नन्दनवन में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने चातुर्मास लगने से पूर्व प्रदान की दीक्षा

 मायानगरी में माया से त्याग का भव्य समारोह : 7 आत्माएं बनीं चारित्रात्माएं 

2 साध्वी, 4 समणी और एक साधु दीक्षा सहित कुल 7 दीक्षाओं से वर्षावास का आगाज

आर्षवाणी का समुच्चारण करते हुए आचार्यश्री ने दी अहिंसा और संयम की प्रेरणा

कल्प को साधु प्रतिक्रमण सीखने की स्वीकृति, 4 मुमुक्षुओं को आचार्यश्री ने सुनाया मंगलपाठ


 घोड़बंदर,(ठाणे) :- भारत की मायानगरी मुंबई जहां हर कोई भौतिक सुविधाओं की प्राप्ति अथवा उसके विकास के लिए भागा चला आता है और वह यहां आकर इस भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो जाता है और फिर वह इसी को अपने जीवन का सार मानकर सम्पूर्ण जीवन बीता देता है, किन्तु गुरुवार को इस मायानगरी में सात आत्माओं ने माया का परित्याग कर संयम का पथ अपनाया तो मायानगरी की जनता पुलकित हो उठी। यह माया का परित्याग हुआ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघस के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में। 

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को मुम्बई में वर्ष 2023 के चातुर्मास के लिए नन्दनवन परिसर में महामंगल प्रवेश किया। प्रवेश के दूसरे दिन ही गुरुवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दो श्रेणी आरोहण (समणी से साध्वी दीक्षा), चार समणी दीक्षा व एक साधु दीक्षा प्रदान की। चतुर्मास से पूर्व सात दीक्षाओं को देख मुम्बई का जनमानस हर्षविभोर था। इतना ही नहीं तेरापंथ धर्मसंघ की दीक्षा प्रणाली के तीनों प्रकार की दीक्षा का भी सौभाग्य प्राप्त हो गया। 

गुरुवार को नन्दनवन के चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बना भव्य और विशाल प्रवचन पण्डाल आचार्यश्री के पदार्पण से पूर्व ही जनाकीर्ण बना हुआ था। क्योकिं आज देश के अनेक स्थानों से कुल सात दीक्षाएं होने जा रही थीं। इसलिए इस समारोह में भाग लेने के लिए देश भर से श्रद्धालु उपस्थित थे। निर्धारित समयानुसार युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी विराजमान हुए तो उनके दोनों ओर साधु-साध्वियों की उपस्थित तो सम्मुख दीक्षार्थियों की उपस्थित और विशाल जनता। मानों आचार्यश्री अपने चतुर्विध धर्मसंघ के मध्य महासूर्य की भांति देदीप्यमान हो रहे थे। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ दीक्षा समारोह का शुभारम्भ हुआ। आचार्यश्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को कुछ समय ध्यान का प्रयोग कराया। तदुपरान्त मुमुक्षु मानवी और मुमुक्षु भाविका ने दीक्षार्थियों का परिचय प्रस्तुत किया। समणी अक्षयप्रज्ञाजी ने श्रेणी आरोहण करने वाली समणीद्वय का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष श्री बजरंग जैन ने दीक्षार्थियों के आज्ञा पत्र का वाचन किया। दीक्षार्थियों के परिजनों ने आज्ञा पत्र श्रीचरणों में अर्पित किए। दीक्षार्थी विपुल जैन, मुमुक्षु संजना, मुमुक्षु समता, मुमुक्षु आयुषी व मुमुक्षु अंकिता ने अपनी-अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। समणी विनीतप्रज्ञाजी और समणी जगतप्रज्ञाजी ने गीत का संगान किया। 

समुपस्थित जनता को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित करते हुए तेरापंथ की दीक्षा प्रणाली और इसके महत्त्व को व्याख्यायित किया। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि इस संसार में अनंत आत्माएं भ्रमण कर रही हैं। आदिकाल से चल रहे इस भ्रमण का कितनी आत्माओं का मानों अंत ही नहीं है और कितनी आत्माएं इस यात्रा का समापन भी हो जाता है और मोक्ष प्राप्त कर लेती हैं। आत्मा को जन्म-मृत्यु के परिभ्रमण से मुक्त कराने के लिए आदमी को सम्यक्त्व की साधना करनी होती है। इस सम्यक्तव ऐसा रत्न है, जिसके सामने दुनिया का कोई रत्न नहीं, इससे अचछा कोई मित्र, बन्धु और लाभ नहीं है। सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए कषायों के अल्पीकरण का प्रयास और अनाग्रह की चेतना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। 

