यूनिवर्सल वैक्सीनेशन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही कोरोना महामारी का मुकाबला संभव :- पी. चिदम्बरम

महामारी से जंग के लिए लोगों को कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा - विधानसभा अध्यक्ष

सीपीए की राजस्थान शाखा के 60 वर्ष पूर्ण होने पर स्मारिका का विमोचन

जयपुर :-
सांसद एवं पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने कहा कि कोरोना से जंग के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण का होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सल वैक्सीनेशन से ही इस महामारी से मुकाबला संभव है और इसके लिए दुनिया के सक्षम देशों को आपसी सहयोग से यह जिम्मेदारी उठानी होगी। उन्होंने कहा कि इस महामारी ने बच्चों को शिक्षा से वंचित कर दिया है, लोगों का रोजगार चला गया है और लोगों के बीच असमानता की खाई को और भी गहरा कर दिया है। उन्होंने कहा कि इस महामारी के दो चिन्ताजनक पहलू हैं, पहला तो स्वयं यह महामारी और दूसरा लोकतंत्र पर इसका प्रभाव। उन्होंने कहा कि इस महामारी ने दुनिया के हर देश की शासन प्रणाली पर चाहे वह लोकतंत्र हो, राजतंत्र या फिर तानाशाही सभी को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में आलोचना होना स्वाभाविक है और इसीलिये यह दूसरे प्रकार की शासन प्रणालियों से अलग है।

चिदम्बरम शुक्रवार को राज्य विधानसभा में वैश्विक महामारी तथा लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां विषय पर राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ, राजस्थान शाखा द्वारा आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देशों में वैक्सीन नेशनलिज्म का अनोखा चलन सामने आया है। जो वैक्सीन मैंने बनाई या मैं खरीद सकता हूं, वह मेरी है या अपनी वैक्सीन प्रमोट करने के लिए मैं दूसरे की वैक्सीन को अनुमति नहीं दूंगा। इस चलन ने महामारी से लड़ने के वैश्विक सहयोग की भावना को नुकसान पहुंचाया है। 

उन्होंने कहा कि सक्षम देशों द्वारा आबादी की दो या तीन गुना वैक्सीन खरीद की वजह से कई छोटे और गरीब देश वैक्सीन की उपलब्धता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस महामारी ने दुनिया के लगभग 18 करोड़ 87 लाख 18 हजार, 805 लोगों को प्रभावित किया है और करीबन 40 लाख 62 हजार 394 लोगों की मृत्यु हुई। सिर्फ हमारे देश में ही कोविड से मरने वालों की संख्या 4 लाख 12 हजार 563 हैं।
 
उन्होंने कहा कि कोरोना के समय में हमारे देश में भी केन्द्रीकरण, वैक्सीन कार्यक्रम की सही योजना और क्रियान्वयन, शिक्षा और हैल्थ केयर संसाधन, सामाजिक और आर्थिक असमानता, विधि के शासन और वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे बड़ी चुनौतियों के रूप में सामने आई हैं। उन्होंने कहा कि इस महामारी से लड़ने में हमारी कमजोरियां जाहिर हुई हैं, जिनका हमारे पास कोई जवाब नहीं है।

चिदम्बरम ने कहा कि इस महामारी ने हर शासन पद्दति के लूप होल्स को सामने ला दिया है। उन्होंने कहा कि कोई भी लोकतंत्र तभी सही मायनों में लोकतंत्र है, जब उसका प्रधानमंत्री हर दिन और अपने हर कार्य में संसद के प्रति जवाबदेह हो और उस लोकतंत्र में एक जागरूक संसद और लोगों के प्रश्न पूछने वाली मीडिया भी मौजूद हो। उन्होंने कहा कि यह जानने और समझने की जरूरत है कि हमारे देश में रूल ऑफ लॉ है ना की रूल बाय लॉ। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जवाबदेही से बचने वालों को भी आखिरकार तो जवाब देना ही होता है।

