हिंसा और परिग्रह नरक गति में ले जाने के कारण: आचार्य महाश्रमण
‘महाश्रमण समवसरण’ से महातपस्वी महाश्रमण का प्रथम मंगल प्रवचन
अणुव्रत ग्राम भारती संस्थान की छात्राओं ने किए आचार्यश्री के दर्शन
भीलवाड़ा (तेरापंथ नगर) :- भीलवाड़ावासियों के लिए मंगलवार का दिन मंगलमय हो गया। अपने भीलवाड़ा चातुर्मासकाल के दौरान प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य, विशाल ‘महाश्रमण समवसरण’ आचार्यश्री महाश्रमणजी की प्रतीक्षा कर रहा था, इसके साथ ही प्रतीक्षा कर रहा था पूरा भीलवाड़ा समाज कि उनके आराध्य कब इस मुख्य प्रवचन पण्डाल में पधाकर अपना मंगल प्रवचन प्रदान करेंगे। मंगलवार को वह दिन भी आया जब अचानक महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इंगित फरमाया कि आज का मुख्य प्रवचन कार्यक्रम मुख्य प्रवचन पण्डाल ‘महाश्रमण समवसरण’ से होगा। फिर तो पूरा परिसर जयघोष से गुंजायमान हो उठा।
प्रवास व्यवस्था समिति के लोग ही नहीं, पूरा भीलवाड़ा नगर उल्लसित हो उठा। क्योंकि अब तक आचार्यश्री के प्रवास स्थल महाश्रमण सभागार के बाहर ही बैठकर लोगों को उनकी अमृतवाणी के श्रवण का अवसर उपलब्ध होता था, किन्तु आज से अपने आराध्य के सम्मुख होकर प्रवचन श्रवण का लाभ मिल सकेगा।
आचार्यश्री के पदार्पण से पूर्व मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी का उद्बोधन हुआ। समणी कमलप्रज्ञाजी तथा साध्वी अखिलयशाजी व साध्वी मृदुप्रभाजी ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री के मंचस्थ होते हुए पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा।
आचार्यश्री ने ‘सूयगडो’ आगमाधारित अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि कई बार आदमी अपने माता-पिता से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। यह संसार की एक स्थिति है। इससे यह सिद्ध होता है कि इस जीवन का कोई भरोसा नहीं है। ऐसी स्थिति में फिर सुगति भी कैसे हो सकती है। इसके लिए आदमी को हिंसा और परिग्रह से बचने का प्रयास करना चाहिए। हिंसा और परिग्रह दोनों ऐसे तत्त्व हैं जो आदमी को नरक गति की ओर ले जाने वाले होते हैं। इसलिए आदमी जितना संभव हो सके, हिंसा से बचने का प्रयास करे और दुनिया में रहते हुए भी परिग्रह के प्रति अनासक्त रहने का प्रयास करे। जीवन में जितना त्याग बढ़ता है, आध्यात्मिक धन का अर्जन स्वतः होता जाता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि एक समय के बाद आदमी को सुमंगल साधना की ओर बढ़ते हुए अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। संभव हो सके तो जमीकंद खाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में परिग्रह का अल्पीकरण करने का प्रयास हो। इस प्रकार आदमी हिंसा और परिग्रह का त्याग कर सुगति के पथ पर अग्रसर होने का प्रयास कर सकता है।
मंगल प्रवचन के पश्चात् साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया। अंशिका बाबेल व सुरेश चोरड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अणुव्रत ग्राम भारती संस्थान से जुड़ी हुई छात्राओं ने आचार्यश्री के समक्ष अणुव्रत गीत का संगान कर अपनी प्रणति अर्पित की। संस्थान के कार्याध्यक्ष सुनील तलेसरा ने संस्थान के संदर्भ में अवगति प्रदान की। संस्थान के प्रशासक तेजसिंह नाहर ने अपने विचार व्यक्त किए। मुनिश्री मोहजीतकुमारजी ने संस्थान के संदर्भ में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने संस्थान की उपस्थित छात्राओं व संस्थान से जुड़े हुए पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए ज्ञान के साथ-साथ अपने जीवन में सत्संस्कार लाने और अणुव्रत का अच्छा समावेश रहे।
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