मीरा भायंदर का नाईक परिवार 217 वर्षों से बप्पा की सेवा कर रहा है

एक साथ दो मूर्ति विराजमान करने की अनोखी परंपरा

इस वर्ष लायी मूर्ति का अगले वर्ष होता है विसर्जन

छठी पीढ़ी परंपरा को आगे बढ़ाने को तैयार


मीरा-भाईंदर :- भा
ईंदर पश्चिम का नाईक परिवार विगत 217 वर्षों से बप्पा की दो मूर्तियों को विराजमान कर अनोखी परंपरा का निर्वाह कर राह है। वर्ष 1804 में अनंत नाईक द्वारा शुरू हुई ये परंपरा अब पांचवी पीढ़ी से आगे बढ़ छठी पीढ़ी के तक पहुँच चुकी है। गौरतलब है कि जो मूर्ति इस वर्ष लायी जाती है उसका प्राण प्रतिष्ठान अगले वर्ष गणेश चतुर्थी को कर अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन किया जाता है। इको-फ्रेंडली गणपति की संकल्पना भले नयी हो लेकिन नाईक परिवार में विगत 217 वर्षों से इको-फ्रेंडली मूर्तियां ही लेकर आते है।

संतान चाह में शुरू हुई 'दो मूर्तियों' की परंपरा

परिवार की चौथी पीढ़ी की संपदा सुरेश नाईक (59) बताती है कि उनके परिवार का इस शहर में आगमन 18वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बाजीराव पेशवा के छोटे भाई चिमाजी अप्पा के पुर्तगालियों पर विजय के साथ ही हुआ था। वे बताती है कि वर्ष 1804 में उनके परदादा ससुर ने संतान उत्पति की चाह में दो मूर्तियों की स्थापना की परंपरा शुरू की थी तब से यह परंपरा अनवरत जारी है।

18 वर्ष के बच्चों को कंठस्थ संस्कृत के श्लोक

अब परिवार की छठी पीढ़ी भी अपने पूर्वजों की परंपरा का निर्वाह पूरे उत्साह से करने को तैयार है। निधि  (18) , शिवांश (22) और निमिष (22) को संस्कृत के श्लोक कंठस्थ है। निमिष कहते है कि वे बचपन से ही 'गणपति अथर्वशीर्ष' सुनते आ रहे है,उन्हें आज तक किताब की जरूरत ही नही पड़ी। परिवार की सभी बहुएं को भी संस्कृत के मंत्र, श्लोक और ऋचाये कंठस्थ है।

सभी धर्म के लोग करते है बप्पा के दर्शन

योगेश नाईक (50) कहते है कि उनके घर बप्पा के दर्शन करने सभी जाति और धर्म के लोग आते है। इतनी पुरानी परंपरा का निर्वाह परिवार के सभी सदस्यों के सहयोग, समर्पण और भक्ति के बिना संभव ही नही है। वे कहते है कि उनकी अगली पीढ़ी इस परंपरा को बड़े उत्साह से आगे बढ़ाने के लिए तैयार हो रही है।

Attachment :-

1. पहलीं और दूसरी तस्वीर अभी की है।
चित्र में 5वी और 6ठी पीढ़ी दिखाई दे रही है।

2. तीसरी तस्वीर में तीसरी पीढ़ी के दिवाकर पांडुरंग नाईक पूजा करते हुए

3. चौथी तस्वीर में चौथी पीढ़ी से वर्षा नाईक और सीमा नाईक

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