मौत भी डरा नहीं पाई इन कोरोना योद्धाओं को

 इनके जज्बे को सलाम...

● अब तक 3000 से अधिक मृतकों का किया दाह-संस्कार

● जब लगा डर के आगे ही जिंदगी है


मीरा-भाईंदर :- 
कोरोनाकाल के विगत डेढ़ साल में कोरोना योद्धा के रूप में आप डॉक्टर, नर्स, पुलिस, सफाईकर्मी इत्यादि से रूबरू हुए होंगे लेकिन आज हम आपको ऐसे कोरोना योद्धाओं से रूबरू करवाएंगे जिनके काम को अभी तक वो सम्मान नही मिला है जिसके वे हकदार है। मीरा-भाईंदर मनपा के शवविच्छेदन केंद्र व शवगार में कार्यरत कर्मचारी असली मायने में कोरोनायोद्धा है। जब किसी कोरोना मृतक के शरीर को उसका कोई परिजन छूने को तैयार नही होता था तब इन्ही कर्मचारियों ने उनका दाह-संस्कार किया था। सरकारी आंकड़े कुछ भी कहे लेकिन इन योद्धाओं ने अब तक 3000 से अधिक मृतकों का अंतिम संस्कार किया है।

जब लगा डर के आगे ही जिंदगी है

मनोज सिंह इन कर्मचारियों के सुपरवाइजर है।वे कहते है कि पहले तो 7-8 लोग मृतकों के अंतिम संस्कार का काम करते थे लेकिन दूसरी लहर ने कोहराम मचा दिया था। वे कहते है कि लोग आते थे और डर के कारण दो-तीन दिन काम करके चले जाते थे। मनोज बताते है कि 25 से ज्यादा लोग 10-15 दिन में ही काम छोड़कर चले गये। अंततः उन्होंने अपने कर्मचारियों को हौसला देना शुरू किया। वे कहते है कि कोरोना सच्चाई है और इससे लड़कर ही जीत सकते है भागकर नही। आज कुल 21 युवक कोरोना मरीज़ो का दाह-संस्कार कर रहे है। मनोज कहते है कि डर के आगे जिंदगी है।

समाज से ही नही परिवार से भी लड़ना पड़ा

राहुल ठाकुर (23) विगत 15 महीनों से यह काम कर रहे है। वे बताते है कि शुरुआत में कोरोना मरीजों के अंतिम संस्कार में स्थानीय लोग बहुत परेशानी पैदा करते थे। समाज के अलावा परिवार से भी उनको लड़ना पड़ा। उनके परिवारवाले उन्हें बार-बार यह काम छोड़ने को कहते थे। राहुल कहते है कि किसी को तो यह काम करना ही था। परिवार को ध्यान ने रखते हुए ये सभी कर्मचारी शवगाह के पास ही एक कमरे में सो जाते है। गौरतलब है कि प्रशासन की तरफ से इन्हें खाने-पीने और आराम करने की कोई विशेष व्यवस्था नही की गई है। आज भी उन्हें वो सम्मान नही मिला है जिसके वे हकदार है।


बीमारीं ने शरीर को कमजोर किया लेकिन हौसला नही

मनोज, राहुल की तरह 21 लोग यह काम करते है। सभी 19 से 32 साल के युवा है। इनमें से कई लोगों को कोरोना ने अपनी चपेट में भी लिया था। अच्छी बात यह रही कि सभी ठीक होकर काम पर लौट आये। मनोज भी कोरोना पीड़ित हुए थे। वे बताते है कि कोरोना से उनका शरीर भले कमजोर किया हो लेकिन उनके हौसले को नही। आज इन योद्धाओं को नमन करने का समय है।











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