मजदूरों का सहारा बनी नदियां
उन्नीस नदियों के सहारे यूपी आए मजदूर बेचारे
राकेश दुबे /मुंबई
अब उत्तर प्रदेश की नदियां यूपी के मजदूरों का सहारा बनेंगी। उन्हें रोजगार देंगी और पैसा भी। उनके घाव पर मरहम लगाएंगी। घाव पर मरहम इसलिए कि विभिन्न शहरों और महानगरों से अपने गृह राज्य की ओर लौट रहे मजदूरों को तरह – तरह की परेशानियां, यातनाएं और दुर्दशा झेलनी पड़ी हैं। घर लौटने की इसी जद्दोजहद में न जाने कितने ही मजदूर अपनी जान गंवा चुके। उनके साथी जो मौत से बच गए, वे अपनों को खोकर अपने गांव पहुंच चुके हैं। कितने ही मजदूर हजारों किलोमीटर की लंबी यात्रा पैदल ही तय कर अपने गांव पहुंचे हैं। तो कितने सरकार द्वारा चलाई जा रही श्रमिक स्पेशल रेल गाड़ियों में सफर कर अपने गांव पहुंच रहे हैं तो कितने ही मजदूर अब भी श्रमिक स्पेशल से अपने गांव लौटने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। बहुतेरे मजदूर साइकिल से तो बहुत से ऑटोरिक्शा, तो कोई टेंपो और ट्रकों में भेड़ - बकरियों की तरह ठूंसे अपने घरों को लौट आए हैं। अभी भी बहुत से मजदूर अपने घरों को जाने की बाट जोह रहे हैं। अपने गांव, अपने घर लौटना उनकी मजबूरी थी और उन्हें मजबूर भी किया गया कि वे अपने गांव वापस लौट जाएं।
अब इन्हीं लौटे मजदूरों का सहारा बनने जा रही हैं उत्तर प्रदेश की उन्नीस नदियां। उत्तर प्रदेश वालों को भी शायद यह नहीं पता होगा कि आखिर उनके प्रदेश में कितनी नदियां प्रवाहित होती हैं। तीन चार नदियों गंगा, यमुना, गोमती, वरुणा, बसुही आदि के नाम तो लोगों को पता हैं। मगर उन्नीस नदियां, वह भी केवल उत्तर प्रदेश में। इसकी जानकारी प्रदेश में बहुतों को नहीं मालूम। यहां हम आप सभी को बताना चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कुल उन्नीस नदियां बहती हैं। इनमें गंगा, यमुना, गोमती, घाघरा, कर्मनाशा, गंडक, वरुणा, रिहंद, पांडो, ईसन, राप्ती, सोन, तमसा, केन, चंबल, बेतवा और सई नदी प्रमुख हैं।
उत्तर प्रदेश की सरकार प्रवासी कामगारों और श्रमिकों की बड़ी संख्या को देखते हुए उन्हें इन नदियों की साफ – सफाई से लेकर उनके सौंदर्यीकरण के कामों में लगाना चाहती है। कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण प्रदेश में लंबे लॉकडाउन से बड़ी आबादी प्रभावित हुई है। इनमें प्रवासी कामगार व श्रमिकों की संख्या काफी अधिक है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश लौटने वाले इन सभी को घर में ही रोजगार देने की मुहिम छेड़ रखी है। सीएम की योजना सभी को उनकी कार्य क्षमता के अनुसार प्रदेश में ही रोजगार देने की है। सरकार इस कठिन दौर में 'हर हाथ को काम मिले की नीति' पर काम कर रही है।
जानकारी के मुताबिक सरकार सूक्ष्म, मध्यम तथा लघु उद्योग में काम के बड़े अवसर तलाश कर उनमें मजदूरों को काम देने की प्रक्रिया में है। सरकार ने अपने घर वापस लौटे 26 लाख प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने का वादा किया है। अपने इस वादे को वह कैसे निभा पाएगी? क्या सरकार काम के इतने अवसर तलाश लेगी कि 26 लाख लोगों को रोजगार दे सके? वैसे उत्तर प्रदेश सरकार हर हाथ रोजगार, हर हाथ काम को लेकर बड़ी कवायद में लगी है। वह वापस लौटे कामगारों और श्रमिकों को रोजगार देने की बड़ी तैयारी में है। योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के निवेशकों से कहा है कि उनके योगदान से प्रदेश में स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन को गति मिलेगी। इसलिए वे प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा निवेश करें। जिससे कल – कारखानों में बढ़ोत्तरी के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी प्राप्त होगा।
