विनयशीलता से व्यक्ति उभरता हैं:- समता सागर
मंदिर में किसी को ठेश नहीं पहुंचाएं
विदिशा:- पानी को निकालने के लिये अकेले बाल्टी को रस्सी बाधकर कुए में डालने से काम नहीं चलता है,उसको भरने के लिये उसको ढील देकर झुकाना पड़ता है तभी उस बाल्टी में पानी आता है,उसी प्रकार विनय शीलता व्यक्तित्व का एक ऐसा गुण है, वह जिसके अंदर जितना जितनाआता है,उसका व्यक्तित्व उतना उतना उभर कर आता है,उपरोक्त उदगार मुनि श्री समतासागर जी महाराज ने पर्युषण पर्व के दूसरे दिवस उत्तम मार्दव धर्म दिवस पर शीतलधाम में ओनलाइन प्रवचन सभा को संबोधित करते हुये व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि विनय शीलता का गुण किसी के सिखाने से नहीं आती वह तो व्यक्ती के अंतरंग के परिणामों से उभरती है, उन्होंने नेमावर का उदाहरण देते हुये कहा कि लम्बे अंतराल के उपरांत दिसंबर माह में जब गुरुचरणों में पहुंचने का मौका मिला तो वहा पर भाव अभिव्यक्ति करने का जब मौका मिला तो मौन नहीं रह पाया, और जो बिंदु ख्याल में आऐ वह प्रस्तुत किये।
जंहा आम्र फल की बोर लगी हो, वंहा पर कोयल न कूके ऐसा तो हो नही सकता वहा तो कोयल कूकती ही है, गुरु चरणों में पहुंचकर जो शब्द निकले थे वह अंतरंग से निकले थे, विनयशीलता का गुण किसी के समझाऐ से नहीं आता वह तो स्वतः ही उभरता है।साधन अनेक हुआ करते है, साधन तो सुविधाओं से जुट जाते है, लेकिन मोक्षमार्ग में रत्नात्रय को प्राप्त करने के लिये कोई सुविधा नही होती। उन्होंने कहा
आचार्यश्री कुंद कुंद स्वामी ने जिन शासन में मोक्षमार्ग के चार उपकरण बताए है जो हमारे उपकारक है, जिसमें सब से पहले यथाजात निर्ग्रंथ मुद्रा, गुरु के वचन, विनयशीलता ,शास्त्र का अभ्यास स्वाध्याय इन चार में सबसे अधिक मेरा ध्यान गुरू के वचन और विनयशीलता पर ज्यादा जाता है, गुरु के प्रति बहुमान और अपने से ज्येष्ठ मुनि के प्रति सम्मान का भाव रखना अपने से छोटे और नव दीक्षित मुनिओं को स्नेह के साथ रखना यह उपचार विनय है, मंदिर में प्रवेश करते समय अपनी क्रियाओं के द्वारा किसी के मन ठेस न लगे उसके धर्म ध्यान में बाधा न पड़े।यह भी एक विनय है।इस अवसर पर ऐलक श्री निश्चयसागर जी महाराज ने प्रश्न करते हुये पूछा? बताओ आपके मुंह में दांत पहले आते है, या जिव्हा...? उत्तर देते हुये कहा गया जिव्हा तो ऐलक श्री ने कहा कि जाता कौन पहले है, तो उत्तर दिया गया दांत। जिव्हा नरम और मुलायम होती है, जबकि दांत कठोर हुआ करते है। जो जितना अधिक नरम होगा स्वभाव से मृदु होगा उसका जीवन उतना दीर्घायु वाला होता है। उन्होंने कहा कि मानी व्यक्ती को कोई नहीं चाहता
जो जितना अधिक मानी होता है, वह नीच गति का ही बध करता है,
"मान महा विष रुप करहि नीच गति जगत में, कौमल सुधा अनूप, सुख पावे प्राणी सदा'"
प्रवक्ता अविनाश जैन ने कार्यक्रम का संचालन करते हुये बताया की दशलक्षण पर्व के दूसरे दिवस उत्तम मार्दव धर्म की पूजा हुई। प्रातःकालीन बेला में भगवान का अभिषेक एवं शांतिमंत्रों के साथ शांतिधारा सुयोग्य पात्रों द्वारा संपन्न की गयी। एवं मुनिसंघ के प्रवचन उपरांत प्रश्नमंच का कार्यक्रम संपन्न हुआ।शीतलधाम पर दौपहर में 2:30 से मुनिसंघ द्वारा स्वाध्याय तथा सांयकाल 5:45 से7 वजे तक गुरुभक्ती, एवं प्रश्नमंच रखा जाता है। जो सही जबाव देता है उसको पुरुस्कृत किया जाता है।
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