एक निडर निष्ठावान पत्रकार प्रीति सोमपुरा

25 सालों से पत्रकारिता से जुडी हैं  
                                           

                                                           अफगानिस्तान,
पाकिस्तान,और सोमालिया जैसे खतरनाक देशों      में जाकर जांबाज पत्रकारिता करनेवाली तथा अनेक पुरस्कारों से सम्मानित इस पत्रकार की कहानी भी रोमांचित करनेवाली हैं.   
 (दीपक आर जैन)  
जीवन में कई बार विकट परिस्थितियां अचानक आ जाती हैं,और उसका निडरता से सामना किया जाएँ तो सफल भी होते है और सम्मानपूर्वक जी भी सकते हैं. प्रीति सोमपुरा ने यही किया. पिछले 25 सालों से पत्रकारिता से जुडी प्रीति मिलने जैसा व्यक्तित्व हैं. अनेक देशों की भयानक स्थिति में जाकर प्रीति ने अनेक नए विषयों पर डॉक्यूमेंट्री और स्टोरी की हैं जिस और दुनिया के प्रभावशाली मीडिया का ध्यान गया.
प्रिंट मीडिया से अपना करियर शुरू करनेवाली प्रीति अनेक वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुडी है.वर्तमान में  इण्डिया टीवी में सीनियर एडिटर हैं.वह कईं साल तक टीवी 9 मराठी न्यूज़ चेनल की असोसिएट एडिटर थी. चौबीस घंटे महाराष्ट्र व देशभर की ख़बरें व स्टिंग ऑपरेशन कर समाचार देती प्रीति के पास 50 से 60 पत्रकारों की टीम थी. इस चैनल पर एनकाउंटर विथ प्रीति नामका रोचक शो आता था. इस शो में राज्य और देश की नामचीन हस्तियों का फिर वह राजनीतिज्ञ हो,उद्योगपति हो या बॉलीवुड स्टार सभी का साक्षात्कार स्वयं लेती थी. वे कहती हैं की पत्रकारिता अब खून में रच बस गयी हैं,इसलिए हर हफ्ते समाचारों में रहते लोगों का साक्षात्कार करने में बहुत मजा आती हैं.
अबतक प्रीति को एनटी अवार्ड,कच्छ शक्ति,नारी शक्ति व लायंस क्लब से पुरूस्कार मिल चुके हैं. गुजराती-कच्छी परिवार से तालुक्क रखनेवाली प्रीति के परिवार से कोई पत्रकारिता में नहीं हैं. कई प्रेररणात्मक स्टोरी क्र साबित किया है कि वह जन्मजात पत्रकार हैं. मुंबई के उपनगर में रहते रमेशभाई व चंद्रिकाबेन की दो संतानों में प्रीति उनकी छोटी बीटियां हैं. स्कूल में पढ़ाई के समय किसी भी गतिविधि में भाग नहीं लिया था. उनका पूरा ध्यान पढ़ाई पर ही केंद्रित था. दसवीं में उम्मीद से कम प्रतिशत आने से विलेपार्ले की साठे कॉलेज में कॉमर्स की पढ़ाई शुरू की.
