प्रतिक्रमण का उपदेश या उपकरण देने का फल

जैन धर्म मे प्रतिक्रमण या उपकरण देने का अत्यधिक लाभ बताया हैं।

संकलन :- आचार्य अजितशेखर सूरीश्वरजी म.सा.



1) 10 हजार गायों का एक गोकुल होता हैं,ऐसे दस हजार गोकुल का दान देने से जो पुण्यउपार्जन होता हैं उतना पुण्य किसी को प्रतिक्रमण करने का उपदेश देने से होता हैं।

2) 84 हजार दानशाला बांधने से जितना पूण्य मिले उतना पूण्य गुरु को दद्वादशावर्त वंदन करने से होता हैं।

3) 5500 सोना मोहर खर्च करके जीवाभिगम पन्नवणा भगवती सूत्र आदि लिखाने से या 5500 गायों को अभयदान देने से जो पुण्य मिले उतना पूण्य एक मुहपत्ति देनेवाला प्राप्त कर सकता हैं।

4) 25 हजार शिखरबंधी जिनालय बांधने से या 100 स्तंभ युक्त 52 जिनालय बांधने से जितना पूण्य मिलता हैं,उतना एक चरवले के दान करने से होता हैं।

5) मासक्षमण की तपस्या करने से या जीव रक्षा के लिए क्रोड पिंजरा बनाने से जो पूण्य मिले वह एक बेटका (कतासना) देने से मिलता हैं।

6) 500 धनुष प्रमाण 28 हजार प्रतिमा भराने से जो पूण्य होता हैं वह एक समय इरियावहिं करने से होता हैं।

7) जो मणिजड़ित स्वर्ण की सिडीयुक्त हजार स्तंभयुक्त ऊंचा स्वर्ण के तलवाला श्री जिनमंदिर निर्माण करवाता हैं, उससे भी ज्यादा फल तपयुक्त एक पौषध करने से मिलता हैं।

8) 1 लाख योजन प्रमाण जम्बूदीप में जितने पर्वत हैं वे सब कदाचित सुवर्ण के हो जाये और जम्बूदीप में जितनी धूल (रेती) हैं,उस रेती के सब कण कदाचित रत्न बन जाएं,इन सबको कोई दान करे तो भी एक दिन में लगे पाप की शुद्धि नहीं हो सकती।


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