मांसाहार, अभक्ष्य के सेवन से बचने का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्य महाश्रमण

आगम आधारित प्रवचन माला में आचार्यश्री ने नरक आयुष्य बंधन के हेतुओं का किया विवेचन

 देश भर से उपस्थित किशोरों को गुरुदेव ने दी तात्विक गीतों के अध्ययन की प्रेरणा


घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र) :- 
अपने पावन संदेशों के माध्यम से जनमानस में अहिंसा, सद्भावना, प्रेम, करुणा का संप्रसार करने वाले अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ सानंद घोड़बंदर रोड स्थित चतुर्मासिक क्षेत्र नंदनवन परिसर में विराज रहे है। एक और जहां मुंबई महानगर में प्रकृति अपनी वर्षा से धरती पर मानों शीतलता का माहोल का रही है वहीं आचार्य प्रवर की धर्म देशना नित हजारों श्रद्धालुओं को अपनी ज्ञान वर्षा से अभिस्नात करा रही है। जैन आगम भगवती पर आधारित प्रवचन माला और आचार्यप्रवर के श्रीमुख से कालूयशोविलास का राजस्थानी भाषा में श्रवण कर श्रद्धालु नित नवीन ज्ञान राशि को प्राप्त कर रहे है। गुरुदेव के सान्निध्य में आज राष्ट्रीय किशोर मंडल अधिवेशन के मंचीय कार्यक्रम का भी समायोजन हुआ।

भगवती आगम के सूत्रों की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जीव के नरक गति के आयुष्य बंधन के मुख्यतया पांच हेतु बताए गए हैं - महाआरंभ, महा परिग्रह, पंचेंद्रीय वध, मांसाहार, एवं नेरियक आयुष्य नाम कर्म का उदय। चेतना में विकृति होने पर हिंसा और परिग्रह जब सघनता को प्राप्त होते है तब वे नरक गति आयुष्य बंधन के कारण बन जाते है। जहा बहुत ज्यादा जीवों का घात होता है। जहा आवेश में आकर व्यक्ति पंचेंद्रिय प्राणियों को मार देता है। यह सब हिंसा के रूप है। शिकार करके खुशी मानना। ये हिंसा के प्रति खुशी, आसक्ति जा भाव गलत है। गृहस्थ जीवन में कई बार जीवन व्यापन हेतु मजबूरी में कोई हिंसा का कार्य करना पड़ा तो उसके लिए मन में खेद होना चाहिये। अहिंसा परम धर्म है। कम से कम स्थूल हिंसा से तो बचे। हिंसा केसे कम से कम हो ऐसा प्रयास करे।

गुरुदेव ने आगे प्रेरणा देते हुए कहा की मांसाहार, अभक्ष्य सेवन से भी बचने का प्रयास होना चाहिए। इसमें हिंसा से बचने के साथ साथ संयम का भी पक्ष है। विशेष कर जैन संस्कृति के श्रावक समाज विशेष रूप से ध्यान दे। कही भोजन में नॉनवेज ना आजाएं। बच्चे पढ़ने बाहर जाते है, हॉस्टल में रहते है। वहां कहीं नॉनवेज खाने का काम पड़े इसी जगह भेजना से बचना चाहिए। बाहर कहीं घूमने या होटल में जाए जहां मांसाहार शाकाहार साथ में बनता हो वहां क्या पता लगता है। साथ में बनता है या अलग बनता है। जहां ऐसी स्थिति हो वहां खाने से ही बचना चाहिए। परिग्रह की भी अति ना हो। आवश्यकता अनुसार पदार्थ रखने पड़ते है , संग्रह भी करना पड़ता है। इसमें ध्यान रखे की पदार्थों के प्रति मूर्छा की भावना ना आए, moh का भाव ना आए। जितना हो सके त्याग संयम बड़े। रात्रिभोजन, जमीकंद से भी बचाव का प्रयास होना चाहिए। धार्मिक स्थलों पर भोजनशालाएं चलती है वहां तो जमीकंद ना हो। यह एक प्रकार से हिंसा का अल्पीकरण का प्रयास है। इन कारणों से बचने का प्रयास रखे ताकि पाप कर्मों का बंधन कम हो। 


तेरापंथ किशोर मंडल के राष्ट्रीय अधिवेशन में उपस्थित किशोरों को प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि जीवन में कुछ विशेष बनने एवं करने की उग्र इच्छा होती है । कुछ बनने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए । पुरुषार्थ भी सम्यक एवं विवेकयुक्त हो।  

किशोर मंडल, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद से जुड़ा हुआ एक अच्छा संगठन है । किशोरों में सेवा, त्याग एवं तपस्या की भावना आएं वह एक अच्छी खबर होती है । जो किशोर इससे जुड़े हुए है, एक नियंत्रण में है, अच्छी गति प्रगति करते है वह उनके जीवन की सभ्यता का परिचायक एवं उनके जीवन के निर्माण  की दृष्टि के यह एक अच्छी बात हो सकती है । 

पूज्य प्रवर ने पुरानी ढालें सीखने हेतु किशोरों को प्रेरणा प्रदान करवाई साथ ही । निडरता, मैत्री भाव, उत्सुकता के साथ संतुलन बनाए रखते हुए समस्याओं के समाधान हेतु प्रेरणा दी ।



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