प्रीति कहती हैं कि वो नेवी में जाना चाहती थी पर क्या करें ? कॉलेज में एनसीसी में शामिल हुई. रोज तीन किलोमीटर दौड़कर मेरी हालत ख़राब हो जाती थी.थक जाती थी लेकिन करना था इसलिए मन दृढ़ था. लेकिन कईबार जो हम सोचते हैं वो होता नहीं हैं,यही नियती हैं. और इसी से जिंदगी दिलचस्प बनती हैं. बारवीं की परीक्षा के बाद दैनिक गुजरात समाचार में वरिष्ठ पत्रकार कांति भट्ट के लेख में कुछ गड़बड़ी लगी तो पत्र लिखकर उनका ध्यान आकर्षित किया. वह पत्र अखबार के तत्कालीन संपादक राज गोस्वामी ने कांति भट्ट को भेजा तो फ़ोन करके उन्होंने मुझे बुलाया और कहा की मुझे सहायक की जरुरत हैं. वेकेशन में टाइमपास के लिए सहायक बनना स्वीकार किया. 17 वर्ष की उम्र में भट्ट ने मनोहर जोशी की पत्नी अनघा जोशी की मुलाकात का जिम्मा सोपां.किसी भी प्रकार का होमवर्क किये बिना अपने मित्र की मदद से वर्षा बंगलो व मलबार हिल ढूंढा.मैंने थोड़ा बहुतकाम किया हुआ था. अखबार पढ़ती थी,परंतु इंटरव्यू लेने का काम कुछ ज्यादा था. मन में थोड़ा डर भी था.पर जैसे ही में उनके सामने बैठी एक के बाद एक प्रश्न निकलते गए. दूसरे दिन काम कांतिभाई को दिया. उन्होंने उसे एडिट कर गुजरात समाचार में छपवाया और उसकी क्रेडिट भी मुझे दी.
उसके बाद प्रीति ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अखबार के संपादक ने उन्हें नौकरी ऑफर की. कॉलेज में पढ़ते पढ़ते प्रीति ने रेलवे,पुलिस प्रशासन पर लिखना शुरू किया. क्राइम ब्रांच नियमित जाने से प्रीति के संपर्क जबरदस्त बढ़तें गए.इसी समय में सिने अभिनेता राकेश रोशन पर हमला हुआ था तब हॉस्पिटल के आयसीयु में घुसकर पूरी रिपोर्ट दी थी. उस समय मीडिया के हॉस्पिटल में प्रवेश पर पाबंदी थी. ऐसी अनेक दिल धड़क रिपोर्टिंग रिपोर्टिंग सूझबूझ व कुशलता से की हैं.
प्रिंट मीडिया को तिलांजलि देने के बाद वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जूडी क्यूंकि नीत नई टीवी चैनल का युग शुरू होनेवाला था.झी टीवी के अल्फा गुजरती चैनल से जुडी. कैमरा का सामना कैसे करना और बुलेटिन कैसे बनाना सीखा. गोधरा कांड,कच्छ में आये भयावह भूकंप आदि का फील्ड रिपोर्टिंग किया.फिर झी टीवी के हिंदी न्यूज़ चेनल में बड़ा ब्रेक मिला. लगभग सात साल यहां काम करके हिंदी भाषा पर भी अपना प्रभत्व बनाया.कठिन था,कारण अबतक गुजराती में सोचती,लिखती,पढ़ती थी.लेकिन जीवन में  चुनौतीपूर्ण काम ना हो तो मजा क्या? हिंदी भाषा पर पकड़ ज़माने के लिए वो पहले समाचार लिखती,एडिट करती,हिंदी उपन्यास पढ़ती. छह-सात महीने में हिंदी साफ़ सुथरी हो गयी. परिणाम स्वरुप उसने झी पर राजनीतिक रिपोर्टिंग किया.अनेक राज्यों
में चुनाव कवरेज किया.
उसके बाद फिर प्रीति  को लगा की नौकरी बदलनी चाहिएऔर वह राजीव शुक्ला के न्यूज़ 24 से जुडी और सोनिया गांधी,अबू सालेम आदि के साक्षात्कार किये.  वो कहती हैं की टीवी विजुअल का माध्यम हैं. यहं कुछ एक्सक्लूजिव करो तो उसका महत्व हैं.अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सालेम का इंटरव्यू करना आसान नहीं था. आर्थर रोड जेल में सालेम पर हमला हुआ था. परिणाम स्वरुप उसे तलोजा जेल भेजा गया था. उसके बाद रात की ट्रैन से उसे फिर स्थान्तरित करने की जानकारी मिली थी.यह पता चलते ही वह टीम के साथ तलोजा जेल के बहार छुप गयी. घंटो इंतजार करने के बाद जैसे ही सालेम पुलिस वेन में बैठा और वीटी स्टेशन पहुंचने तक प्रीती ने उसका पीछा किया.आखिर वीटी स्टेशन पर उतरते ही उससे बात करने लगी. मैंने  के बाद एक सवाल सालेम को पूछे.पुलिस  रोका लेकिन वे नहीं रूकी. क्योंकि उन्होंने निश्चय  की वे साक्षात्कार लेकर रहेगी. यह इंटरव्यू देश के सभी राष्ट्रिय  प्रादेशिक चेनलों ने प्राथमिकता से दिखाया. उन्हें इसका क्रेडिट मिला और संसद के दोनों सदनों में इसे लेकर जबरदस्त हंगामा हुआ.सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की बेटी श्वेता की शादी में वे बारातियों के साथ प्रतीक्षा बंगले में जबरदस्ती घुस गयी और इसकी एक्सक्लूजिव खबर दी.
