आदमी के भीतर जले अहिंसा की ज्योति :- आचार्य महाश्रमण

दीपावली से पूर्व आचार्यश्री ने दी अहिंसा का दीपक जलाने की प्रेरणा

 


भीलवाड़ा (तेरापंथ नगर) :- रोशनी का महापर्व दीपावली सन्निकट है। असत्य पर सत्य की जीत के उपरान्त जब भगवान श्रीराम अयोध्या पहुंचे थे तो उस खुशी में अयोध्या में दीपोत्सव मनाया गया था। ऐसी पौराणिक कथाओं से भावित इस प्रकाशपर्व को भारत ही नहीं, पूरा विश्व ही बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाता है। इस महापर्व के दृष्टिगत राजस्थान के भीलवाड़ा में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, जन-जन को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के मंगल संदेशों से आच्छादित करने वाले राष्ट्रीय संत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रकाश के महापर्व दीपावली से पूर्व श्रद्धालुओं को बाह्य दीपक के साथ ही जन-जन के हृदय में अहिंसा की ज्योति जलाने की पावन प्रेरणा प्रदान की।

सोमवार को महाश्रमण सभागार में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने ‘सूयगडो’ आगमाधारित अपने पावन प्रवचन के माध्यम से मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा के विषय में दो बातें बताई गई हैं। कोई भी प्राणी दुःख नहीं चाहता, इसलिए कोई भी प्राणी मारने के लिए नहीं है। भगवान महावीर ने एक बार साधुओं से पूछा आदमी किस चीज से डरता है? प्राणी दुःख से डरता है। कोई भी प्राणी दुःख से बचने का प्रयास करता है। जैसे कहीं मुझे चोट न लग जाए, मुझे किसी तरह का रोग न लगे, मुझे कोई मारे नहीं, मेरा सामान चोरी न हो आदि-आदि। अर्थात् वह सदैव दुःख से डरता है। आदमी स्वयं के प्रमाद के दुःख पैदा करता है। अप्रमाद में रहने का प्रयास किया जाए तो दुःख से बचा जा सकता है। जब प्राणियों को दुःख अप्रिय है तो किसी भी प्राणी को दुःख देने से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा के पथ पर चलने को ही ज्ञान का सार भी कहा गया है। आदमी यह सोचे कि यदि मुझे कोई कष्ट अप्रिय है तो वह कष्ट मैं किसी दूसरे को क्यों दूं। जिस प्रकार मुझे दुःख अप्रिय है तो दूसरे के लिए भी तो दुःख अप्रिय ही है। इसलिए आदमी को हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। 

गुरुदेव ने आगे कहा कि अहिंसा ही परम धर्म है। आदमी के आत्मा के भीतर ही हिंसा और अहिंसा है। यदि कोई अप्रमत्त है, उसका भाव अहिंसा की चेतना से भवित है तो वह अहिंसक और और जो प्रमत्त है, जिसके भावों में हिंसा भरी हुई तो वह हिंसक है। आदमी को अपने जीवन में जितना हो सके हिंसा का त्याग कर अहिंसा की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। दीपावली का पर्व आ रहा है। उसे तेले, बेले और उपवास के माध्यम से भी मनाया जा सकता है। सबसे अच्छा है कि आदमी के भीतर अहिंसा का दीपक जले और हिंसा का अंधकार दूर हो। आदमी को अपने भीतर अहिंसा की ज्योति जलाने की प्रयास करना चाहिए। हिंसा से विरत रह कर भीतर में अहिंसा की ज्योति जलाएं तो यह प्रकाश का त्योहार सार्थक हो सकता है। 

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात् अनिता बाबेल, उमराव संचेती व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष प्रकाश सुतरिया ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी आस्थासिक्त भावाभिव्यक्ति दी। 



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