कल्पसुत्र ग्रंथ श्रद्धा से सुननेवाला जीवन को श्रेष्ठ बनाता है।:- राजतचंद्र विजय

कल्पसूत्र के समान कोई ग्रंथ नही :- 

झाबुआ :-  श्री पर्युषण महापर्व के चौथे दिवस 06 सिंतबर को सुबह परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी महाराज साहेब के आज्ञानुवर्ती मुनिराज श्री रजतचन्द्र विजयजी और मुनिश्री जीतचन्द्र विजयजी ने महान ग्रंथ "कल्पसूत्र का वांचन प्रारम्भ किया। कल्पसूत्र ग्रंथ को वाजते गाजते उमेश भावेश मेहता परिवार के निवास स्थान से श्री ऋषभदेव बावन जिनालय लाया गया और तीन प्रदक्षिणा दी गयी। इसके बाद ग्रंथ को विधिपूर्वक मेहता परिवार ने ग्रंथ गुरुभगवंतों को वोहराया।

 डॉ प्रदीप संघवी परिवार ने कल्पसूत्र ग्रंथ को वधाया। इसके बाद ग्रंथ का प्रथम  वासाक्षेप पूजा मनोहर छाजेड, दूसरी मांगुबेन सकलेचा , तीसरी ओ एल जैन , चौथी धर्मचन्द्र मेहता लीलाबेन भंडारी परिवार ने मन्त्रोच्चार के साथ किया। ग्रंथ की अष्टप्रकारी पूजन का लाभ यशवंत भण्डारी और आरती मांगुबेन सकलेचा परिवार ने लिया। कल्पसूत्र ग्रंथ का वांचन करते हुए मुनिश्री ने कहा की "यह पवित्र ग्रंथ है क्योंकि जिसको बालावबोध ,भी कहते हे श्री राजेंद्र सूरीश्वरजी म सा द्वारा संकलित हे। पर्युषण पर्व मे इसे साधु भगवंत को प्रवचन करना अनिवार्य होता हे | मुनिश्री ने वांचन प्रारम्भ करते हुए बताया की इसके समान कोई ग्रंथ नही हे। जो भी श्रावक अट्ठम तप कर श्रध्दाभाव से कल्पसूत्र को सुनता हे वह अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाता, हे उसके जीवन मे आने वाली आपदा दुर होतीहैं।कर्म हल्के होते और 8 भव मे मोक्ष प्राप्त करता हे।

 मुनिश्री ने कल्पसूत्र का वांचन करते हुए कहाँ की महावीर के साधु के लिये 10 आचार बताये हे | साधु को 5 महाव्रतों का पालन अनिवार्य होता हे | जिसने बडी दीक्षा पहले ली तो वह बडा साधु कहलाता हे |मुनि श्री ने बताया की यह ग्रंथ पाप निवारक हे , शाश्वत सुख प्रदान करने वाला होता हे | सभी सूत्रों मे श्रेष्ठ सूत्र होता हे। इस ग्रंथ मे साधु साध्वी श्रावक श्राविकाओ के कर्तव्यों का विस्तॄत वर्णन पुज्य श्री ने बातायें। कल्प सूत्र के अनुसार प्रत्येक साधु साध्वी को चेत्य परिपाटी , केश लोच करना , कल्प सूत्र का वांचन करना चाहिए। श्रावकों को तप ,श्रुत ज्ञान की भक्ति , आदि करना चाहिए | 

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