भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का योगदान विषय पर वेबिनार आयोजित

देश विदेश से शामिल हुए लोग


दिल्ली। भारतीय संस्कृति के 
विकास में जैन धर्म का योगदान विषय पर अंतरराष्ट्रीय बेबीनार आयोजित हुई। मुख्य अतिथि इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं जे. ए. एस. ऐकैडमी अहमदाबाद के निदेशक डा. नरेंद्र भंडारी के निर्देशन में अध्यक्षता सुप्रसिद्ध लेखिका डा. प्रभा किरण जैन ने की जएएस की महासचिव डा. पूर्वी दवे के सहयोग से संयोजक शैलेंद्र कुमार जैन ने संचालन किया।

इस मीटिंग का उद्देश्य भारतीय इतिहास पुरातात्व और कला के विकास में आदिकाल से जैन धर्म के योगदान पर चर्चा कर विगत वर्षों में हुए अनेक शोध कार्यों के आलोक में भारतीय सांस्कृति के विकास में जैन धर्म के योगदान को रेखांकित कर तथ्य परक रूप से नव मूल्यांकन करना और उसको राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल में प्रकाशित करना है, भारतीय इतिहास के निर्माण ने उसकी उपयोगिता और उपादेयता को प्रदर्शित तथा स्थापित करना। वरिष्ठ विद्वान डा नरेंद्र जैन ने मंगलाचरण कर चर्चा का शुभारंभ किया।

संबंधित विषय पर जयपुर से जुड़े वरिष्ठ विद्वान डा. पी.सी. जैन ने कहा कि मैंने जैन दर्शन पर 250 से जादा पी.एच.डी. कराई हैं और इसी विषय पर कई सरकार के सहयोग से कई प्रोजेक्ट पर काम किए हैं जिनको आप सब के साथ मिलकर और आगे बढ़ाने के कार्य करेंगे और हर संभव मदद करेंगे।

लखनऊ से डा. बजेश रावत ने अपनी पुस्तक में सिन्धु सभ्यता और वैदिक उल्लेखों के माध्यम से किए शोध कार्य पर प्रकाश डाला, अनेक मूर्तियों का साम्य ऐतिहासिक कालीन मूर्तियों से किया। आगरा से जुड़े डा, भानु प्रताप ने फतेहपुर सीकरी पर प्रकाशित पुस्तक में यह बताया कि अकबर से 500 साल पहले यह क्षेत्र जैन धर्म का एक बड़ा केंद्र था तब से लेकर आज तक एक जैन नगर है वहीं पर संवत 1010 की मिली देवी जैन सरस्वती की प्रतिमा देश की सुंदरतम प्रतिमा है, सैकरिक्य जैन आचायों की बस्ती कहलाती थी इसी विषय को आगे बढाते हुए ए.एस.आई के पूर्व अधिकारी डा. मैनुअल जोसेफ ने बताया कि मैंने अनेक लेखों में यह कहा है कि सिन्धु घाटी मिली दिगंबर मूर्तिया और प्रतीक चिह्न जैन परंपरा से अधिक साम्य रखते हैं, लोगों को जो दिख रहा है उसे कहने में संकोच नहीं करना चाहिए। निर्मल जैन ने कहा कि महावीर, गौतम बुद्ध मौर्य साम्राज्य खारवेल आदि से जुड़ी कई प्रमुख घटनाओं और तिथि निर्धारित करने के विषय पर और अधिक शोध होना चाहिए जिसपर मैं अभी और काम कर रहा हूं। इसी क्रम में डा. नरेंद्र जैन ने स्व. निर्मल सेठी जी के साथ हुई कई देशों की यात्रा कर प्रमुख तथ्यों को संग्रहित कर एक पुस्तक प्रकाशित की है। जो एक सार्थक प्रयास है. आई. ए. जे. एस. के डा. श्रीनेत्र पांडे ने कहा कि मूर्तियों में लाइन लगभग दो हजार साल से मिलते है पहले नहीं मिलते तो दिगम्बर मूर्तिया जो मिलती है उनको और क्या चिह्न प्रतीक हो जिनके आधार से उसे जिन प्रतिमा सिद्ध किया जाए उनपर सभी का आभार प्रकट किया। सभी विद्वानो को सुनने के बाद डा. नरेंद्र भण्डारी ने कहा कि आप सभी ने बहुत अच्छे अपने विषयों को रेखांकित किया और सभी का प्रयास बेबीनार को सफल बनया। अब हमें आगे क्या करना है उस पर विचार विमर्श कर एक कार्य योजना तैयार कर उसको सुरु करना और उसे निरंतर करते रहने के लिए सबके सहयोग से सार्थक प्रयास करना चाहिए। अंत में अध्यक्षीय वक्तव्य में डा. प्रभाकिरण जैन ने कहा निसंदेह आप सभी का इतिहास पुरातात्व मे महत्वपूर्ण योगदान है परन्तु इन सब का प्रचार- प्रसार बहुत कम है क्योंकि मैं स्वयं लेखक हूं तो यह जानती हूं कि ऐतिहासिक पुस्तके अपने सीमित पाठको तक ही पहुंच पाती है इसलिए आज के दौर में हमें आगे डाकुमेन्ट्री वीडियोज बना कर शोशल मीडिया में प्रचार- प्रसार करें जो इस दौर की आवश्यकता है, उन शोध पत्रों का संग्रह कर विशेषांक के रुप मे भी प्रकाशित करना चाहिए, अंत में कार्यक्रम संयोजक व श्री आदिनाथ मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष शैलेंद्र जैन ने आभार व्यक्त किया।

वेबिनार में  शुगलचंदजी, डा. नीलम जैन, डा. नवनीत जैन, डा. दृष्टि राठी, यू. के. जैन आदि ने जुड़कर इसे सफल बनाया।

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