तौकते से मुकाबला कर गांव लोटे मछुआरे
36 घंटे मौत से जंग!…
लंगर टूटने के बाद भटक गई थी बोट
मंगलवार की रात सकुशल पहुंचे किनारे
अरब सागर में सोमवार को आए तौकते चक्रवाती तूफान में फंसे भायंदर-पश्चिम पाली गांव के 6 मछुआरे अपनी बोट न्यू हेल्प मेरी के साथ मंगलवार रात को 9 बजे सकुशल किनारे पहुंच गए। बोट पर नाविक जस्टिन मिरांडा के अलावा सुनील हंसदा, सहदेव बेसरा, संजय हंसदा, सुभाष कोल्ह तथा सहदेव कोल्ह 5 खलासी भी सवार थे। ये सभी खलासी मूलरूप से झारखंड के रहनेवाले हैं। ये सभी समुद्र में 36 घंटे तक मौत से जंग लड़ते रहे। इस बोट के नाविक जस्टिन मिरांडा ने बताया कि एक समय तो ऐसा लगा कि हम अब किनारे नहीं पहुंच पाएंगे, लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और लहरों के सहारे हम अपनी बोट को धीरे-धीरे किनारे की तरफ बढ़ाते रहे। मंगलवार को सभी के सकुशल पहुंचने पर उनके परिजनों व स्थानीय मछुआरों ने राहत की सांस ली।
बोट से टूट गया था संपर्क
बता दें कि तौकते तूफान की वजह से शुक्रवार को ही समुद्र में गए सभी मछुआरों को किनारे पर लौटने का संदेश मौसम विभाग ने दे दिया था। सभी मछुआरे शनिवार तक किनारे लौट आए थे। लेकिन पाली की न्यू हेल्प मेरी नामक बोट समुद्र में ही फंस गई थी। शनिवार की सुबह 8 बजे के आसपास जस्टिन ने वायरलेस के माध्यम से अपने परिजनों से बात की थी, लेकिन उसके बाद से उनका संपर्क टूट गया था। तट रक्षक दल ने जीपीएस के माध्यम से इस बोट की खोज शुरू की तो रविवार शाम तक समुद्र में स्थित ओएनजीसी के एक बंद रिग पर बोट के रुके होने की बात पता चली थी। इसके बाद सोमवार को बीच-बीच मे वायरलेस से संपर्क तो हो रहा था, लेकिन खराब मौसम की वजह से कोई बात नहीं हो पा रही थी।
न्यू हेल्प मेरी बोट के नाविक जस्टिन और 5 खलासियों ने 36 घंटे तक बिस्किट और पानी के सहारे तूफान का डटकर मुकाबला किया। जस्टिन ने बताया कि जब उसकी बोट करीब 80 किलोमीटर (40 नॉटिकल) समुद्र के अंदर थी, तभी उन्हें एक ओनजीसी की बोट मिली। जिस पर सवार अधिकारियों ने उनसे कहा कि तेज तूफान आनेवाला है, जल्दी किनारे पर लौट जाओ। उस समय ओएनजीसी के अधिकारियों ने जस्टिन को डहाणू के कोस्टगार्ड का नंबर दिया और कहा कि यहां से डहाणू का किनारा नजदीक है, वहां चले जाओ। लेकिन डहाणू की दिशा से तेज हवा चलने के कारण जस्टिन को उस दिशा में बोट ले जाने में मुश्किल हो रही थी, तो उन्होंने बोट को चौक की दिशा में ही मोड़ दिया।
१० नॉटिकल मील की दूरी पर बोट तूफान में फंसी
जस्टिन ने बताया कि तूफान की खबर सुनकर उन्होंने तेजी से किनारे की तरफ लौटना शुरू कर दिया था। सोमवार तक उसकी बोट करीब 30 नॉटिकल मील की दूरी तय कर चुकी थी और किनारे से सिर्फ 10 नॉटिकल मील दूर ही रह गई थी। तेज तूफान की वजह से बोट किनारे की तरफ जाने की बजाए समुद्र के अंदर खींचने लगी तो वे लोग वहां लंगर गिराकर बोट का संतुलन बनाए रखने की जद्दोजहद करते रहे। तूफान की तीव्रता की वजह से बोट का लंगर टूट गया। इसके बाद बोट में रखे दूसरे छोटे लंगर को बची हुई रस्सी से जोड़कर पुन: लंगर समुद्र में गिराया गया। इसी बीच बोट के स्टेरिंग की रॉड भी टूट गई। तब जस्टिन को लगा कि उसकी बोट अब किनारे नहीं पहुंच पाएगी। बोट पर सभी लोग निराश थे। उन्होंने किनारे पर वायरलेस से संदेश भेजा कि उन्हें किसी तरह किनारे लाने की व्यवस्था करें। उनकी मदद के लिए हेलीकॉप्टर भी भेजा गया, लेकिन खराब मौसम के कारण उन्हें बोट से नहीं लाया जा सका। आखिर फिर हिम्मत जुटाकर समुद्र में उतरकर जस्टिन ने स्टेरिंग की रॉड बदली की और तूफान का वेग कम होने पर किनारे की तरफ बढ़ने लगे।
मंगलवार रात को 9 बजे न्यू मेरी हेल्प बोट सभी 6 मछुआरों के साथ जब चौक बंदर पर किनारे पहुंची तो सभी के आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। स्थानीय शिवसेना शहरप्रमुख व अखिल महाराष्ट्र मच्छीमार कृति समिति के कार्याध्यक्ष बर्नड डिमेलो ने प्रशासन, तटीय सुरक्षा दल का आभार व्यक्त किया और स्थानीय मछुआरों से अपील की कि जब कभी मौसम विभाग किसी तूफान की चेतावनी जारी करता है, तो सभी को इसका पालन करते हुए समुद्र में नहीं जाना चाहिए।
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