सुख की भाषा सभी के लिए अलग है :- ऋजुमति माताजी

वर्तमान के साथ जियो सुखी रहोगे

खुरई :- प्राचीन जैन मंदिर में आर्यिकारत्न ऋजुमति माताजी ने प्रवचन देते हुए कहा कि सुख की कामना प्रत्येक मनुष्य में होती है, लेकिन सुख की परिभाषा प्रत्येक के लिए अलग अलग होती है। कोई ज्यादा धनवान होने को सुख मानता है, कोई स्वस्थ शरीर को सुख मानता है। किसी के लिए सुख के मायने मान-प्रतिष्ठा है, तो किसी के लिए रूप-सौन्दर्य से बढ़कर कुछ भी नहीं। किसी को धर्म-आराधना में आनंद की प्राप्ति होती है, तो कोई दूसरों को परेशान करने में खुश होता है। फिर भी सुख को हासिल करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति तरह-तरह के पुरुषार्थ करता है। कुछ हद तक उसे सफलता भी मिलती है, फिर भी वह संतुष्ट नहीं होता है। 

उन्होंने कहा कि वह अधिक पाने की चाहत में कभी भी उस सुख के आनंद को भोग नहीं पाता है, जो उसे प्राप्त है। सदा ही उस आनंद की तलाश में रहता है, जो उसे अप्राप्त है। उन्होंने कहा कि संतोष की जिन्दगी जीना, वर्तमान में ही जीना, जो है उससे काम चला लेना, जितना है, उतने में संतोष रखना। जो मिला, खा लिया, भविष्य की चिंता न करना, जो नहीं है, उसकी परवाह न करना, पुण्य-पाप और कर्म की सत्ता में विश्वास रखना। आज हर मनुष्य दुःखी है, क्योंकि वह अभाव में जीता है, वह अभाव की असंतोष की जिन्दगी जीने की आदी है। जो उसके पास होता है, वह उसकी परवाह नहीं करता, उसके प्रति लापरवाह बन जाता है। लेकिन जो उसके पास नहीं होता, उसे पाने के लिए दिन-रात एक कर देता है, उसकी रातों की नींद खो जाती है, दिन का अमन-चैन खो जाता है और उसे जब इच्छा की गई वस्तु पुण्य की कमी से नहीं मिलती, तब वह हताष हो जाता है, निराश हो जाता है, दुःखी हो जाता है। पुण्य और पाप के उदय को नहीं सोचता है। 

आर्यिकाश्री ने कहा कि दुःख का पहला कारण अपनी आकांक्षा है। दुःख कहीं बाहर से नहीं आता, वह अपनी आकांक्षा, कामना से आता है, वह अपनी लालसा से आता है, वह अपने मन से आता है, पूर्व के पाप के उदय से भी आता है। दुःख और सुख का उद्गम स्थल भी अपना मन है। जहां मन शान्त हुआ, वहीं सुख का अमृत स्रोत फूट पड़ता है। जहां इच्छाएं, वासनाएं मरी, वहीं आनंद हिलोरे मारने लगता है। जहां आकांक्षा, तृष्णा का दहन हुआ वहीं सुख का झरना फूट पड़ता है। सुख का आधार धन व सत्ता नहीं, सत्य में है। सच्चा परम सुख तो आत्मा में है।

मंत्राेच्चार के साथ अष्टद्रव्य के 32 अर्घ्य समर्पित किए

प्राचीन जैन मंदिर में आर्यिकारत्न ऋजुमति माता जी के ससंघ सानिध्य एवं प्रतिष्ठाचार्य ब्रम्हचारी नीलेष भैया बंडा के मार्गदर्शन में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान चल रहा है। जिसमें संगीतमय विधान के छंदाें के गायन के बाद मंत्राेच्चार के साथ श्रद्धालुओं ने अष्टद्रव्य के 32 अर्घ्य समर्पित किए। सबसे पहले श्रद्धालुओं ने श्रीजी का अभिषेक, शांतिधारा और पूजन किया। साेशल डिस्टेंस का पालन करते हुए श्रद्धालु विधान में पूजा अर्चना कर रहे हैं। 

अशाेक शाकाहार ने बताया कि आर्यिका संघ के सानिध्य में प्रतिदिन सुबह 7 बजे अभिषेक, शांतिधारा, सामूहिक आयोजन हाेगा। सुबह 9 बजे आर्यिका संघ के विशेष प्रवचन आयोजित किए जा रहें है।

अभिषेक जैन लुहाड़िया / रामगंजमंडी

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