गुरु आत्म के आदर्श- कल आज और कल

गुरु वल्लभ जैसा महान संत दिया


कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर एक मैसेज आया जिसमे लहरा में statue of wisdom की स्थापना एवम उसके अनावरण का वर्णन किया गया था। Statue of Wisdom मतलब एक ऐसी महान आत्मा की प्रतिमा जिनकी बुद्धि का लोहा जन जन ने माना।

पढ़ कर मन अभिभूत हो उठा कि हमारे गुरु आत्म-जन जन के गुरु आत्म की भव्य अष्ट धातु की प्रतिमा का उनकी ही जन्म भूमि लहरा में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला द्वारा इ अनावरण किया गया। गुरु आत्म कहो या  विजयानंद सुरि कहो या आत्मानंद जी कहो या आत्माराम जी कहो।


नाम अनेक - व्यक्तित्व एक

वो गुरु आत्म- जिन्होंने जन जन की सोई आत्मा को अपने ज्ञान से जगाया

वो गुरु आत्म- जिन्होंने मूर्ति पूजा के महत्व को समझाने हेतु कितने ही परिषह सहे परंतु शांत भाव बनाये रखा।

वो गुरु आत्म-जिनकी साहित्य रचना एवम स्मरणशक्ति अदभुत थी। 

वो गुरु आत्म- जिन्होंने देश के लिए गुरु वल्लभ जैसे दूरदर्शी साधु को तैयार किया।


याद आ रहे है बचपन से अपने दादा दादी से सुने उन उपकारी गुरुदेव के वो गीत

कितने गर्व से हम गाते है-


"गुरु आत्म ये बतला गए- सानू भूल्या ने रस्ते पा गए"


और सच में गुरु आत्म के जीवन को देखे तो वो तो हम जैसे भूले हुए के उद्धार के लिए अपना जीवन होम कर गए। पर आज की पीढ़ी कही उन्ही गुरु आत्म को भूल तो नही रही। उनके बताए मार्ग पर हम कितना चल पा रहे है। हम गुरु को तो मान रहे है पर हम गुरु की कितनी मान रहे है,ये एक बहुत बड़ा सवाल समाज के सामने खड़ा है।

क्या हम और हमारे परिवार गुरुदेव द्वारा दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयास कर पा रहे है? 

क्या जितनी समता हमारे उन आराध्य गुरु में थी,उसका अंश मात्र भी हम अपने जीवन में उतार पाए है? 

जिन गुरु आत्म ने आने वाली पीढ़ियों में धर्म भावना बनाये रखने हेतु इतने प्रयास किये,क्या उन प्रयासों की महत्ता को हमारी generation समझ पा रही है?


हम बड़े भाव से गाते है,

"ऐसे भी थे,हजारों दिन ,गुरु को मिली न गोचरी

चेहरे पे किंतु थी नही,गम की कोई निशानियां"

कितने मार्मिक शब्द लिखे है रचनाकार ने और वास्तव में उनका चारित्र ही ऐसा था कि चाहे कई दिन गोचरी नही मिली पर फिर भी वो शांत थे। और विचार करे अगर आज हमारे भोजन में क्षणिक देर हो जाये या मन पसंद खाना नही मिले तो क्या हम शांत रह पाते है?

गुरु आत्म के गुणगान तो हम खूब श्रद्धा से कर लेते है पर उनके विचारों,उनके आदर्शों को कितना आत्मसात कर पाए है? और विचारणीय विषय ये कि अगर हम ही गुरुदेब के बताए मार्ग पर नही चल पा रहे तो हम आने वाली पीढ़ियों को क्या सिखा पाएंगे? उनको कितना धर्म से जोड़ पाएंगे?

आज समय की मांग है कि हम अपने गुरु भगवंतों के चरित्र को समझते हुए,उनके कार्यो,उनके आदर्शो को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करे।केवल जयनाद करने से कुछ नही होगा,उस नाद की गूंज को अपने बच्चो तक पहुंचाना भी होगा।

गुरुदव द्वारा अनेको ज्ञानवर्धक ग्रन्थ एवम प्रभु भक्ति के स्तवन लिखे गए है,वीरचन्द राघव जी गांधी को शिकागो भेजने एवं उनको तैयार करने वाले गुरु आत्म द्वारा अद्भुत साहित्य की रचना की गई और जिसका पुनः प्रकाशन भी करवाया गया ताकि उससे जन जन तक गुरु आत्म का साहित्य पहुंच सके।

प्रकाशन तो हो गया परंतु उस खजाने को पाने का प्रयास हमको स्वयं ही करना होगा। अपने परिवार में ये संस्कार डालने होंगे कि नियमित प्रभु पूजन करने का प्रयास करे।अगर अनुकूलता न हो सके तो कम से कम छुट्टी वाले दिन तो प्रभु पूजन का नियम ले ले।

गुरुदेब द्वारा रचित स्तवनो को चैत्यवन्दन का भाग बना उसको अगर नियमित रूप से बोलने का प्रयास करे,बोलते बोलते कही न कही उसके भाव भी जीवन में आएंगे ही। गुरुदेब द्वारा लिखित साहित्य को पढ़ने,जानने का प्रयास करे,on line link भी इस साहित्य के उपलब्ध है।

ये कर्तव्य भी हम सबका ही है कि अपने गुरुदेव के जीवन,उनके आदर्शों से हम अपने बच्चो को रूबरू करवाये। गुरुदेब के जन्म दिन,पुण्य दिवस पर उनको सपरिवार वन्दन,नमन करे।


आईये- गुरु आत्म के जयनाद के साथ साथ उनके बताए मार्ग पर चलने का भी शंखनाद करे।यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

-अनु दीपक जैन,जयपुर

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