जीतनेवाले उम्मीदवारों को टिकट मिलना चाहिए :- पारस जैन
उत्तर उज्जैन से बस एक ही नाम पारस जैन
- : 30 साल की विधायकी के बाद भी पारस जैन थके नहीं। घुटनों का ऑपरेशन करा लिया ,कश्मीर की वादियों में घूम लिया, और फिर चुनाव की तैयारी...
उज्जैन उत्तर के लोकप्रिय विधायक पारस जैन ने पहला चुनाव 1993 में लड़ा था और जीते थे, इस बीच एक चुनाव हारे और 30 सालों से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं, 10 साल पहले उन्होंने कहा था कि मेरा आखिरी चुनाव है लेकिन इस बार तो हमें कुछ ज्यादा ही जोश दिखाई दे रहा है। दोनों घुटनों का ऑपरेशन भी करा लिया और कश्मीर की वादियों की सैर भी कर ली। पूरे तरोताजा होकर चुनाव लड़ने की तैयारी है शहरी विधायक की।
कहते हैं राजयोग किस्मत से मिलता है लेकिन हमारे विधायक पारस जैन को तो यह राज योग बल्क में मिला है। 30 वर्षों से न केवल भाजपा ने उज्जैन उत्तर से उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया बल्कि वे जीतते भी गए केवल एक बार राजेंद्र भारती से हारने के अलावा। पिछले दो चुनाव से भाजपा के अन्य दावेदार इसी चक्कर में बैठे हैं कि पहलवान अपनी तरफ से सीट छोड़ देंगे लेकिन जैसे ही चुनाव नजदीक आते हैं पहलवान के अंदर का नेता जाग जाता है। दो चुनाव पहले उन्होंने कहा था कि यह मेरा आखिरी चुनाव है और उस चुनाव में माली समाज की नाराजगी दूर
करने के लिए उन्होंने कई तरह के चुनाव रिक्शे में बैठकर लड़ा क्योंकि पैर में तकलीफ थी और ये तय माना जा रहा था कि 2023 का चुनाव पहलवान नहीं लड़ेंगे लेकिन पासा उल्टा पड़ रहा है।पहलवान के अंदर विशेष जोश दिख रहा है। वह अब कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं है. जानकारी है कि कश्मीर में एन्जॉय करते जैन की फोटो विरोधियों को गले नहीं उतर रही है।
आश्वासन दिए थे, इसके बाद एक हाल-ए- नेताजी :- उन्होंने घुटनों के ऑपरेशन भी करा लिए हैं तथा परिवार के साथ कश्मीर की वादियों की और शिकारों पर बैठकर डल झील की सैर भी कर ली है जिसके सोशल मीडिया पर खूब वीडियो और फोटो वायरल हो रहे हैं, शायद यह बताने के लिए कि वे अभी पूरी तरह से स्वस्थ है और एक चुनाव और लड़ेंगे. पारस जैन जैसा योग्य प्रत्याशी हर क्षेत्र की जनता चाहती है लेकिन उनका क्या करें जो उत्तर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का टिकट चाह रहे हैं। वे कब तक महाकाल के भरोसे बैठे रहेंगे और भाग्य को आजमाते रहेंगे। कई भाजपा के दावेदार तो बुढ़ा गये, अब दबे छुपे भाजपा में ही यह स्वर बुलंद हो रहे हैं कि पारसजी कब मानेंगे, पिछले चुनाव में तो वे कह रहे थे कि मैं नहीं लडूंगा फिर अचानक छह माह में ऐसा क्या हुआ, कौन सी शक्ति प्रवेश कर गई कि वे फिर से खम ठोक रहे हैं। ऐसे में उज्जैन उत्तर में भाजपा के अन्य दावेदारों को चिंता हो गई है, क्योंकि भाजपा तो पारस जैन के अलावा किसी के नाम पर विचार ही नहीं करती।
नई उम्मीदवारी कर रहे भाजपा नेताओं को पता है कि इस बरगद को हटाए बिना उनका नंबर नहीं लगने वाला और माना जा रहा था कि इस बार पूर्व मंत्री थकेले से दिखाई देंगे लेकिन कश्मीर में घूमते हुए उनकी एन्जॉय करती फोटो कई को चिंता में डाल रही है। सुनने में आ रहा है कि वे फिर चुनाव के लिए तैयार हैं।हम तो यही कहेंगे पारस जी, अब तो भगवान के लिए दूसरों को भी मौका दो क्या रखा है नश्वर जीवन में कुछ साथ नहीं जाएगा. किसी दूसरे का भला होने दो, बेचारा दुआ देगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें