भारत देश एकता अखंडता का परिचायक है :-विराग सागर

  गणाचार्य का राष्ट्र के नाम सन्देश

अभिषेक जैन / लुहाडीया रामगंजमंडी

भिंड-(मध्यप्रदेश):- स्वतंत्रता दिवस क अवसर पर देशवासियों को अपने सन्देश में परम पूज्य गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज ने कहा कि 15अगस्त हमारे देश का राष्ट्रीय पर्व है. जिस दिन भारत देश स्वतंत्र हुआ था इसलिए इसे स्वतंत्रता दिवस भी कहते है. 1947के पूर्व हम परतंत्र थे तो कोई भी कार्य स्वतंत्रता से नहीं कर पाते थे. हमारे लिए बहुत सारे ब्रेक थे कार्यों में देश स्वतंत्र हुआ तो कार्यों के करने की सुविधा एवं स्वतंत्रता मिली भारत एक ऐसा देश है जहां अनेको धर्म मत परंपराओं सम्प्रदायो के लोग एकसाथ प्रेम से रहते है हर प्रांत की अपनी अपनी भाषा परम्परा व पद्धतिया है स्वतंत्र होने पर सारी सुविधाएं निश्चित कर धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना की गई यह नहीं कि धर्म को देश राष्ट्र या शासन प्रशासन नहीं मानता बल्कि सभी धर्मों पर शासन समान अधिकार आदर सम्मान देता है.गणाचार्य ने कहा की इस देश में रहने वाला अपने अपने धर्म की अनुयायी प्रजा हर्षित प्रसन्नचित रहते है खुशहाली का वातावरण रहता है जब हमारा देश स्वतंत्र नहीं था तो उसे निश्चित संस्कृतियों में बांधा जाता है निश्चित धर्म परंपराओं से जोड़ा जाता था देश के बड़े-बड़े नेता महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू सरदार वल्लभभाई पटेल या मोतीलाल नेहरू हुए सभी ने जब इस बात का एहसास किया कि हमारे व्यक्तिगत धर्म की साधना चर्या कैसी हो सकती है लेकिन जब शासन की गद्दी पर बैठते हैं सभी को यथोचित सम्मान दिया जाता है और यह आज की नहीं प्राचीन काल की परंपरा है इसलिए हम सब देश स्वतंत्र हो जाने पर अपने अपने कार्य करने में स्वतंत्र हुए आपने अपनी परंपराओं के अनुसार चलने पर भी एक दूसरे से मिलते हैं, कार्यक्रमों में आमंत्रित करते हैं एक दूसरे के साथ उठते बैठते हैं और सौहार्द्रता का वातावरण को उपस्थित करते हैं.

 विरागसागर ने कहा की राजा का कर्तव्य ही होता है की प्रजा की खुशहाली में खुश रहे और अपनी खुशी में प्रजा को भी खुश करें जब हम अपने प्राचीन पुराणों में राजाओं के विषय में देखते हैं तो राजा सदैव प्रजा की कुशलता  पूछता है. हम आदिनाथ (ऋषभदेव) के विषय में अथवा मर्यादा पुरुषोत्तम के राज्यकाल के विषय में देखते है तो वे भी हम कुशल पूछते थे. मुनिराज ने बताया की सभी के समय में संप्रदाय परंपराएं पंथ रहे हैं लेकिन सौहार्द्रता का वातावरण रहा क्योंकि हम लोग उसमें स्वतंत्र हो गए तो सभी में खुशी हुई हालाकी जब देश परतंत्र था उस समय जिन्होंने देश पर शासन किया था तो भी उन शासन अधिकारियों ने किसी भी धर्म संस्कृति की क्षति नहीं की थी और जिन्होंने क्षति की थी वे ज्यादा समय तक टिक नहीं पाते थे ऐसा हमारा इतिहास गवाह है.

