धरती पर तीन रत्न अन्न, जल और सुभाषित: आचार्य महाश्रमण

गंगाशहर प्रवास के दूसरे दिन श्रीमुख से प्रवाहित ज्ञानगंगा में श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी  


गंगाशहर, (बीकानेर) :-
वर्ष 2014 में गंगाशहर में मर्यादा महोत्सव करने के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपनी आठ वर्षीय अहिंसा यात्रा के दौरान देश के बाइस राज्यों सहित नेपाल और भूटान की विदेशी धरती को भी अपने चरणरज से पावन बना तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में नवीन स्वर्णिम अध्याय जोड़ने के उपरान्त गंगाशहर की धरा को पावन बनाने व जन-जन का कल्याण करने के लिए गंगाशहर में पधार गए हैं। वर्षों बाद अपने आराध्य को अपने घर-आंगन में प्राप्त कर गंगाशहरवासी भी पूर्ण लाभ उठाने में जुटे हुए हैं। सूर्योदय से पूर्व ही गुरु सन्निधि में उपस्थित होकर गुरु वंदना, बृहत् मंगलपाठ के बाद संतों के दर्शन, उपासना, गोचरी, पानी आदि की व्यवस्था में तल्लीन नजर आ रहे हैं। उसके बाद निर्धारित समय से पूर्व ही मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित अपने सुगुरु के श्रीमुख से प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा रूपी प्रवचन का श्रवण कर अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। 


बुधवार को प्रज्ञा समवसरण के भव्य प्रवचन पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य जीवन को चलाने के लिए पदार्थों का उपयोग अथवा उपभोग करता है। भूख लगती है तो व्यक्ति भोजन करता है, प्यास लगती है तो जल पीता है, शरीर को ढ़कने के लिए वस्त्र आदि का उपयोग करता है, रहने के लिए मकान आदि का उपयोग करता है। इस प्रकार जीवन को चलायमान रखने के लिए पदार्थों का उपयोग किया जाता है। शास्त्रों में रोटी, पानी और हवा को प्रथम कोटि की आवश्यकता की श्रेणी में रखा गया है। इनमें भी हवा सबसे महत्त्वपूर्ण है। रोटी और पानी के बिना तो आदमी कुछ समय जीवित भी रह सकता है, किन्तु हवा के बिना तो कुछ मिनट भी जीना मुश्किल हो जाता है। हवा के बिना नहीं रहा जा सकता है। अन्न के बिना भी आदमी कई दिनों तक जीवित रह सकता है, किन्तु पानी के बिना भी जीवन दुर्भर है। कई बार जल संकट और जल संरक्षण की बात भी आती है। आदमी को जल के महत्त्व को समझते हुए उसका सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को अपनी वाणी को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। 

इस प्रकार आदमी पदार्थों का अपने जीवन में उपभोग करे, किन्तु पदार्थों के प्रति ज्यादा मोह न करे, अनासक्ति का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। साधना के द्वारा आदमी को अनासक्ति की चेतना के जागरण का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री ने उपासक श्रेणी को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि उपासक श्रेणी में ज्ञान और साधना के साथ-साथ अनासक्ति की चेतना का भी अच्छा विकास होता रहे। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के दौरान गंगाशहर के अनेक चारित्रात्माओं का भी स्मरण करते हुए उनके जीवन प्रसंगों का वर्णन किया। 

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया। संसारपक्ष में गंगाशहर से संबद्ध साध्वीवृंद और समणीवृंद ने समवेत स्वर में गीत का संगान किया। साध्वी दीपमालाजी, साध्वी कंचनबालाजी, साध्वी पुष्यप्रभाजी, मुनि प्रबोधकुमारजी, मुनि विमलबिहारीजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। साध्वी शुक्लप्रभाजी ने गीत का संगान किया। 

जैन महासभा-बीकानेर के अध्यक्ष लूणकरण छाजेड़, तेरापंथ महिला मण्डल-गंगाशहर की अध्यक्षा ममता रांका, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष  विजेन्द्र छाजेड़, उपासक प्रवक्ता राजेन्द्र सेठिया व संयम नैतिक आंचलिया ने पूज्यचरणों में अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल, तेरापंथ किशोर मण्डल, तत्त्वप्रचेता व तेरापंथ प्रचेता की सदस्याएं, डाकलिया बन्धु, चौपड़ा परिवार की महिलाएं, मनोज-प्रियंका छाजेड़, सुमन सेठिया, कोमल व उनकी सहयोगी, विजयलक्ष्मी सेठिया, जयश्री बोथरा व प्रवीण मालू ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान कर पूज्यचरणों की अभ्यर्थना की। 




             



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