समस्त बुराइयों को पी जाने की क्षमता प्रगट होना क्षमा धर्म है: निर्भय सागर
क्रोध ज्वालामुखी सामान हैं-
दमोह:- वैज्ञानिक संत आचर्य श्री निर्भय सागर जीवी महाराज ने जैन धर्मशाला असाटी वार्ड में क्षमा धर्म की व्याख्या करते हुए कहा क्रोध आत्मा का शत्रु है। यह क्रोध स्वामित्व, कर्तव्य, भोग तत्व, खान-पान आदि कई कारणों से आता है। जब क्रोध का उपचार नहीं किया जाता तब वह बैर में बदल जाता है। इसलिए बैर को क्रोध का अचार या मुरब्बा कहा जाता है। बैर से ईष्या उत्पन्न होती है। वह ईर्ष्या समय-समय पर क्रोध कराती रहती है, इसलिए क्रोध ईर्ष्या एक भूकंप है, क्रोध ज्वालामुखी है और बैर पृथ्वी के अंदर भरे हुए लावा के समान है। जब क्रोध रूपी ज्वालामुखी फूटता है तब बैर रूपी लावा आ जाता है। जब क्रोध रूपी ज्वालामुखी नहीं फूटता तो ईर्ष्या रूपी भूकंप अंदर कंपन पैदा करता है। और बैर रूपी लावा अंदर ही अंदर गतिशील हो उठता है।
समस्त बुराइयों को पी जाने की क्षमता प्रगट होना ही क्षमा धर्म है। दुनिया में कई तरह के दान है। जिन्हें आसानी से दिया जा सकता है परंतु क्षमा का दान देना आम आदमी को सहज नहीं है। क्षमा का दान वही दे जिनके अंदर निर्मल ज्ञान का सागर लहराता रहता है। जिसका मन कुलषित होगा, जिसमें मूढ़ता, अज्ञानता, हठवादिता होगी, उसके अंदर शांति का सागर हिलोर नहीं ले सकता। गलत विचार आत्मा के क्षमा रूपी गुणों को प्रभावित करने लगते हैं, ईर्ष्या ,घृणा, क्रोध, बैर, डाह आदि ऐसे वायरस हैं जो आत्मा के क्षमादि गुणों को रूढ़ बना देते हैं। इस क्रोध रूपी जहरीले वायरस की सर्वोत्तम औषधि उत्तम क्षमापान है। उस क्षमा रूपी औषधि से तन मन को शांति ही नहीं मिलती, बल्कि आत्म सुख भी मिलता है।
अभिषेक जैन / लूहाडीया रामगंजमंडी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें