सहनशीलता, क्षमा, दया को जग पूजता है
स्वयं को सक्षम करें
क्षमा शोभती उस भुजंग( Cobra) को जिसके पास गरल (Poison) हो उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो।
अर्थात क्षमा भी शक्तिशाली व्यक्तियों को ही शोभा देती है, कमजोर व्यक्ति जो स्वयं डरे हुए हैं वह क्या किसी को क्षमा करेंगे ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।
आपकी क्षमा की कीमत भी तभी होती है जब उसके पीछे आपकी ताकत छुपी होती है।
इतिहास गवाह है कभी कोई ताकतवर व्यक्ति अथवा देश किसी कमजोर के मित्र नहीं हुए। सक्षम लोगों को अगर अपना मित्र बनाना है तो सबसे पहले स्वयं को सक्षम बनाना है।
रामायण का एक प्रसंग है जहां प्रभु राम को समुद्र पार करके जाना है किंतु समुद्र अपने घमंड के कारण उन्हें जाने का मौका नहीं देता है। प्रभु राम स्वयं उनसे प्रार्थना करते हैं एवं 3 दिनों तक प्रतीक्षा करते हैं किंतु समुद्र है कि उन्हें मौका ही नहीं देता।और अंत में प्रभु श्रीराम को धैर्य छोड़कर अपना धनुष-बाण उठाना पड़ता है तब समुद्र देवता स्वयं प्रकट होकर उसे क्षमा याचना करते हैं और उन्हें पार जाने की युक्ति बताते हैं।
इसी घटना को लेकर तुलसीदास जी ने यह दोहा लिखा था -
बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिन होय न प्रीत।।
इसीलिए चाहे कोई व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र जब तक आप स्वयं सक्षम नहीं होते हैं तब तक आपको लोग मित्रवत सम्मान नहीं देंगे । इस संसार में अगर आप शांति एवं अपनी उन्नति चाहते हैं तो अपने आप को एवं राष्ट्र को हर तरह से सक्षम बनाइए । क्योंकि संसार का यह नियम है कि सभी सक्षम के साथ रहना पसंद करते हैं।
श्रीप्रकाश केशरदेव जालुका
【लेखक माइंड एंड मेमोरी कोच ग्राफ़ोलॉजिस्ट( हैंडराइटिंग एंड सिगनेचर एनालिस्ट)】
क्षमा शोभती उस भुजंग( Cobra) को जिसके पास गरल (Poison) हो उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो।
अर्थात क्षमा भी शक्तिशाली व्यक्तियों को ही शोभा देती है, कमजोर व्यक्ति जो स्वयं डरे हुए हैं वह क्या किसी को क्षमा करेंगे ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।
आपकी क्षमा की कीमत भी तभी होती है जब उसके पीछे आपकी ताकत छुपी होती है।
इतिहास गवाह है कभी कोई ताकतवर व्यक्ति अथवा देश किसी कमजोर के मित्र नहीं हुए। सक्षम लोगों को अगर अपना मित्र बनाना है तो सबसे पहले स्वयं को सक्षम बनाना है।
रामायण का एक प्रसंग है जहां प्रभु राम को समुद्र पार करके जाना है किंतु समुद्र अपने घमंड के कारण उन्हें जाने का मौका नहीं देता है। प्रभु राम स्वयं उनसे प्रार्थना करते हैं एवं 3 दिनों तक प्रतीक्षा करते हैं किंतु समुद्र है कि उन्हें मौका ही नहीं देता।और अंत में प्रभु श्रीराम को धैर्य छोड़कर अपना धनुष-बाण उठाना पड़ता है तब समुद्र देवता स्वयं प्रकट होकर उसे क्षमा याचना करते हैं और उन्हें पार जाने की युक्ति बताते हैं।
इसी घटना को लेकर तुलसीदास जी ने यह दोहा लिखा था -
बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिन होय न प्रीत।।
इसीलिए चाहे कोई व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र जब तक आप स्वयं सक्षम नहीं होते हैं तब तक आपको लोग मित्रवत सम्मान नहीं देंगे । इस संसार में अगर आप शांति एवं अपनी उन्नति चाहते हैं तो अपने आप को एवं राष्ट्र को हर तरह से सक्षम बनाइए । क्योंकि संसार का यह नियम है कि सभी सक्षम के साथ रहना पसंद करते हैं।
श्रीप्रकाश केशरदेव जालुका
【लेखक माइंड एंड मेमोरी कोच ग्राफ़ोलॉजिस्ट( हैंडराइटिंग एंड सिगनेचर एनालिस्ट)】
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