साल 2020 का दूसरा चंद्र ग्रहण -
भारत में भी होगा कल चंद्रग्रहण
पारसमुनि म.सा.
चंद्रग्रहण का समय
ये ग्रहण वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र में होने वाला है। चंद्रग्रहण 5 जून को लगेगा।
रात के 11 बजकर 16 मिनट से ग्रहण स्पर्श
12 बजकर 54 मिनट पर पूर्ण चंद्रग्रहण
सुबह 2 बजकर 32 मिनट ग्रहण पूर्ण
इस चंद्रग्रहण की कुल अवधि 3 धंटे 15 मिनट की होगी।
ये उपच्छाया ग्रहण होगा. ये ग्रहण भारत, यूरोप, अफ्रीक, एशिया और ऑस्ट्रेलिया में दिखाई देगा.
58 साल बाद शनि के मकर राशि में वक्री रहते एक महीने में दो चंद्र और एक सूर्य ग्रहण*
58 साल पहले 1962 में 17 जुलाई को मांद्य चंद्र ग्रहण, 31 जुलाई को सूर्य ग्रहण और 15 अगस्त को पुन: मांद्य चंद्र ग्रहण हुआ था। उस समय भी शनि मकर राशि में वक्री था। 5 जून एवं 5 जुलाई के दोनों चंद्र ग्रहण मान्द्य हैं।
अभी 5 जून को ज्येष्ठ की मास की पूर्णिमा है। 21 जून को ज्येष्ठ मास की अमावस्या है। 5 जुलाई को आषाढ़ मास की पूर्णिमा है। इन तीनों तिथियों पर ग्रहण होंगे। हिन्दी पंचांग के अनुसार एक ही माह में तीन ग्रहण होने वाले हैं।
चंद्र ग्रहण क्यों लगता है?
जैनदर्शन अनुसार ग्रहण
जैनदर्शन अनुसार सूर्य के विमान के नीचे जब राहु का विमान आता है तब सूर्य ग्रहण होता है, और जब चंद्र के विमान के नीचे राहु का विमान आता है तब चंद्र ग्रहण होता है। और चंद्रग्रहण हमेशा पूनम को ही होता है और सूर्य ग्रहण अमावस को ही होता है।
जैनदर्शन ग्रहण को मानता है मगर उसे सिर्फ शास्त्र स्वाध्याय के लिए ही मानता है दूसरी कोई चीजों के लिए ग्रहण को नहीं मानता।
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं अनुसार ग्रहण:
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं अनुसार राहु केतु को सूर्य और चंद्रमा का दुश्मन माना जाता है। हिन्दू धर्म में देव और असुरों की कहानी बताई जाती है। पौराणिक कथा अनुसार बात समुद्र मंथन के समय की है जब देवताओं और दानवों में अमृत का पान करने को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। उस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके देवताओं को अमृत पिलाने के उदेश्य से देव और असुरों को अलग अलग बैठा दिया। लेकिन दानव राहु को ये एक चाल समझ आई जिस कारण वो अपना रूप बदलकर देवताओं की लाइन में आकर बैठ गया। राहु को ऐसा करते सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया। जिसकी जानकारी उन्होंने तुरंत विष्णुजी को दे दी। श्री हरि ने अपना सुदर्शन चक्र निकालकर राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। मगर राहु अमृत का पान कर चुका था जिस कारण वो अमर हो गया। तब से राहु चंद्रमा और सूर्य को अपना दुश्मन मानने लगा।
हिंदू धर्म में ग्रहण को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण तो अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण लगता है।अमावस्या के दिन ये दोनों ग्रह सूर्य का तो पूर्णिमा के दिन चंद्र का ग्रास कर लेते हैं जिससे चंद्र कुछ समय के लिए छिप जाता है। इसी घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
खगोलशास्त्र के अनुसार ग्रहण-
