पत्रकार एवं यथार्थवादी कवि सुभाष पांडेय की रचनाएं
लगभग पिछले 30 वर्षों से मुंबई ,ठाणे महानगर में स्वतंत्र-रूप से लेखन पत्रकारिता करनेवाले इस शहर के पत्रकार सुभाष पांडेय एक अच्छे साहित्यिक कवि" भी हैं। उनकी पहली रचना केरला विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित होनेवाली हिंदी की पत्रिका 'संग्रथन' में ग़ज़ल छपी थी। राष्ट्रीय स्तर की हिंदी की विशुद्ध त्रैमासिक पत्रिका 'संयोग साहित्य' के विगत 22 सालों से प्रबंध-संपादक हैं। साहित्य के साथ-साथ कला, राजनीति, अपराध क्षेत्र में भी"सशक्त पत्रकारिता" की व कर रहे हैं। भायंदर से 14 सालों तक हिंदी साप्ताहिक 'क्राइम फेस' नाम का पत्र निकाला। जिसका सफल संपादन-प्रकाशन किया। सामाजिक संस्था 'अन्याय विरोधी संघर्ष समिति' पंजीकृत के संस्थापक अध्यक्ष हैं। सन 1994 से पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े सुभाष पांडेय को कई बार "पुरुस्कृत एवं सम्मानित" किया जा चुका है। उन्हें "यथार्थवादी कविताएं" लिखने पर 'सारस्वत सम्मान-1996' एवं 'निर्भिक पत्रकारिता पुरस्कार-2000' प्रदान किया गया है। लायंस क्लब इंटरनेशनल ने 'पत्रकार-दिवस-2012' पर 'शील्ड' देकर सम्मानित किया है। आपके पिताजी पंडित मुरलीधर पांडेय इस देश के मूर्धन्य साहित्यकारों में एक हैं। जिनकी दर्जनों किताबें गद्य एवं पद्य विधा में प्रकाशित हो चुकी हैं। कृतियों पर 'महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी' के पुरस्कार मिले हैं। यूं कहें तो लेखन, पठन-पाठन, पत्रकारिता का खज़ाना सुभाष को उनके पिता से ही मिला है। बावजूद, उन्होंने अपनी स्वयं की एक अलग पहचान इस शहर में, महानगर ने बनायी है।
-संपादक
उनकी यादों के चराग़
उनकी यादों के चराग़ दिल में जलाकर रखा
वक़्त के आंधियों से बचाकर रखा
ख़ामोशी थी इधर भी, ख़ामोशी थी उधर भी
सपनों को आंखों में ही है छुपाकर रखा
इज़हार न कर पाए मोहब्बत का कभी
मोहब्बत को सीने में यक़ीनन दबाकर रखा
धुंधली-सी जमी है परत वक़्त की मगर फिर भी तस्वीर को हर अंदाज में सजाकर रखा
वो मेरे हैं नहीं , ये कौन कहता है " सुभाष "
L जिनको अपनी धड़कनों में है बसाकर रखा
पौधे
जिनकी उम्र है पढ़ने-लिखने की
होटलों में मांजते बर्तन हैं सूखे चेहरे,आंखें पीली, उदासी लिए
हाय ! ये कैसा बचपन है
कोई देता है गाली, कोई मारे थप्पड़ झिड़क देते हैं उस मजबूर को
जिनको मिलती नहीं है रोटियां खाने को
दाल-चावल केवल इनका व्यंजन है
सुबह से रात तक दौड़नेवाले
जमीन पर सोते हैं कुछ घन्टे ही
देते नहीं समय पर पगार इनको
देखता कोई नहीं इनका क्रंदन है
हम हैं पागल जो सोचें इनके बारे में
यह मशीनों का शहर है यहां इंसान कहां ?
जो समझते हैं केवल रुपयों की भाषा
ऐसे पत्थर का पसीजा कहां मन है
करप्शन का धुवां
फैल रहा है 'करप्शन' का धुवां देखिए
'कोयला घोटाला' अरबों का हुवा देखिए
'दिल्ली' बनी है 'बिल्ली' उड़ रही है 'खिल्ली'
'भ्रष्ट पॉलिटिशियनों' के हाथ ख़तरा देखिए
'स्विच बैंक'में जमा है हजारों-करोड़ों का धन
'ब्लैक मनी' लाने का केवल सपना देखिए
'बोफोर्स घोटाला' हो या 'चारा घोटाला'हो 'अब्दुल करीम तेलगी' का स्टैम्प घोटाला देखिए
'देशद्रोहियों' की खिला रहें हैं खाना 'दामाद' की तरह जेले बन रही हैं 'अय्याशी का अड्डा' देखिए
'अन्ना हजारे' की आवाज़ दबाने लगी है 'हुक़ूमत'
'आंदोलनकारियों' के लिए 'हथकड़ी और डंडा' देखिए
'फर्जी मुकदमें' में फसाने की 'रच रहे हैं साजिशें'
'रिश्वतखोर' बेईमान वर्दीवाला गुंडा देखिए
कैसे बनाएंगे अपने बच्चों को 'इंजीनियर डॉक्टर'
'महंगाई की मार से कमर टूटता देखिए
ये आये हैं लूटने को, यक़ीनन 'शहर को हमारे'
हफ्तावसूली-तोड़पानी का भारी है पलड़ा देखिए
-कवि/लेखक/पत्रकार
भायंदर
बोलचाल :09820979971
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