उन्होंने कहा कि हम स्वतंत्र हो तो इन सारी बातों में भी एक स्वतंत्रता का मायना हम रखें कि हम स्वतंत्र हुए तो किन-किन बातों पर स्वतंत्र हुए आज के दिन हम लोगों इस बात पर सोचना समझना आवश्यक है कि हम किन किन बातों से स्वतंत्र हुए किन-किन बातों से परतंत्र थे प्रजा की क्या विशेषता प्रकट हुई ऐसा नहीं कि राजा अधिकारी वर्ग ही परतंत्र था जो स्वतंत्र हो गया और प्रजा जैसी थी वैसी ही है नहीं हमारी प्रजा में भी बदलाव हुआ है हम इसके विषय में सोचे समझे हमारे यहां सामाजिक व्यवस्थाएं भी रही हैं जहां वर्ण व्यवस्थाओं का भी उल्लेख है सभी के अपने अपने कार्य निश्चित है उन कार्यों को हर व्यक्ति अपनी अपनी व्यवस्था के अनुसार करता है इसलिए स्वतंत्रता स्वाधीनता सार्थक हो जाती है हम सभी एक दूसरे के कार्य में व्यवधान करते हैं प्राचीन सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं तो हमारे लिए बहुत सारी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है इसलिए हमारी व्यवस्थाओं में भी प्रगति होना चाहिए हालांकि भारत को इसका गर्व है कि अपना देश हर दृश्य से प्रगति पर पहुंच रहा है जब हम शक्ति की दृष्टि से देखते हैं तो आज हमारी सैन्य शक्ति काफी अच्छी मजबूत और दृढ़ हैं और जब हम अर्थ और शिक्षा की दृष्टि से देखते हैं तो सभी क्षेत्र में देश विकसित हो रहा है.

आज अपना देश इतना स्वावलंबी सिद्ध हो रहा है कि जिन जिन बातों में हम दूसरे देश से अपेक्षा रखते थे सामग्री का आयात करते थे लेकिन आज काफी मात्रा में हमारा देश उन साम्रगीयो का निर्माण करके उनका निर्यात कर रहा है बंधुओं हमारे देश के प्रधानमंत्री हो या अन्य कोई अधिकारी वर्ग हो सभी ने अन्य देशों के प्रति मैत्री भाव स्थापित किए हैं जिससे हमारे देश की एक और सकती है जो अन्य देशों की अपेक्षा अधिक है हर देश हमारे देश का सहयोगी है देश की उन्नति में सहयोगी है आवश्यकतो पर सहयोग देने के लिए भी समर्थ सक्षम हैं चाहे स्वास्थ्य संबंधी हो चाहे आपदा विपदा चाहे महामारी जैसी समस्या हो हर परिस्थिति में अन्य देश भारत देश से व्यवहार कुशल है व सहयोग देने को तैयार है

मैं आज के दिन यही कहना चाहूंगा कि सौहार्द्रता निरंतर निरंतर बढ़ती रहे आपसी सामंजस्य नीतियां हम आपस में विकसित करें हमारी प्राचीन संस्कृति, प्राचीन धरोहर चाहे सात्विक हो चाहे पुरातात्विक हो चाहे भाषा संबंधी हो या अन्य प्रकार की हो आदर्श संस्कृतिया हैं उनकी सुरक्षा व विकास निरंतर होना चाहिए ऐसी हम भावना करते हैं ऐसा रूप रेखा रखते हैं कि इनका विकास हो कोरोना जैसी विकराल परिस्थिति के बावजूद भी हालांकि जिस तरह से हर वर्ष यह राष्ट्रीय त्योहार पर्व मनाया जा रहा है इस बार यह सामूहिक रूप से तो संभव नहीं है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि हम अपने उत्साह को भंग कर दें अपितु हम अपनी अपनी सीमा मर्यादा परिवार कुटुंब के बीच भी इस राष्ट्रीय पर्व के विषय में परिकल्पना पवित्र भावना भा शक्ति है देश की उन्नति उत्थान के विषय में अपने अच्छे विचार बना सकते हैं यदि हम सब ने यदि ऐसा कुछ किया तो निश्चित है स्वतंत्र ता दिवस सार्थक व सफल हो सकेगा

अध्यात्मिक के प्रति तो हमारी आत्मा ही अनादि काल से अपनी बुराइयों के कारण बुरी आदतों बुरे संस्कार पाप अनीति अत्याचार व्यभिचार भ्रष्टाचार आदि के कारण परतंत्र है यदि उनको छोड़ो तो निश्चित है आत्मा के विषय में स्वाधीनता आ सकती है और सुख आनंद खुशी भी प्रत्येक प्राणी में आ सकती है हम आध्यात्मिक स्वतंत्रता की ओर की ओर कदम बढ़ाए और स्वतंत्रता दिवस को सार्थक करें.उक्त जानकारी राजकुमार अजमेरा व नवीन गंगवाल कोडरमा ने दी

       

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