रक्षा बन्धन पर्व विख्यात'

 




गाकर मङ्गल गीत तुम्हारे 

मिला नेह वात्सल्य अपार

रक्षा कंकण बांध के पाया

नमित शीश ने आशीर्वाद

भगवन तुमसे मैं क्या मांगूं

स्वयं मिल रहा अपने आप

जीवन क्लेश कषाय रहित हो

दूर रहे   सब मिथ्या भाव।


रक्षा पर्व का बन्धन बस इतना

कर्म पथ पर चलना निष्पाप

बहिनें मंगल भाव से कहती      

मातपितु कीरक्षा करना आप

महायती विष्णु  ने उपसर्ग हरा

अकंपनाचार्य ससंघ का आज 

धन्य संस्कृति और धन्य धरा जहां

रक्षा बन्धन पर्व सु जग विख्यात।

महावीर प्रसाद जैन

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