चिदम्बरम ने कहा कि इस कोराना के समय में केन्द्रीकरण का खात्मा हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गया। केन्द्रीकरण हमारे देश जैसी संघीय व्यवस्था में घातक है, जहां हर राज्य इतिहास, भाषा और सांस्कृतिक रूप से बिल्कुल भिन्न है। उन्होंने कहा कि समय पर वैक्सीन सप्लाई के लिए ऑर्डर नहीं करना, प्रीपेमेन्ट नहीं करना और दो के अलावा दूसरी वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को मंजूरी नहीं देने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकारों को मिलकर लोगों को वैक्सीन के लिए जागरूक और प्रेरित करना चाहिये। उन्होंने कहा कि राजनीतिक लोकतंत्र से राजनीति को दूर रखना एक महान राजनीतिज्ञ के ही बस की बात है, जो अमेरिका और ब्रिटेन में दिखाई देता है।

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में संसाधन और उनका उचित आवंटन दोनों बराबर महत्त्वपूर्ण हैं। आज तक देश में किसी भी राजनैतिक पार्टी को स्कूलों और अस्पतालों की दयनीय स्थिति के कारण दंडित नहीं किया गया है और ना ही ऑक्सीजन, बैड और दवाइयों की कमी के कारण। लोकतंत्र में धीरे धीरे ही यह पता लगता है कि विगत की गलतियां ही वर्तमान की बुरी दशा का कारण हैं। उन्होंने कहा कि हर कोई यह जानता है कि यदि इस महामारी के कहर को नियंत्रित नहीं किया गया और देश के लोगों को वैक्सीन से वंचित रखा गया, तो उसके परिणाम भुगतने होंगे।

 पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि यह अपार खेद का विषय है कि पिछले दशक में 27 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया गया था, और केवल पिछले दो ही सालों में हमने फिर से 23 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया है। उन्होंने कहा कि हमें इसका भी जवाब ढूंढ़ना होगा कि इस महामारी के दौरान देश में असंख्य गरीब बच्चे पढ़ाई में अपने साथ वालों से सिर्फ इसलिए पीछे छूट गए हैं, कि उनके पास ऑनलाइन पढ़ाई के लिए जरूरी संसाधन नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समस्या का समाधान करना भी इस कोरोना काल में एक चुनौती के रूप में सामने आया है।

उन्होंने कहा कि हो सकता है आने वाले समय में इस महामारी की दवा खोज ली जाए या पोलियो और चेचक की तरह इसे पूरी तरह खत्म कर दिया जाए। लेकिन यह प्रश्न हमेशा हमारे सामने रहेगा कि क्या हमारे देश का लोकतंत्र इस महामारी की चुनौतियों का सामना कर पाया और क्या लोगों की जान, उनकी आजीविका और जनता, खासकर बच्चे और निर्धन के कल्याण को संरक्षण दे सका।

इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सी. पी. जोशी ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि चिदंबरम ने केन्द्र में विभिन्न विभागों के मंत्री के रूप में देश के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने बताया कि वित्त मंत्री के रूप में देश का पहला ग्रीन बजट पेश किया था और देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए नई आर्थिक नीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

डॉ. जोशी ने कहा कि वर्तमान में कोविड महामारी के इस दौर में सामाजिक विषमता को कम करने, आर्थिक नीति को सुदृढ़ करने और प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने के लिए नीतिगत फैसले लिये जाने चाहिये। उन्होंने कहा कि इस बीमारी से लड़ने के लिए हमारे साथ-साथ दुनिया के दूसरे देशों ने भी क्यूरेटिव मेजर्स अपनाए। किसी ने भी प्रिवेंटिव मेजर्स नहीं लिये। उन्होंने प्रिवेन्टिव मेजर्स को मजबूत करने और इसके लिये प्रत्ये क व्यक्ति को कर्तव्यों् के निर्वहन की आवश्य कता प्रतिपादित की।

नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि इस महामारी ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है और लोकतांत्रिक देशों के लिए महामारी का यह दौर सबसे कठिन है। उन्होंने कहा कि महामारी पक्ष-विपक्ष, धार्मिक मान्यता, अमीर-गरीब कुछ नहीं देखती। इस कठिन समय में शिक्षा, आर्थिक गतिविधियों के साथ लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करना सबसे जरूरी है।

