जीने के नए अंदाज बनाएंगे

 

  .सीए आदीश कुमार जैन   


चांद भी आज हंस न सका,
जमीं पे छाया सन्नाटा समझ न सका,
लोग निकले नहीं क्यूं उसे देखने,
बदहवासी है क्यूं, समझ न सका,
खिड़कियों से चांदनी ने झांका मगर,
घबराए चेहरों का डर देखा न गया,
टिमिटिमाते तारे मुस्कराते रहे,
उम्मीदों से रिश्ता, बनाते रहे,
हौसला उनका तोड़ा न गया,
उम्मीदों का दामन छोड़ा न गया,
प्रकृति को हमने सताया बहुत,
खिलवाड़ उससे किया, जिससे पाया बहुत,
ये क्या हो गया, सब परेशां बहुत,
कोरोना का दंश हमसे झेला न गया,
खुशियों के दौर भी, जरूर आयेंगे,
जीने के नए अंदाज , हम बनाएंगे
जीव, जंतु, पेड़, पौधों से, हम निभाएंगे,
उनके संग संग ही, हम मुस्कराएंगे,
"परस्परोपग्रहो जीवानाम" ये सच है,
समझा है अब, पहले समझा न गया।                                                



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