मानव अंगों के प्रत्यर्पण बिना भी ईलाज संभव - डॉ. बिस्वरूप रॉय चौधरी
"ऐंड ऑफ ट्रांसप्लांट" पुस्तक का विमोचन
हिंदुस्थानी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति ही है सर्वोपरि
भायंदर / विनोद मिश्र
मनुष्य के शरीर में विभिन्न रोगों की वजह से खराब होने वाले लिवर, किडनी जैसे अंगों को बिना प्रत्यर्पण किये ही पुनः शरीर के अंदर ही ठीक किया जा सकता है। ऐसा दावा प्रसिद्ध मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ. बिस्वरूप रॉय चौधरी ने किया है। उनका मानना है कि पूरे विश्व मे हिंदुस्थानी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति ही सर्वोपरि है। इस पद्धति से सभी प्रकार के गंभीर बीमारियों का ईलाज संभव है। शनिवार को उनकी पुस्तक " ऐंड ऑफ ट्रांसप्लांट" का विमोचन मुंबई (बांद्रा) स्थित ताज होटल में किया गया। इस अवसर पर उड़ीसा के किसान नेता अक्षय कुमार , स्विट्जरलैंड के बीआरसी एसोसिएट नाइजिल किंसले, डॉ. बिस्वरूप रॉय चौधरी, इंडियन बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता नीलेश ओझा, प्रसिद्ध इकोनॉमिस्ट रवि कोहाट, आदि मान्यवर उपस्थित थे।
पुस्तक के विमोचन के अवसर पर डॉ . चौधरी ने बताया कि आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में शुगर , ब्लडप्रेशर , दिल की बीमारी और गुर्दे की लंबे समय से चली आ रही बीमारियों को लाइलाज माना गया है लेकिन इन बीमारियों को खान पान में बदलाव तथा अन्य प्राकृतिक उपायों की मदद से ठीक किया जा सकता है । उन्होंने एक विशेष प्रकार की आहार पद्धति " डीआईपी डाइट " तथा गर्म पानी के इस्तेमाल " ग्रैंड सिस्टम " से अब तक इन बीमारियों के हजारों मरीजों को ठीक किया है । उनके अनुसार हर व्यक्ति अपना डॉक्टर खुद बन सकता है और इसके लिए हमें प्राकृतिक भोजन तथा जीवनशैली अपनानी है । देश के लोगो को अपनी जड़ों की तरफ लौटने तथा वैज्ञानिक सोच के साथ रोगों का इलाज करने की जरूरत है ।
" गुरुत्वाकर्षण प्रतिरोध और संतुलित आहार प्रणाली डॉ . बिस्वरूप रॉय चौधरी द्वारा विकसित की गई है । इस प्रणाली में शरीर पर पड़ने वाले दबाव तथा हमारे शरीर द्वारा उसका किया जाने वाला प्रतिरोध एवं डीआईपी आहार प्रणाली को अपनाना शामिल है । मानव शरीर पर गुरुत्व बल कार्य करता है । गुरुत्व बल के अलावा हमारे शरीर में दिल और रक्त वाहिकाओं द्वारा जनित दबाव बल भी होता है जो रक्त समेत सभी शारीरिक द्रव्यों के प्रवाह को नियंत्रित करता है जिसमें हमारी शारीरिक तथा मानसिक स्थिति भी शामिल है ।
डॉ . बिस्वरूप रॉय चौधरी ने ग्रेविटेशनल रेजिस्टेंस एंड डाइट सिस्टम विकसित किया है । इसे किडनी के गंभीर मरीजों के इलाज के लिए बहुत उपयोगी पाया गया है । इसका परीक्षण जिन लोगों पर किया गया , उसमें से ७५ प्रतिशत लोगों की डायलिसिस कम या बंद हो गई और ८९ फीसद लोगों की दवाए कम या बंद हुईं । इसके साथ ही किडनी के मरीजों के लक्षणों में भी सुधार हुआ । किडनी के मरीजों में सूजन , उल्टी , कमजोरी , सांसों की तकलीफ जैसे सभी लक्षणों में सुधार हुआ । ग्रैड पद्धति से इलाज ऐसे लोगों के लिए वरदान साबित हुआ है जो लंबे समय से गुर्दे की बीमारी से पीड़ित हैं और डायलिसिस के कष्टदायक इलाज की प्रक्रिया को झेलने के लिए मजबूर हैं । ' क्रॉनिक किडनी डिजीज ' यानी ' सीकेड ' को ठीक करने में उनकी ग्रैंड इलाज पद्धति बहुत प्रभावशाली रही है । ग्रैंड प्रक्रिया में किडनी के मरीजों को ४० डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म पानी में टब में रोजाना दो घंटे बिठाकर रखा जाता है । इसे हॉट वाटर इमर्शन कहते हैं । उसके बाद उनको २ घंटे एक खास निर्धारित कोण पर सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर करके लेटना होता है । जिसे हेड डाउन टिल्ट कहा जाता है । इसके साथ ही अनुशासित डाइट को ही खाना होता है । अगर उनके इलाज को सही तरह से अपनाया जाए तो डायलिसिस कम या पूरी तरह से खत्म हो सकता है । इसके साथ ही किडनी ट्रांसप्लांट का युग भी खत्म हो सकता है।
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