मानव अपनी आत्मा को बनाए मित्र : आचार्य महाश्रमण
कांदिवली प्रवास का दूसरा दिन, भक्तों और मेघों ने साथ-साथ की गुरु वंदना
मुंबई :- इस वर्ष मुम्बईवासियों को दो-दो मानसून से ओतप्रोत होने का अवसर मिल रहा है। पहले प्राकृतिक मानसून के आगमन से आसमानी मेघ अपनी जल बूंदों से जन-जन को भिगो रहा है तो दूसरी ओर वर्ष 2023 का चतुर्मास करने के लिए मुंबई महानगर में ज्ञान व अध्यात्म का मानसून लेकर पधार चुके जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अध्यात्म जगत के महासूर्य महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अमृतवाणी की वर्षा से लोगों के आंतरिक मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान कर रहे हैं। इससे मुम्बईवासियों की खुशी का ठिकाना नहीं है। आसमान के मेघ जलबूंदों मे माध्यम से लोगों को गर्मी से राहत दे रहे हैं तो आचार्यश्री की अमृतवाणी की वर्षा लोगों को आंतरिक ताप से राहत दिला रही है।
कांदिवली स्थित जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा तेरापंथ भवन में प्रवास के दूसरे दिन ‘सिद्ध मर्यादा समवसरण’ में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की अभिवंदना में श्रद्धालुओं ने हर्षाभिव्यक्ति दी तो मेघों ने भी जलवर्षा कर गुरुचरणों की अभिवंदना की। साथ ही क्षेत्रीय विधायक अतुल भातखलकर ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर आचार्यश्री की अभिवंदना में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
अपने सुगुरु की अमृतवाणी का श्रवण करने के लिए तेरापंथ भवन में बने विशाल प्रवचन पंडाल में उपस्थित जनता को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में मित्र और मैत्री के संदर्भ में बताया गया है कि हे मानव! तुम्हारी आत्मा ही तुम्हारी सच्ची मित्र है। तुम्हीं अपने सबसे अच्छे मित्र हो। दुनिया में सभी के अपने-अपने मित्र होते हैं और शत्रु भी होते हैं। विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों से लेकर वृद्धावस्था तक के मानव का कोई न कोई मित्र होता है। मित्रों से परस्पर बातचीत, व्यवहार आदि भी होता है। मित्र है तो मित्र की चिंता भी करता है तो कभी सहयोग भी करता है। इस व्यवहार जगत के मित्र के छह लक्षण बताए गए हैं-आपस में लेन-देन का व्यवहार, एक-दूसरे की गुप्त बातों को जानना अथवा बताना, एक-दूसरे के घर कभी भी भोजन करना अथवा कराना। इस प्रकार मित्र अपने मित्र के कल्याण का भी प्रयास कर सकता है। मित्रता उच्चस्तरीय हो तो उसका और भी महत्त्व हो सकता है।
शास्त्र में उच्च बात बताई गई कि मानव स्वयं ही स्वयं का मित्र होता है। मनुष्य को सबसे पहले अपनी आत्मा को ही अपना मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। बाहरी मित्र हों अथवा न भी हों, किन्तु अपनी आत्मा को मित्र अवश्य बनाने का प्रयास करना चाहिए। सद्प्रवृत्ति में लगी आत्मा व्यक्ति की मित्र और बुरे विचारों और कार्यों में लगी आत्मा उसकी शत्रु के समान होती है। सद्प्रवृत्ति में लगी आत्मा व्यक्ति का कल्याण करने वाली होती है।
आदमी के जीवन में धर्म है तो मानना चाहिए कि आत्मा मित्र है। जीवन में अहिंसा, संयम, संतोष, उपशम है तो आत्मा मित्र है और जीवन में अधर्म, हिंसा, गुस्सा, लोभ आदि है तो आत्मा शत्रु है। इसलिए आदमी को अपनी आत्मा को धर्म से भावित बनाने का प्रयास करना चाहिए। अध्यात्म और धर्म की शरण में रहते हुए अपनी आत्मा को मित्र बनाएं और आत्मस्थ रहने का प्रयास हो।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। गत चतुर्मास कांदिवली में करने वाली साध्वी निर्वाणश्रीजी ने अपने हर्षित भावों को अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष पारसमल दूगड़, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष नवनीत कच्छार, सुशीला नाहटा व निर्मला बैद ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल, मीनाक्षी भूतोड़िया व रवि मालू ने पृथक्-पृथक् स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथ किशोर मण्डल तथा कांदिवली के तीनों ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थियों ने अपनी-अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति के माध्यम से पूज्यचरणों की अभिवंदना की।
आचार्यश्री के दर्शन को पहुंचे कांदिवली पश्चिम के विधायक अतुल भातखलकर ने कहा कि मैं विधानसभा की समस्त जनता की ओर से परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक स्वागत करता हूं। आपके आगमन से हमारी यह धरा पावन हो गई है। आपका आशीर्वाद और स्नेह हमारी जनता पर सदैव बना रहे। आपश्री का चतुर्मास सफल हो, ऐसी मैं कामना करता हूं।
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