलकाता में कॉलेज ऑफ साइंस की शुरुआत की ।

विज्ञान भारती (विभा-वीआईबीएचए) के राष्ट्रीय आयोजन सचिव, श जयंत सहस्रबुद्धे ने कहा कि “हमें अपने उत्सवों को केवल उन स्वतंत्रता सेनानियों तक सीमित नहीं रखना चाहिए, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, बल्कि हमें उन महान वैज्ञानिकों के सपनों को याद रखने की जरूरत है, जो इस दौरान प्रतिकूल परिस्थितियां होने पर भी अपनी वैज्ञानिक सोच के लिए खड़े रहे।" उन्होंने जगदीश चंद्र बोस के पहले सत्याग्रह का उल्लेख किया, जो उच्च अध्ययन के बाद ब्रिटेन से लौटे और भारत में अध्यापन करने लगे, लेकिन तीन साल तक कम वेतन न लेकर अंग्रेजों का विरोध किया। उन्होंने अपनी खुद की भौतिक प्रयोगशाला स्थापित की थी और सूक्ष्म  तरंग (माइक्रो वेव ) के बारे में बात करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। श्री सहस्रबुद्धे ने कहा कि अंग्रेजों ने न केवल हमारे धन को लूटा, बल्कि हमारे बीच हीन भावना पैदा करके हमारे आत्मविश्वास को भी तोड़ दिया।

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (सीएसआईआर)-राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर) की निदेशक 'आज़ादी का अमृत महोत्सव'  की  राष्ट्रीय संयोजक प्रो. रंजना अग्रवाल ने विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए साल भर चलने वाले समारोहों के कैलेंडर का सूचीबद्ध विवरण  दिया। इस संबंध मे ,भारतीय स्वतंत्रता में वैज्ञानिकों की भूमिका पर एक पुस्तक और पी.सी. राय की 2 अगस्त, 2021 को सौवीं जयंती पर एक वेब पोर्टल का विमोचन किया गया। सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर ने 16-18 अगस्त को एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था। आगामी कार्यक्रमों में 17-18 नवंबर को विज्ञान शिक्षक सम्मेलन, 12 जनवरी को कुलपतियों, आईआईटी, आईआईएम, यूजीसी, एआईसीटीई और अन्य राष्ट्रीय संस्थानों के निदेशकों के लिए अकादमिक नेताओं का सम्मेलन, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) द्वारा 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी, विभा, विज्ञान प्रसार और एनआईएससीपीआर, विज्ञान यात्रा, ऑडियो-विजुअल और पोस्टर प्रदर्शित करने के लिए पहियों पर प्रदर्शनी, विज्ञान फिल्म समारोह, वास्तुकार मॉडल, साहित्य मेला, आदि शामिल हैं ।

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संयुक्त आयुक्त (शिक्षाविद), नवोदय विद्यालय समिति के संयुक्त आयुक्त ज्ञानेंद्र कुमार ने सी. वी. रमन के नोबल पुरस्कार समारोह में भारतीय ध्वज के गुम हो जाने पर अपने साथ विश्वासघात महसूस किया। वहीं उन्होंने  भारत में विज्ञान के विकास के लिए पुरूस्कार के रूप में मिली पूरी राशि समर्पित कर दीI

केन्द्रीय माध्मिक शिक्षा परिषद (सीबीएसई) के निदेशक डॉ. बिस्वजीत साहा ने कहा कि छात्रों में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के बजाय अब भी माता-पिता और शिक्षक समान रूप से छात्र द्वारा अर्जित अंकों पर जोर देते हैं। उन्होंनेजोर देकर  कहा कि स्कूली पाठ्यक्रम में विज्ञान के इतिहास को शामिल करने से आवश्यक वैज्ञानिक सोच विकसित करने में मदद मिलेगी।

दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) के अतिरिक्त आयुक्त डॉ. ए. ताहिर ने क्षेत्र में मौजूद 340 विज्ञान प्रसार नेटवर्क (विपनेट) क्लबों पर प्रकाश डाला। उन्होंने तब और अब के संचार के संकेतन और कूट संकेतन (कोडिंग और डिकोडिंग) साधनों का भी उल्लेख किया। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के संयुक्त निदेशक श्री श्रीधर श्रीवास्तव ने स्वतंत्रता पूर्व समय के विज्ञान नायकों को उजागर करने के कदम की सराहना की।

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 भारतीय विश्वविद्यालय संघ की महासचिव डॉ. पंकजा मित्तल ने अपने विचार साझा करते हुए स्कूल के दिनों में पढ़ाए जाने वाले वैज्ञानिकों का जिक्र किया और कहा कि  हममें से किसी को भी पाठ्यपुस्तकों में किसी भारतीय वैज्ञानिक का नाम याद नहीं है। समीर भाटिया ने हॉटमेल का आविष्कार किया  लेकिन हम में से कोई भी इस तथ्य को नहीं जानता होगा। प्राचीन काल के गुरुकुलों की तरह हमें भी विद्यार्थियों के मन में जिज्ञासा विकसित करने की आवश्यकता है।

वैज्ञानिक एवं नवोन्मेषी अनुसन्धान अकादमी (साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च अकेडमी) के निदेशक प्रोफेसर आर. एस. सांगवान ने कहा कि "हमारे देश में विज्ञान जानकारियों की कोई कमी नहीं है, लेकिन इसके अनुप्रयोग को मजबूत करने की सख्त जरूरत है। इसके लिए विज्ञान का इतिहास और स्वतंत्रता-पूर्व युग में वैज्ञानिकों की भूमिका  एक उत्प्रेरक का काम करेगी।

अमेरिका में नेशनल एयरोनौटिक्स एंड स्पेस एडमिनिसट्रेशन (एनएएसए)  - नासा में 40% भारतीय वैज्ञानिकों का उल्लेख करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर पी.के. जोशी  ने अपने स्वयं के वैज्ञानिकों को विकसित करने और बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन श्री बलराम पाणि  ने भी अपने विचार व्यक्त किए और भारतीय पारंपरिक प्रणाली को विज्ञान से जोड़ा।

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने कहा कि यदि हम अतीत को जानेंगे तभी  हम विज्ञान के विकास में और योगदान दे सकेंगे।

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