दृष्टि ही नही दृष्टिकोण भी सुंदर होना चाहिए सुनील सागर
परमार्थ बढ़ानेवाला परमार्थ की बात करता है
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आचार्य श्री ने कहा प्रकृति की विचित्र माया है। जहां हवन हो रहा है, इंद्र का आहवान हो रहा है वहाँ पानी नही बरस रहा। बिना आह्वान किये प्रकृति पानी बरसा देती है। ऐसे मे जहाँ जैसा होना है वैसा होकर रहेगा। जिसे वस्तु स्वरूप का ज्ञान हो गया वह किसी प्रपंच मे नही पड़ता। महाराज श्री ने कहा कोई पाप कर रहा हो और आप उसकी अनुमोदना करते हो तो आप भी पापी हो। संसार बढ़ाने वाला संसार की और परमार्थ बढ़ाने वाला परमार्थ की बात करता है। यह संसार जड़ और चेतन मे ही चल रहा है।संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी
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