खगोलशास्त्र के अनुसार है जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है तब चंद्रमा तक सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं, इसी से चंद्र ग्रहण लगता है।
*2020 में 4 चंद्र ग्रहण लगेंगे। इस साल पड़ने वाले सभी चंद्र ग्रहण उपछाया चंद्र ग्रहण या मांद्य चंद्र ग्रहण ही होंगे। इसलिए किसी भी ग्रहण का सूतक नहीं लगेगा। धार्मिक कार्य भी किये जा सकेंगे। मांद्य चंद्रग्रहण याने उपच्छाया चंद्रग्रहण होने के कारण इसका असर नहीं पड़ेगा। वैदिक काल में उपच्छाया ग्रहण को ग्रहण की श्रेणी में नहीं रखा गया है। इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा।लेकिन कुछ लोग इसके सूतक काल को मान सकते हैं। ग्रहण के पहले सूतक काल लग जाता है। चंद्रग्रहण में नौ घंटे और सूर्यग्रहण में 5 घंटे पहले से सूतक काल आरंभ हो जाता है। सूतक काल को अशुभ माना जाता है। इसमें किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता। किसी भी राशि पर भी इन दोनों चंद्र ग्रहण का असर नहीं होगा।
क्या होता है उपच्छाया चंद्र ग्रहण :
चंद्र ग्रहण को उपछाया चंद्र ग्रहण या मांद्य चंद्र ग्रहण कहा गया है। मंद पड़ने की क्रिया को मांद्य कहा जाता है।ये ग्रहण तब होता है जब सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी घूमते हुए आती है, लेकिन वे चंद्र की उपछाया में आते ही वापस निकल जाती है। इस चंद्र ग्रहण में चंद्रमा का धूंधला बिंब दिखाई देता है और करीब 90 फीसद भाग मैला दिखाई देगा।इस दौरान पृथ्वी चंद्र की वास्तविक छाया भू-भाग में प्रवेश नहीं करती। इसलिए उपछाया के समय चंद्रमा का बिंब केवल धुंधला दिखाई देता है, काला नहीं होता। चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करेगा और उसी से बाहर निकल जाएगा।इसलिए ये उपच्छाया चंद्र ग्रहण होता है न कि वास्तविक चंद्र ग्रहण।
इस साल होनेवाले सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण
10 जनवरी - चंद्र ग्रहण
5 जून - चंद्र ग्रहण
21 जून - सूर्य ग्रहण
5 जुलाई - चंद्र ग्रहण
30 नवंबर -चंद्र ग्रहण
14 दिसंबर - सूर्य ग्रहण
😷✋🏻 लेखक गोंडल संप्रदाय के महामंत्र प्रभावक पू.जगदीशमुनि म.सा. के सुशिष्य हैं.
पारसमुनि म.सा.
चंद्रग्रहण का समय
ये ग्रहण वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र में होने वाला है। चंद्रग्रहण 5 जून को लगेगा।
रात के 11 बजकर 16 मिनट से ग्रहण स्पर्श
12 बजकर 54 मिनट पर पूर्ण चंद्रग्रहण
सुबह 2 बजकर 32 मिनट ग्रहण पूर्ण
इस चंद्रग्रहण की कुल अवधि 3 धंटे 15 मिनट की होगी।
ये उपच्छाया ग्रहण होगा. ये ग्रहण भारत, यूरोप, अफ्रीक, एशिया और ऑस्ट्रेलिया में दिखाई देगा.
58 साल बाद शनि के मकर राशि में वक्री रहते एक महीने में दो चंद्र और एक सूर्य ग्रहण*
58 साल पहले 1962 में 17 जुलाई को मांद्य चंद्र ग्रहण, 31 जुलाई को सूर्य ग्रहण और 15 अगस्त को पुन: मांद्य चंद्र ग्रहण हुआ था। उस समय भी शनि मकर राशि में वक्री था। 5 जून एवं 5 जुलाई के दोनों चंद्र ग्रहण मान्द्य हैं।
अभी 5 जून को ज्येष्ठ की मास की पूर्णिमा है। 21 जून को ज्येष्ठ मास की अमावस्या है। 5 जुलाई को आषाढ़ मास की पूर्णिमा है। इन तीनों तिथियों पर ग्रहण होंगे। हिन्दी पंचांग के अनुसार एक ही माह में तीन ग्रहण होने वाले हैं।
चंद्र ग्रहण क्यों लगता है?
