साधर्मिक भक्ति वर्तमान की आवश्यकता
साधर्मिक को यथाशक्ति सहयोग करें
गच्छाधिपति नित्यानंद सूरीश्वरजी
कोरोना महामारी के कारण प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से प्रत्येक परिवार पीड़ित हुआ है। प्रतिदिन कई तरह के दुखद समाचार प्राप्त होते हैं। अनेक जन भविष्य के अंधकार का चिंतन करने मात्र से ही मृतप्रायः हो रहे हैं।
पर्युषण पर्व में प्रत्येक वर्ष हम साधर्मिक सेवा के कर्त्तव्य का वर्णन सुनते हैं। बोलते समय और सुनते समय तो सभी के रोम रोम भावुक हो जाते करेंहैं पर वर्तमान समय है उसे प्रैक्टिकल जीवन में अपनाने का।
वर्तमान में कई साधर्मिक परिवारों की स्थिति चिंतनीय है। अच्छे अच्छे परिवारों के व्यापार ठप हो जाने से, घर में कोरोना हो जाने से, पढ़ाई आदि के खर्चे बढ़ जाने से काफी विचलित है। हर साधर्मिक स्वाभिमानी है, अदीन है किंतु ये हमारा कर्तव्य है कि हम यथाशक्ति सहायता करें।
परमात्मा की कृपा से यदि आप थोड़े भी सम्पन्न हैं तो अपने यहां काम करने वाले किसी भी व्यक्ति की तनख्वाह-पगार-सैलरी न काटें। किसी भी कारण से वो काम नहीं कर पा रहे या आपकी आमदनी कम है तो भी जहां तक सम्भव हो सके किसी के पैसे न काटें। यह समय मानवीय मूल्यों की परीक्षा का समय है, कुछ ऋणानुबन्ध चुकाने के वक्त है। अतएव, किसी के भी जीवन में संकट बढे, ऐसा निमित्त हमें नहीं बनना है।
करोड़ो रुपयों की कोई सहायता करने की बात नहीं है। बात भावना की है, यथाशक्ति की है। मेरे बीस साल के बाद के भविष्य के लिए आज पैसे बैंक एकाउंट में जमा है और दूसरी ओर मेरा साधर्मिक भाई वर्तमान में अगले दिन के भोजन को, अपने बच्चों की पढ़ाई, घर के बाकी खर्चों के लिए खुद से संघर्ष कर रहा है। नाम की चाहना में नहीं, परमात्मा ने जो साधर्मिक के लिए कहा, गुरु वल्लभ ने जो साधर्मिक के लिए कहा, उस भाव से हम एक भी साधर्मिक की मदद व्यक्तिगत स्तर पर करें, तो अच्छा होगा वरना "कोई और करेगा" यह सोचते सोचते वह ज़रूरतमंद साधर्मिक की स्थिति क्या से क्या हो जाएगी, वह सोच से परे है।
पचपदरा जैन संघ द्वारा ऐसा निर्णय लिया गया कि उस संघ के किसी भी व्यक्ति को ज़रूरत होगी उसे हर महीने दस हज़ार रुपये छह महीने तक दिए जाएंगे। मुंडारा के अध्यक्ष ने ऐसा संकल्प किया कि संघ के किसी की बच्चे की पढ़ाई के खर्चे के लिए आवश्यकता होगी तो संघ उसका वहन करेगा।
अपने संघ के स्तर पर भी हम जितना हो सके उतना कार्य करें तो एक और एक जुड़कर दो नहीं, बल्कि ग्यारह की शक्ति बन सकती है। भारत पाक विभाजन के समय गुरु वल्लभ ने किस तरह से प्रेरणा लेकर साधर्मिक भाईओ को पुनः खड़ा किया, हमें उसी से आज भी प्रेरणा लेनी है, अपने साधर्मिक परिवारों की लाठी बननी है।
गुरु वल्लभ कहा करते थे - "होवे या न होवे पर मैं यह चाहता हूँ...." हम भी भले ही अधिक साधर्मिकों की मदद न कर सकें पर भावना रखनी चाहिए और जैसे ही कोई अवसर मिले, गम्भीरता से किसी को एहसान दिखाए बिना, नाम उजागर किये बिना सहयोग कर सकें तो अपने उचित आचरण से पीछे नहीं हटना चाहिए। हमारा नाम मूक दर्शकों में नहीं, बल्कि आग बुझाने वालों में होना चाहिए।
(पंजाब केसरी आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वरजी म.सा.समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति है.)
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