सरकार जैन साधुओं की सुरक्षा को लेकर ठोस नीति क़ायम करें - श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र
साधु समाज के लिए जीवन जीता है
नई दिल्ली :- श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र ने कहा कि संत समाज की धरोहर हैं, जिनकी सुरक्षा संरक्षण का दायित्व समाज का है। साधु समाज के लिए जीवन जीता है। कोई भी जीव यदि दुखी है तो उसका प्रयास रहता है कि वह सुखी रहे। साधु सन्मार्ग पर लाने की शिक्षा देते हैं और दूसरों के जीवन को सुधारने के लिए सपदेश देते हैं। कर्नाटक में हाल ही में जैन संत की निर्मम हत्या भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात है। ऐसी घटना किसी साधु के प्रति कभी सुनने में नहीं आई। संत न होते समाज में तो क्या दशा होगी ?
श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र ने कहा कि जैन धर्म अहिंसा का पर्याय है। भगवान महावीर ने जिओ और जीने दो का उपदेश दिया जिसका अर्थ है स्वयं भी जिओ और दूसरो को भी जीने दो l अहिंसा का अर्थ कायरता नही है l हमारे साधु/संत श्रमण कहलाते है इसलिए ही हम श्रमण संस्कृति के उपासक है जब श्रमण ही नही रहेंगे तो धर्म कहां से रह पायेगा l
किसी भी संत की भला क्या रंजिश हो सकती है। ऐसे में अहिंसक संतों को निशाना बनाकर प्रताड़ित किया जाना और फिर उनकी हत्या करना, दुर्भाग्यपूर्ण है। समाज में इन घटनाओं को लेकर असुरक्षा की भावना घर कर गई है।
आगे श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र ने भारत सरकार से अपील करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा देश भर में जैन साधुओं की सुरक्षा को लेकर ठोस नीति निर्धारण करने सभी जैन संतो को एवं जैन उपाश्रय, जैन मंदिरों को सुरक्षा प्रदान करने, हर राज्य में जैन समाज की विभिन्न समस्याओं के निर्धारण के लिए, समाज के उत्थान एवं विकास के लिए “जैन आयोग” का गठन करे।
वर्तमान परिपेक्ष्य में प्रदेश में प्राचीन धार्मिक एवं तीर्थ स्थलों को विनिष्ट करने का असामाजिक तत्वों के द्वारा निरन्तर कुप्रयास हो रहा है l जैन धर्म की धरोहरों पर अवैध अतिक्रमण की दुर्भावनाएं हो रही है l जैन संतों पर अवांछित टिप्पणी और अवैध धमकिया तो अब छोटी बाते नजर आने लगी है संतो के नौ-नौ टुकड़े होने लगे है l संतो को विहार में भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है l इतना ही नहीं इस समय श्रमण एवं जैन संगठनो और श्रावक श्रार्विकाओ पर खतरे के बादल उनके ऊपर मडराते हुए साफ दिखाई दे रहे है l इसलिए जैन समुदाय के सामाजिक एवं आर्थिक स्थलों एवं श्रमणों,श्रमण संस्कृति के उपासको की सुरक्षा व श्रमण परम्परा का संरक्षण होना अतिआवश्यक है l
अल्पसंख्यक वर्ग के जैन समुदाय के हितों की रक्षार्थ के लिए राज्य में श्रमणों (साधु/साध्वियों) के पैदल विहार के समय विशेष सुरक्षा एवं चर्या के संरक्षण और ठहरने के लिए विशेष व्यवस्था राज्य सरकार उपलब्ध करवाएँ।
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