काली रात्रि मे ज्ञान का दीपक फेलाते हुए निर्वाण को प्राप्त हुए
जीवन की दुर्लभता को समझना चाहिये :- रजतचंद्र विजयजी
झाबुआ :- "यह दीपावली पर्व की आराधना भगवान महावीर स्वामी की स्मॄति दिलाती हे क्योंकि भगवान महावीर इस अमावस्या की काली रात्रि मे ज्ञान का दीपक फेलाते हुए निर्वाण को प्राप्त हुए थे | हमे भी इस पर्व को इसी प्रकार की भावना से मनाना चाहिए की जीवन मे पाप का अंधकार मिट जाये और ज्ञान का प्रकाश शुभ भाव के साथ हमे प्राप्त हो।
"उपरोक्त विचार झाबुआ के श्री ऋषभदेव बावन जिनालय मे चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य मुनिराज श्री रजतचन्द्र विजयजी म.सा.ने प्रवचन हाल में दीपावली पर्व पर भगवान महावीर की अंतिम देशना की विवेचना करते हुए धर्मसभा मे कही | उन्होने " उत्तराध्यन सूत्र "की विस्तृत चर्चा की | उन्होंने बताया की भगवान का पावापुरी मे चातुर्मास चल रहा था उन्हे यह ज्ञात हो गया था की यह उनका अंतिम चातुर्मास है क्योंकि वे सर्वज्ञ थे। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशि की मध्यरात्रि से भगवान ने समवशरण मे अंतिम देशना (प्रवचन ) प्रारम्भ किये । भगवान ने इस दौरान "पाप फलविषय" और "पुण्य फल विषय " पर देशना दी । उसके पश्चात् अप्रश्न व्याकरणीय देशना दी। जिसे आज हम 36 अध्ययन के रुप मे उत्तराध्यान सूत्र मे पड़ते हैं। उन्होने कहा की साधु जीवन का प्राण विनय है । विनय हे तो ज्ञान प्राप्ति है। उन्होने कहाँ की चारित्र्य धर्म के पालन मे परीषहो को समता पूर्वक सहन करना आवश्यक हे।
उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन की दुर्लभता को समझना चाहिए | तत्व पर श्रध्दा रख कर संयम का पुरुषार्थ करने का भगवान ने उपदेश दिया | उन्होने कहाँ की प्रमाद न करे क्योंकि जीवन क्षण भंगुर हे कभी भी समाप्त हो सकता है। हम आत्मा का ध्यान करते हुए अप्रमत्त भाव मे रहे। रजतचन्द्र विजयजी महाराज साहेब ने दीपावली के 3 दिनों पर 3 नये संदेश दिए। उन्होंने कहां धनतेरस नहीं 'धर्म तेरस' मनाये,रूपचउदस नही स्वयं का स्वरूप दर्शन चउदस के रूप में मनाये और काली अमावस्या नहीं वरन् सम्यक ज्ञान द्वारा आत्मा की उजली अमावस्या मनाये। पूज्य मुनिराज़ जीतचन्द्र विजयजी ने कहाँ की संसार असार हे हमे दीपावली पर्व को जप तप के साथ मनाना चाहिए।
गुरुवार को पूज्य मुनिश्री द्वारा भगवान की अंतिम देशना भाग 2 पर प्रवचन दिया। रात्रि मे भगवान महावीर के निर्वाण होने से देववंदन हुए और शुक्रवार को सुबह नूतन वर्ष मे जिनालय के पट लाभार्थीयो द्वारा द्वार खोले गए| इसके पश्चात् गुरु गौतमरास महामांगलिक का वांचन पूज्य मुनिश्री द्वारा किया गया|
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