सीपीए की राजस्थान शाखा के सचिव और विधायक संयम लोढ़ा ने सीपीए के कायोर्ं के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

इस अवसर पर चिदंबरम द्वारा राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की राजस्थान शाखा के 60 वर्ष पूर्ण होने पर स्मारिका का विमोचन भी किया गया। राजस्थान विधान सभा सचिव प्रमिल कुमार माथुर ने स्मारिका के बारे में बताया कि 1911 में लोकतांत्रिक देशों का संगठन सीपीए स्थापित किया गया। वर्ष 1948 में इसका वर्तमान स्वरूप अस्तित्व में आया। गत वर्षों में राजस्थान शाखा ने अपनी सक्रियता में अभिवृद्धि करते हुए महत्वपूर्ण विषयों पर सेमिनार आयोजित की। भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा एवं राज्यपाल कलराज मिश्र सहित देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित विषय विशेषज्ञों एवं सांसदविदों के अनुभवों का लाभ इन सेमिनारों के माध्यम से सदस्यों के साथ-साथ समाज के अन्य वगोर्ं को भी प्राप्त हुआ है। स्मारिका में इन सेमिनार में वक्ताओं के उद्बोधन, राष्ट्रमंडल संसदीय संघ तथा उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी के साथ-साथ अन्य राज्य विधान मंडलों के प्रबुद्ध अध्यक्षों के आलेखों को भी समाहित किया गया है। 

- समापन सत्र -

 महामारी ने पूरे देश ही नहीं, बल्कि विश्व में संदेह का वातावरण निर्मित कर दिया :- डॉ. सहस्त्रबुद्धे 

सेमिनार के समापन सत्र के मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद डॉ. विनय प्रभाकर सहस्त्रबुद्ध थे। डॉ. सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि लोकतंत्र केवल वोटिंग या चर्चा का विषय ही नहीं है, बल्कि विचार-विमर्श से निकलने वाला नवनीत है। कोविड महामारी के प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करते हुए

डॉ. सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि महामारी ने पूरे देश ही नहीं, बल्कि विश्व में संदेह का वातावरण निर्मित कर दिया है। अपरिचित के भय ने सभी को जकड़ लिया है। महामारी के दौर ने लोगों के आम जीवन, गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस दौर में विश्व के अनेक लोकतांत्रिक देशों ने लोगों के मूलभूत अधिकारों, मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाये। उन्होंने कहा कि भारत ने महामारी के दौर में भी वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक नही लगाई, बल्कि सोशल मीडिया और इन्टरनेट का प्रयोग टेस्ट, ट्रेक एण्ड ट्रीट नीति के लिए किया गया। देश में महामारी के दौरान भी मीडिया को पूरी स्वतंत्रता दी गयी।

सूचना के आदान-प्रदान को जनतंत्र का आधार मानते हुए डॉ. सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि जनतंत्र में तंत्र नहीं बल्कि जन महत्वपूर्ण है। कोविड महामारी के प्रति लोगों को सचेत करने, जागरूक करने के लिए संवाद आवश्यक है। लोगों की सक्रिय भागीदारी से ही महामारी से उबरने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता के मंत्र से जनजीवन और आर्थिक गतिविधियों को वापस पटरी पर लाया जा सकता है। 

समापन सत्र को विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने भी सम्बोधित किया। अंत में सीपीए की राजस्थान शाखा के सचिव एवं विधायक संयम लोढ़ा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ज्योति जोशी ने किया।

इस महत्त्वपूर्ण परिचर्चा में विधायक, पूर्व विधायक सहित राज्य के सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों के कुलपति, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारीगण, प्रोफेसर्स और अधिवक्ताओं ने भाग लिया।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रमण संघीय साधु साध्वियों की चातुर्मास सूची वर्ष 2024

पर्युषण महापर्व के प्रथम पांच कर्तव्य।

तपोवन विद्यालय की हिमांशी दुग्गर प्रथम