कल्पवृक्ष है तेरापंथ धर्मसंघ : आचार्य महाश्रमण

वर्तमान अनुशास्ता की मंगल सन्निधि में आयोजित हुआ तेरापंथ स्थापना दिवस समारोह

मुंबई चातुर्मास के उपरान्त आगे के विहार मार्ग का भी आचार्यश्री ने किया उल्लेख


 घोड़बंदर, ठाणे (महाराष्ट्र) :-
68 वर्षों बाद मुम्बई महानगर के नन्दनवन में वर्ष 2023 का चातुर्मास करने को पहुंचे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन नित नये आयोजनों का दौर प्रारम्भ हो गया है। मुंबईवासी ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर स्वयं को धन्य महसूस कर रहे हैं। 28 जून को चातुर्मासिक मंगल प्रवेश के उपरान्त 29 जून को भव्य दीक्षा समारोह, एक जुलाई को बोधि दिवस, दो जुलाई को चातुर्मास काल की स्थापना के बाद सोमवार को महातपस्वी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में तेरापंथ स्थापना दिवस का भव्य और आध्यात्मिक आयोजन हुआ। 

कार्यक्रम का शुभारम्भ तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। तेरापंथ स्थापना दिवस के संदर्भ में साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी व मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने समुपस्थित जनता को उद्बोधित करते हुए तेरापंथ की स्थापना के विविध प्रसंगों का वर्णन किया। 

तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आस्था घनिभूत हो, श्रद्धा अच्छी हो तो श्रद्धेय भी अच्छा होना चाहिए। श्रद्धेय में कुछ अच्छा होता है तो आस्था प्रगाढ़ हो सकती है। वही सत्य है, वह सत्य ही है, यह बात आस्था से जुड़ी हुई है। जब बीज का वपन होता है तो उसमें छिपा विशाल वृक्ष दिखाई नहीं देता। वह जब विशाल वृक्ष बन जाता है, तो बीज नहीं दिखाई देता। तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्य महामना आचार्यश्री भिक्षु ने आज के दिन भाव दीक्षा स्वीकार की और आज वह तेरापंथ धर्मसंघ का स्थापना दिवस बन गया। आचार्यश्री भिक्षु ने भाव दीक्षा स्वीकार कर राजस्थान के केलवा में तेरापंथ के बीज का वपन किया और आज का यह कार्यक्रम उस बीज के वृक्ष का रूप है। आज तेरापंथ की स्थापना को 263 वर्ष हो गए। आचार्य भिक्षु के साथ कुछ साधु ही थे, किन्तु नियति का योग इस संघ का कितना विकास हुआ। साधु-साध्वियों व अन्य चारित्रात्माओं से मुमुक्षु संख्या वृद्धि की बात हमने बताई थी। मुमुक्षुओं की संख्या बढ़ती है तो संघ का विकास हो सकता है। 

आचार्यश्री भिक्षु को उस समय कितनी कठिनाईयां सामने आई होंगी, लेकिन उन्होंने उन कठिनाइयों को सत्व के बल पर पार किया। जीवन में सत्व हो तो सामान्य साधन सामग्री से भी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। जिस प्रकार श्रीरामचन्द्रजी ने सामान्य साधन और सामग्री के साथ विशाल समुद्र को पार कर रावण जैसे मजबूत विपक्षी पर भी विजय प्राप्त की। उसी प्रकार आचार्यश्री भिक्षु से लेकर आचार्यश्री तुलसी तक समय-समय पर विरोध होता रहा, लेकिन आचार्यों की दृढ़ आस्था व सत्व की शक्ति से सारे विरोध समाप्त होते गए। कई बार गलतफहमी में भी विरोध हो सकता है। उसे समझने के बाद विरोध समाप्त भी हो सकता है। 

साधु-साध्वियों को तेरापंथ के सिद्धांतों का अच्छा ज्ञान करने का प्रयास करना चाहिए। तेरापंथ के संदर्भ को समझने के लिए तेरापंथ के इतिहास और दर्शन का स्वाध्याय करना चाहिए। तेरापंथ दर्शन, इतिहास और मर्यादा-व्यवस्था को जितनी गहराई से समझा जाए, उतना विकास हो सकता है। तेरापंथ की गरिमा को और बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। पूर्वाचार्यों और अनेक चारित्रात्माओं का धर्मसंघ के विकास में अपना कितना योगदान है। श्रावक-श्राविकाएं भी संघ और संघपति की सेवा-उपासना का प्रयास करें। 

तेरापंथ धर्मसंघ एक कल्पवृक्ष के समान है। हम सभी कल्पतरु शासन के विकास में अपना योगदान देते रहें, सेवा देने का प्रयास करते रहें। इस चतुर्मासकाल प्रथम दिन तेरापंथ स्थापना दिवस के रूप में आया है। आचार्यश्री ने ‘शासन कल्पतरू’ गीत का आंशिक संगान भी किया। 

उन्होंने ने मंगल प्रेरणा प्रदान करने के उपरान्त मुंबई चातुर्मास को सम्पन्न कर पुना के बाद औरंगाबाद अक्षय तृतीया तक पधारने वाले संभावित यात्रा पथ को बताया। तेरापंथ स्थापना दिवस के संदर्भ में संतवृन्द और साध्वीवृंद ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। अंत में आचार्यश्री ने पट्ट से नीचे खड़े हुए तो चतुर्विध धर्मसंघ ने भी खड़े होकर अपने अनुशास्ता के साथ संघगान किया। संघगान के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। 



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