मोक्ष की प्राप्ति हो जीवन का लक्ष्य : महातपस्वी महाश्रमण

आचार्य महाप्रज्ञजी के 104वें जन्मदिवस पर आचार्यश्री ने किया  अपने गुरु का स्मरण

मलाड के विट्टी इण्टरनेशनल स्कूल में हुआ पावन पदार्पण  


मुंबई :-
कांदिवली में तीन तीनों ज्ञान की गंगा प्रवाहित कर, जन-जन के मानस को आध्यात्मिक भावित कर शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। कांदिवलीवासियों ने अपने आराध्य के श्रीचरणों में इस कृपा हेतु अपनी कृतज्ञता अर्पित की तो आचार्यश्री ने उन्हें आशीष प्रदान किया। मार्ग में अनेक स्थानों पर दर्शनार्थियों पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री मलाड की ओर गतिमान थे। मुम्बई महानगर की धरा महातपस्वी की चरणरज से पावन बन रही थी। लगभग छह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना संग मलाड वेस्ट में स्थित विट्टी इण्टरनेशनल स्कूल के प्रांगण में पधारे तो मलाडवासियों व स्कूल प्रबन्धन आदि कार्यों से जुड़े श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। 

स्कूल परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न हो सकता है कि जीवन का लक्ष्य क्या हो? यह प्रश्न थोड़ा जटिल-सा हो सकता है। जन्म सभी प्राणी लेते हैं। चाहे वह हाथी हो अथवा कीड़े-मकोड़े हों और मृत्यु भी सबकी होती है तो जन्म लेना और एक कालावधि के उपरान्त मृत्यु को प्राप्त हो जाना तो सहज एक नियम है, जो सभी के लिए सामान्य है, किन्तु चौरासी लाख जीव योनियों में श्रेष्ठ मानव जीवन प्राप्त करना विशेष है तो इस मानव जीवन का लक्ष्य भी निर्धारित होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि किसी अच्छे उद्देश्य से जीवन जीना श्रेष्ठ बात होती है। शास्त्रों में मानव जीवन का परम लक्ष्य बताया गया कि मानव जीवन में अध्यात्म की साधना के द्वारा जन्म-मृत्यु की परंपरा से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। ज्ञान, दर्शन और चारित्र की साधना और कषायों से मुक्त होकर ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।मानव जीवन में कषाय से मुक्ति हो गई तो किसी भी भेष, किसी भी स्थिति और किसी भी जगह पर मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है। साधु न बनने पर भी गृहस्थ भी अपने जीवन में साधना कर मोक्ष की दिशा में गति कर सकता है। 

आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी तिथि जो तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें अधिशास्ता परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का जन्मदिवस भी है। 104वें जन्मदिवस के संदर्भ में अपने सुगुरु का स्मरण करते हुए कहा कि आज आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी है। आषाढ़ महीने में दो त्रयोदशी तिथि आती है। इसमें मानों हमारे धर्मसंघ के प्रथम आचार्यश्री भिक्षु व दसमाधिशास्ता परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने आपस में बांट ली। आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को तेरापंथ के प्रवर्तक परम वंदनीय आचार्य भिक्षु का जन्मदिवस है तो आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी को परम पूज्य गुरुदेव महाप्रज्ञजी का जन्मदिवस है। उनका जन्म राजस्थान के एक छोटे गांव टमकोर में हुआ। एक साधारण से बच्चे ने अपने जीवन के ग्यारहवें वर्ष में तेरापंथ के आठवें आचार्यश्री कालूगणी से दीक्षा ली। उसके बाद उन्होंने मुनि तुलसी की देखरेख का अध्ययन का कार्य आरम्भ किया और कुछ ही दिनों में तेरापंथ के विद्वान संतों में गिने जाने लगे। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी ने उन्हें अपना युवाचार्य बनाया। उनकी अनेक विषयों पर कितने-कितने साहित्य प्राप्त हैं। उनकी प्रज्ञा, प्रतिभा कितनी उत्कृष्ट थी। वे आचार्यश्री तुलसी के लम्बेकाल तक उनके अभिन्न सहयोगी के रूप में रहे। वे लगभग अस्सी वर्ष की अवस्था तक मुनि रूप में रहे। गुरुदेव तुलसी ने अपना आचार्य पद त्याग कर उन्हें आचार्य पद पर प्रतिष्ठापित किया। वे तेरापंथ के विलक्षण आचार्य थे। उन्होंने प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान का प्रारम्भ किया। आज मैं उनके प्रति श्रद्धा अर्पण करता हूं। आपके जीवन से लोगों को अपने जीवन का अच्छा लक्ष्य निर्धारित करने की प्रेरणा प्राप्त हो। 

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने भी दसमाधिशास्ता के प्रति अपनी विनयांजलि समर्पित की। दलपत बाबेल व स्कूल के संस्थापक डॉ. विनय जैन ने आचार्यश्री के समक्ष अपने हर्षित भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। नवी मुम्बई के पहले मेयर व पूर्व सांसद डॉ संजीव नाईक ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया और पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। 



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