चार साल इस चेनल से जुड़े रहने के बाद उन्हें लगा की राष्ट्रीय स्तर पर नेटवर्क अच्छा हो गया हैं,और राज्य में नेटवर्क को सतर्क बनाने के लिए Tv 9 मराठी चेनल से जुडीऔर इसे नंबर ओने बनाने में भूमिका निभायी. प्रीती ने इसी चैनल पर  अफगानिस्तान,पाकिस्तान जाकर तालीबानी नेता ,अफीम आदि विषयों पर गंभीर डॉक्यूमेंट्री बनाई.''अफीम और आतंक का साया'' पर बनी डॉक्युमेंट्री को नेशनल टेलीविज़न अवार्ड से सम्मानित किया गया. अफगानिस्तान में रिपोर्टिंग के दौरान दो बार फिदायीन हमला हुआ लेकिन सूझ बुझ खोये बिना वहां रिपोर्टिंग जारी राखी. पाकिस्तान और बलूचिस्तान में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों और मानवाधिकारों का हनन पर रिपोर्टिंग ने भी तहलका मचाया. 26 /11 केआतंकी हमले में छीबड हाउस में बचे मोशे का इज़राइल जाकर इंटरव्यू किया. सोमालिया देश में जाकर वंहा के आतंकवादी समूह अल शबाब पर स्टोरी की.ज्ञात हो यंहा भारतीय दूतावास भी नहीं हैं.
 टीवी चैनलों में स्पर्धा हैं,लेकिन स्पर्धा कहां नहीं हैं?अब तो कोई भी   व्यक्ति पत्रकार बन सकता हैं. आपके स्मार्ट फ़ोन पर वीडियो लो और   हमे भेज दो.अर्थात मेरे कहने का तात्पर्य हैं कि पहले के समय में   फ़ोन,टेक्नोलॉजी ना होने से हमें खुद घटनास्थल पर रूबरू जाकर   समाचारों की पुष्टि   (कंफर्म)करने पढ़ते थे.अब सबकुछ बहुत आसान   हो गया हैं. मेरे अनुसार भाषाकीय चेनल अंग्रेजी चैनलों से भी पावरफुल   हैं.प्रीति कहती हैं की उन्हें आज तक सभी संपादक बहुत अच्छे मिले हैं.   मेरी  सफलता के पीछे यही कारण हैं. मुझे अच्छे ख़राब सभी अनुभव   हुए हैं.अच्छे अनुभवों को ही याद रखनेवाली प्रीति व्यक्तिगत तौर पर   बहुत सकारात्मक सोचवाली हैं. इसके अलावा निडर स्वभाव और   समय अनुसार मिले अनुभवों ने आत्मविश्वास को मजबूत किया हैं.   प्रीति अपने पत्रकारत्व अनुभवों पर बुक लिखना चाहती हैं. वे एक   सफल पत्रकार के साथ साथ बहुत अच्छी मेरेथॉन रनर हैं और कई   पुरस्कार जीत चुकी हैं. अपनी सफलता का श्रेय वह ससुराल को  देना नहीं भूलती.                      
       

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