इसी कड़ी में पिछले दिनों यूपी में प्रवासी कामगार व श्रमिकों को रोजगार देने के लिए मुख्यमंत्री ने चार बड़े करार (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। इसमें रियल एस्टेट में ढाई लाख, इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन में पांच लाख, लघु उद्योग में दो लाख और सीआईआई में दो लाख लोगों को रोजगार देने पर एमओयू साइन किया गया। इस हिसाब से देखा जाए तो सरकार अब तक साढ़े ग्यारह लाख लोगों को रोजगार देने की दिशा में पहल कर चुकी है। अब इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए वह प्रदेश की नदियों की स्वच्छता और उनके सौंदर्यीकरण के काम से मजदूरों को रोजगार मुहैया कराना चाहती है। ऐसा कर उसकी मंशा एक ओर जहां मजदूरों को रोजगार देने की है, तो वहीं दूसरी ओर वह उत्तर प्रदेश की नदियों का कायाकल्प कर पर्यटकों को उनकी ओर आकर्षित कर सकती है। अपने इस प्रयास में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कितना सफल होती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा। मगर इस बात के लिए योगी सरकार की सराहना करनी होगी कि आखिर सरकार ने इस ओर पहल करते हुए प्रवासी मजदूरों और राज्य के लोगों के रोजगार के लिए एक कदम आगे तो बढ़ाया है।
इस तरह का काम और इस तरह की पहल पूर्ववर्ती सरकारों को करनी थी। मगर इसके पहले उत्तर प्रदेश की किसी भी सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया। यदि पहले की सरकारों ने ऐसा किया होता तो शायद उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को किसी अन्य राज्य में जाकर मजदूरी करने और कोरोना जैसे किसी संकट के समय ऐसी जलालत सहने की नौबत न आती। एक बहुत ही पुरानी कहावत याद आ रही है – चना चबेना गंग जल, जो पुरवैं करतार, काशी कभी न छोड़िए, विश्वनाथ दरबार। उत्तर प्रदेश के श्रमिकों और मजदूरों को उनके अपने राज्य में रोजगार या पर्याप्त कमाई का जरिया मिलता तो वे क्यों किसी अन्य राज्य में रोजी रोटी की तलाश में जाते। उत्तर प्रदेश की अब तक की सरकारों को शायद अपने राज्य के श्रमिकों के बाहुबल पर भरोसा नहीं था। अगर उत्तर प्रदेश के श्रमिक किसी अन्य राज्य के शहरों और महानगरों की कायापलट सकते हैं, उन्हें बेहतर और श्रेष्ठ बना सकते हैं, तो अपने प्रदेश को वे और अधिक सुंदर और श्रेष्ठ बना सकते हैं। अब आवश्यकता इस बात की है कि राज्य के श्रमिकों खासकर अपने गृह राज्य वापस लौटे श्रमिकों को रोजगार देकर उनका और उनके बाहुबल का सम्मान किया जाए। ताकि वे किसी और राज्य में जाकर मजदूरी करने को मजबूर न हों। तभी घर लौटे मजदूरों के घाव पर सही मायने में मरहम लग सकता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार एवं मीडिया विशेषज्ञ हैं – editordubey@gmail.co
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