जैनदर्शन अनुसार ग्रहण
जैनदर्शन अनुसार सूर्य के विमान के नीचे जब राहु का विमान आता है तब सूर्य ग्रहण होता है, और जब चंद्र के विमान के नीचे राहु का विमान आता है तब चंद्र ग्रहण होता है। और चंद्रग्रहण हमेशा पूनम को ही होता है और सूर्य ग्रहण अमावस को ही होता है।
जैनदर्शन ग्रहण को मानता है मगर उसे सिर्फ शास्त्र स्वाध्याय के लिए ही मानता है दूसरी कोई चीजों के लिए ग्रहण को नहीं मानता।
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं अनुसार ग्रहण:
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं अनुसार राहु केतु को सूर्य और चंद्रमा का दुश्मन माना जाता है। हिन्दू धर्म में देव और असुरों की कहानी बताई जाती है। पौराणिक कथा अनुसार बात समुद्र मंथन के समय की है जब देवताओं और दानवों में अमृत का पान करने को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। उस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके देवताओं को अमृत पिलाने के उदेश्य से देव और असुरों को अलग अलग बैठा दिया। लेकिन दानव राहु को ये एक चाल समझ आई जिस कारण वो अपना रूप बदलकर देवताओं की लाइन में आकर बैठ गया। राहु को ऐसा करते सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया। जिसकी जानकारी उन्होंने तुरंत विष्णुजी को दे दी। श्री हरि ने अपना सुदर्शन चक्र निकालकर राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। मगर राहु अमृत का पान कर चुका था जिस कारण वो अमर हो गया। तब से राहु चंद्रमा और सूर्य को अपना दुश्मन मानने लगा।
हिंदू धर्म में ग्रहण को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण तो अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण लगता है।अमावस्या के दिन ये दोनों ग्रह सूर्य का तो पूर्णिमा के दिन चंद्र का ग्रास कर लेते हैं जिससे चंद्र कुछ समय के लिए छिप जाता है। इसी घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
खगोलशास्त्र के अनुसार ग्रहण-
खगोलशास्त्र के अनुसार है जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है तब चंद्रमा तक सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं, इसी से चंद्र ग्रहण लगता है।
*2020 में 4 चंद्र ग्रहण लगेंगे। इस साल पड़ने वाले सभी चंद्र ग्रहण उपछाया चंद्र ग्रहण या मांद्य चंद्र ग्रहण ही होंगे। इसलिए किसी भी ग्रहण का सूतक नहीं लगेगा। धार्मिक कार्य भी किये जा सकेंगे। मांद्य चंद्रग्रहण याने उपच्छाया चंद्रग्रहण होने के कारण इसका असर नहीं पड़ेगा। वैदिक काल में उपच्छाया ग्रहण को ग्रहण की श्रेणी में नहीं रखा गया है। इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा।लेकिन कुछ लोग इसके सूतक काल को मान सकते हैं। ग्रहण के पहले सूतक काल लग जाता है। चंद्रग्रहण में नौ घंटे और सूर्यग्रहण में 5 घंटे पहले से सूतक काल आरंभ हो जाता है। सूतक काल को अशुभ माना जाता है। इसमें किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता। किसी भी राशि पर भी इन दोनों चंद्र ग्रहण का असर नहीं होगा।
क्या होता है उपच्छाया चंद्र ग्रहण :
चंद्र ग्रहण को उपछाया चंद्र ग्रहण या मांद्य चंद्र ग्रहण कहा गया है। मंद पड़ने की क्रिया को मांद्य कहा जाता है।ये ग्रहण तब होता है जब सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी घूमते हुए आती है, लेकिन वे चंद्र की उपछाया में आते ही वापस निकल जाती है। इस चंद्र ग्रहण में चंद्रमा का धूंधला बिंब दिखाई देता है और करीब 90 फीसद भाग मैला दिखाई देगा।इस दौरान पृथ्वी चंद्र की वास्तविक छाया भू-भाग में प्रवेश नहीं करती। इसलिए उपछाया के समय चंद्रमा का बिंब केवल धुंधला दिखाई देता है, काला नहीं होता। चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करेगा और उसी से बाहर निकल जाएगा।इसलिए ये उपच्छाया चंद्र ग्रहण होता है न कि वास्तविक चंद्र ग्रहण।
इस साल होनेवाले सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण
10 जनवरी - चंद्र ग्रहण
5 जून - चंद्र ग्रहण
21 जून - सूर्य ग्रहण
5 जुलाई - चंद्र ग्रहण
30 नवंबर -चंद्र ग्रहण
14 दिसंबर - सूर्य ग्रहण
😷✋🏻 लेखक गोंडल संप्रदाय के महामंत्र प्रभावक पू.जगदीशमुनि म.सा. के सुशिष्य हैं.
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