आज यह दीक्षा समारोह आयोज्य है। चतुर्मासकाल प्रारम्भ होने से पूर्व यह दीक्षा समारोह मानों मंगल सूचक है। समणी सहित मुनि और साध्वी दीक्षा होने जा रही है। संयम रत्न के समक्ष तो दुनिया की समस्त संपदा भी मानों तुच्छ होती है। आचार्यश्री ने दीक्षार्थियों के परिजनों को सम्मुख उपस्थित होने का इंगित प्रदान किया। उपस्थित दीक्षार्थी के परिजनों से मौखिक रूप में भी दीक्षा की आज्ञा ली तथा समुपस्थित दीक्षार्थियों से के भी मानसिक दृढ़ता का अंतिम परीक्षण किया। 

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दीक्षा की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए आर्षवाणी का समुच्चारण करते हुए प्रथम आचार्यश्री भिक्षु, तेरापंथ की आचार्य परंपरा, आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का स्मरण करने के उपरान्त आचार्यश्री ने आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए सन् 2023 के चतुर्मास प्रवास स्थल में चतुर्मासकाल प्रारम्भ होने से पूर्व दीक्षा प्रदान कर दी। गूंजती आर्षवाणी के मध्य आचार्यश्री ने नवदीक्षित साधु का केशलोच किया तो साध्वीप्रमुखाजी ने नवदीक्षित साध्वीद्वय का केशलोच किया। तदुपरान्त नवदीक्षित साधु-साध्वियों को रजोहरण भी आचार्यश्री और साध्वीप्रमुखाजी ने प्रदान किया। हर एक विधि पर ‘ओम अर्हम्’ की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। 

आचार्यश्री ने दीक्षा समारोह के मध्य नामकरण की प्रक्रिया को सम्पन्न किया। नवदीक्षित साधु, साध्वियों व समणियों को आचार्यश्री ने इस प्रकार नए नाम प्रदान किए-   मुमुक्षु विपुल जैन- मुनि विपुलकुमार, समणी विनीतप्रज्ञाजी- साध्वी वैराग्यप्रभा, समणी जगतप्रज्ञाजी- साध्वी समत्वप्रभा, मुमुक्षु समता- समणी समत्वप्रज्ञा, मुमुक्षु आयुषी- समणी आर्जवप्रज्ञा, मुमुक्षु अंकिता- समणी अभयप्रज्ञा, मुमुक्षु संजना- समणी स्वातिप्रज्ञा।  

चारित्रात्माओं को समुपस्थित जनता ने यथाविधि वंदन किया। आचार्यश्री ने नवदीक्षित साधु, साध्वियों व समणियों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि अब यत्नापूर्वक संयम का पालन करने का प्रयास हो। चलने, बोलने, उठने, बैठने, खाने-पीने, सोने अर्थात् सभी कार्य संयमपूर्वक हों। नवदीक्षित साध्वियों को साध्वीप्रमुखाजी की सन्निधि में, नवदीक्षित मुनि को मुनि दिनेशकुमारजी के संरक्षण व नवदीक्षित समणियों को साध्वीवर्याजी के संरक्षण में प्रदान कर उन्हें अपने नवजीवन के विकास की प्रेरणा प्रदान की। 

इस दौरान आचार्यश्री ने मुमुक्षु कल्प को साधु प्रतिक्रमण सीखने की अनुमति भी प्रदान की। पारमार्थिक शिक्षण संस्था से जुड़ी चार नई मुमुक्षुओं को आचार्यश्री ने मंगलपाठ सुनाया। 21 रंगी तपस्या के संदर्भ में आचार्यश्री की प्रेरणा के उपरान्त साध्वी सुषमाकुमारीजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वी मधुस्मिताजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त कर सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया।   



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