समस्त कर्मों का बीज है राग और द्वेष : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
समस्त कर्मों का बीज है राग और द्वेष : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
गुलजार हुआ नंदनवन, प्रवाहित होने लगी ज्ञान की गंगा
चतुर्मासकाल में धर्म, साधना के द्वारा कषायों को कम करने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
घोड़बंदर, ठाणे (महाराष्ट्र) :- मुंबई के पास घोड़बन्दर क्षेत्र में स्थित नंदनवन अब गुलजार हो गया है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी नंदनवन के भिक्षु विहार में विराजमान होकर जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान कर रहे हैं।
शुक्रवार को परिसर में बने भव्य एवं विशाल तीर्थंकर समवसरण में समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा के भीतर अनंतकाल से राग-द्वेष के संस्कार भी होते हैं। राग और द्वेष समस्त कर्मों के बीज हैं। पाप कर्म का बन्ध राग-द्वेष के कारण ही होता है। प्राणी का किसी के प्रति या तो राग होता है, अथवा द्वेष होता है। इन दोनों में से कोई न कोई, किसी न किसी के प्रति अवश्य ही होता है। साधना और अभ्यास से द्वेष का भाव चला भी जाए तो राग की भावना अवश्य होती है। वह बहुत बाद में जाने वाली होती है। अध्यात्म जगत में राग-द्वेष क्षीण करने अथवा उसे समाप्त करने की साधना होती है। राग-द्वेष को यदि एक शब्द में कहें तो मोह कह सकते हैं अथवा कषाय भी कह सकते हैं।
आदमी को अपने जीवन में मोह को कम करने और उसका त्याग करने का प्रयास करना चाहिए। मोह को त्याग समता की साधना की दिशा में आगे बढ़ने वाले को कभी मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है। समस्त धार्मिक-आध्यात्मिक कार्यों व क्रियाओं आदि का केन्द्र समता की साधना के द्वारा समत्व भाव को जागृत करना ही होता है। ध्यान, स्वाध्याय, जप, तप आदि के द्वारा राग-द्वेष के भावों को क्षीण करने का प्रयास करना चाहिए।
राग-द्वेष पर विजय प्राप्त करने वाला ही अर्हत, तीर्थंकर बन सकते हैं। तीर्थंकर बनाए नहीं जाते, उनकी नियुक्ति नहीं होती, बल्कि उनमें अर्हता होती है, वे राग-द्वेष के विजेता होते हैं, तब वे तीर्थंकर बनते हैं। आचार्यश्री ने वर्तमान अवसर्पिणी के 24 तीर्थंकरों का वर्णन किया और तीर्थंकर बनने की प्रक्रिया को भी वर्णित करते हुए लोगों को इस चतुर्मास के दौरान धर्म, ध्यान, जप, तप के द्वारा अपनी आत्मा का कल्याण करने की प्रेरणा प्रदान की।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुंबई से संबद्ध मुनि अनुशासन कुमारजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। जैन विश्व भारती के महामंत्री सलिल लोढ़ा व सरला भूतोड़िया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-ठाणे व जैन संस्कारक-मुम्बई ने अपने-अपने स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथ महिला मंडल मुंबई ने ‘आगमोत्सव’ के संदर्भ में अपनी प्रस्तुति देते हुए गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। रंजना सिंघवी ने आचार्यश्री से 29 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
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