भक्तामर श्लोक 4

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( 9 बार श्लोक / 27 बार मंत्र / 27 बार ऋद्धि का जाप करें )


वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र ! शशांक-कान्तान, 

कस्ते क्षमः सुरगुरू-प्रतिमोऽपि बुद्धया ।

 कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक-चकं, 

को वा तरीतु-मल-मम्बु निधिं भुजाभ्याम्॥४ ॥


मंत्र :- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सागर सिद्ध देवताभ्यो नमः

ऋद्धि :- ॐ ह्रीं अर्ह णमो सव्वोहि जिणाणं झौं झौं नमः स्वाहा। 

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