सर्वधर्म समभाव की प्रतिमूर्ति :आचार्य शांति सागरजी

 समाधी दिवस पर भाव भीनी विनयांजलि

अभिषेक जैन / लुहाडिया रामगंजमंडी

20 वी सदी के प्रथमाचार्य श्रमण संस्कृति उन्नायक त्याग तप की प्रतिमूर्ति विश्व वन्दनीय समाधीस्थ चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का समाधी दिवस है. जिनके जीवन की जिनके गुणों का वर्णन करते सदिया बीत जायेगी.आचार्य श्री के उपकार उनका साहस संबल उनकी उत्क्रष्ट साधना के कारण आज जिनशासन की महिमा चहु और फ़ैल रही है.

मुनि श्री की तपस्या का उदाहरण है की 35 वर्ष के मुनि जीवन काल मे 9938 निर्जल उपवास जो लगभग 27 वर्ष मे होते है 1 आहार 1 उपवास अनेक वृतो को किया. सिहनिष्कंडित तप आदि अनेक तपस्याएं हैं.ऐसे विरले साधक इस धरा पर होना सचमुच पुण्य का ही प्रताप हैं।

मुनि श्री वाणीप्रिय और किसी भी विषय पर अपना आशीर्वचन दे देते थे. पुस्तकों के द्वारा संस्मरणों से ज्ञात होता है की एक बार आचार्य श्री अजमेर दरगाह की और गये वहा 5000 से अधिक मुस्लिम समाज को संबोधित किया जिसे सुन वह भाव विभोर हो गये. जिसकी प्रभावना चहु और हुई और अगले दिन सारे समाचार पत्र आचार्य श्री के प्रवचनों से भरे थे. इतनी निष्प्रहता जो युगोंयुगों तक अमिट रहेगी यही कहूगा

नहीं तुमसा पावन है उपकारी जीवन आवाज़ तो है मेरे गुरुवर

श्री शान्तिसागर जी गुरुवर हमारे संसार सिन्धु के तुम हो किनारे

पंक नहीं पंकज बनू मुक्ता बनू न दिश ज्ञान भवन मे हम रहे मोक्ष महल की और

भाव भीनी विनायंजलि 

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