लघुता से प्राप्त होती है प्रभुता : आचार्य महाश्रमण
आचार्य श्री ने दी प्रकृतिभद्रता में रहने की प्रेरणा
दो साध्वियों के मासखमण तप पारणा के साथ चातुर्मास में गतिमान है कई मासखमण तप
घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र) :- अणुव्रत यात्रा के साथ महाराष्ट्र की धरा पर चातुर्मास कर रहे अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन प्रवचनों से मुंबईवासी नित्य नवीन ज्ञानराशि को प्राप्त कर रहे है। घोडबंदर रोड स्थित नंदनवन परिसर में चातुर्मासरत गुरुदेव की सन्निधि साधु–साध्वी, श्रावक–श्राविका समाज चतुर्विद्ध धर्मसंघ धर्माराधना का विशेष अवसर प्राप्त कर रहा है। आज आचार्य श्री भिक्षु की मासिक पुण्य तिथि तेरस एवं चतुर्दशी एक ही दिन होने से गुरुदेव द्वारा हाजरी वाचन का क्रम भी रहा। गुरुदेव के सान्निध्य में साध्वी विशाल प्रभाजी एवं साध्वी विशालयशा जी ने मासखमण तप– 28 दिनों की तपस्या का पारणा किया। श्रावक समाज में और भी अनेकानेक तपस्याएं पूज्य चरणों में गतिमानता को प्राप्त कर रही है।
मंगल प्रवचन में भगवती आगम सूत्र की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री ने कहा – प्रकृति भद्रता, प्रकृति विनायता, सानुक्रोष्ता, अमत्सरता ये मनुष्य आयुष्य बंधन के मुख्य हेतु होते है। इस संसार में मनुष्य जन्म पाना और वो भी संज्ञी मनुष्य बनना बहुत बड़ी बात होती है। अगर हम मनुष्य बंधन के कारण समूह पर ध्यान दे तो ये सभी गुणात्मक कारण है। प्रकृति से सरल होना, भीतर में कोई छल कपट नहीं होना ये प्रकृति भद्रता है। व्यक्ति सोचे की मुझे कितना जीना है। वर्तमान समय में प्राचीन काल की अपेक्षा आयुष्य कम होता जा रहा है। गिनती के ही लोग होंगे जो वर्ष की आयु से अधिक प्राप्त कर पाते है। व्यक्ति यह ध्यान दे की मेरा स्वभाव कैसा है। स्वभाव से व्यक्ति बड़ा होता है। साथ ही नम्रता का भाव होना, क्षमाशीलता होना, बड़ों के प्रति आदर के भाव होना व्यक्ति के स्वभाव को ऊंचा बनाते है।
गुरुदेव ने आगे कहा की आकृति के सुंदर होना अलग बात होती है। किंतु व्यक्ति अपने स्वभाव, प्रकृति से उच्चता को प्राप्त करता है। आराध्य के प्रति दीनता का भाव होना चाहिए। लघुता से व्यक्ति प्रभुता को प्राप्त करता है। तत्काल आवेश आ जाना, बड़ों के प्रति अविनय का भाव होना खोड़ीली प्रकृति होना व्यक्ति को तुच्छ बनाते है। व्यक्ति को इन हेतुओं को ध्यान में रखते हुए अपने स्वभाव को अच्छा बनाना चाहिए।
इस अवसर पर आचार्य श्री ने साध्वी श्री बिदामाजी का उल्लेख करते हुए फरमाया की साध्वी बिदामाजी 105 वर्ष की है। धर्मसंघ के इतिहास वें इकलौती साध्वी है जिन्होंने 100 वर्ष की आयु को भी पार किया है और वर्तमान में 105 वर्ष की है। ज्ञातव्य है की वर्तमान में साध्वी बिदामाजी कालू (राजस्थान) में चातुर्मास कर रही है।
प्रसंगवश गुरुदेव ने आगे कहा कि आज दो साध्वियों ने मासखमण तप किया है। दोनों ही युवा है। इतनी कम उम्र में इतना बड़ा तप करना बड़ी बात है। पहले भी इनके द्वारा अनेक बड़ी तपस्याएं हुई है। दोनों के नाम में विशाल है। ये तपस्या में, साधना, सेवा में भी विशालता को प्राप्त होती रहे। धर्मसंघ में छोटे–छोटे साधु साध्वियां इतने तप करते रहते है यह बहुत ही अच्छी बात है। श्रावक समाज में भी इक्कीस रंगी और कितने ही मासखमण हो रहे है।
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